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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
ابتدائے (مخلوقات)، انبیا و رسل، عجائبات خلائق
जगत निर्माण, नबी और रसूलों का ज़िक्र और चमत्कार
2511. یوشع نبی کے لیے سورج کا رکنا اور اس کی وجہ، سابقہ امتوں کے مجاہدوں کا مال غنیمت آگ کھا جاتی تھی
“ यूशअ बिन नून के लिए सूर्य का रुक जाना ، पिछली उम्मतों का माल ग़नीमत आग खा जाती थी ”
حدیث نمبر: 3865
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
-" إن الشمس لم تحبس على بشر إلا ليوشع ليالي سار إلى بيت المقدس" وفي رواية" غزا نبي من الانبياء، فقال لقومه: لا يتبعني رجل قد ملك بضع امراة، وهو يريد ان يبني بها، ولما يبن" بها"، ولا آخر قد بنى بنيانا، ولما يرفع سقفها، ولا آخر قد اشترى غنما او خلفات، وهو منتظر ولادها، قال: فغزا، فادنى للقرية حين صلاة العصر، او قريبا من ذلك،" وفي رواية: فلقي العدو عند غيبوبة الشمس"، فقال للشمس: انت مامورة، وانا مامور، اللهم احبسها علي شيئا، فحبست عليه، حتى فتح الله عليه،" فغنموا الغنائم"، قال: فجمعوا ما غنموا، فاقبلت النار لتاكله، فابت ان تطعمه" وكانوا إذا غنموا الغنمية بعث الله تعالى عليها النار فاكلتها" فقال: فيكم غلول، فليبايعني من كل قبيلة رجل، فبايعوه، فلصقت يد رجل بيده، فقال: فيكم الغلول، فلتبايعني قبيلتك، فبايعته، قال: فلصقت بيد رجلين او ثلاثة" يده"، فقال: فيكم الغلول، انتم غللتم،" قال: اجل قد غللنا صورة وجه بقرة من ذهب"، قال: فاخرجوه له مثل راس بقرة من ذهب، قال: فوضعوه في المال، وهو بالصعيد، فاقبلت النار فاكلته، فلم تحل الغنائم لاحد من قبلنا، ذلك بان الله تبارك وتعالى راى ضعفنا وعجزنا فطيبها لنا،" وفي رواية" فقال رسول الله صلى الله عليه وسلم عند ذلك: إن الله اطعمنا الغنائم رحمة بنا وتخفيفا، لما علم من ضعفنا".-" إن الشمس لم تحبس على بشر إلا ليوشع ليالي سار إلى بيت المقدس" وفي رواية" غزا نبي من الأنبياء، فقال لقومه: لا يتبعني رجل قد ملك بضع امرأة، وهو يريد أن يبني بها، ولما يبن" بها"، ولا آخر قد بنى بنيانا، ولما يرفع سقفها، ولا آخر قد اشترى غنما أو خلفات، وهو منتظر ولادها، قال: فغزا، فأدنى للقرية حين صلاة العصر، أو قريبا من ذلك،" وفي رواية: فلقي العدو عند غيبوبة الشمس"، فقال للشمس: أنت مأمورة، وأنا مأمور، اللهم احبسها علي شيئا، فحبست عليه، حتى فتح الله عليه،" فغنموا الغنائم"، قال: فجمعوا ما غنموا، فأقبلت النار لتأكله، فأبت أن تطعمه" وكانوا إذا غنموا الغنمية بعث الله تعالى عليها النار فأكلتها" فقال: فيكم غلول، فليبايعني من كل قبيلة رجل، فبايعوه، فلصقت يد رجل بيده، فقال: فيكم الغلول، فلتبايعني قبيلتك، فبايعته، قال: فلصقت بيد رجلين أو ثلاثة" يده"، فقال: فيكم الغلول، أنتم غللتم،" قال: أجل قد غللنا صورة وجه بقرة من ذهب"، قال: فأخرجوه له مثل رأس بقرة من ذهب، قال: فوضعوه في المال، وهو بالصعيد، فأقبلت النار فأكلته، فلم تحل الغنائم لأحد من قبلنا، ذلك بأن الله تبارك وتعالى رأى ضعفنا وعجزنا فطيبها لنا،" وفي رواية" فقال رسول الله صلى الله عليه وسلم عند ذلك: إن الله أطعمنا الغنائم رحمة بنا وتخفيفا، لما علم من ضعفنا".
سیدنا ابوہریرہ رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: بیشک سورج کسی بشر کے لیے کبھی بھی نہیں روکا گیا، سوائے یوشع بن نون کے، یہ ان دنوں کی بات ہے جب وہ بیت المقدس کی طرف جا رہے تھے، ایک روایت میں ہے: انبیاء میں سے ایک نبی نے جہاد کیا، اس نے اپنی قوم سے کہا: وہ آدمی میرے ساتھ نہ آئے جو کسی عورت کی شرمگاہ کا مالک بن چکا ہے (‏‏‏‏یعنی اس نے نکاح کر لیا ہے) اور رخصتی کرنا چاہتا ہے، لیکن ابھی تک نہیں کی، وہ آدمی بھی (‏‏‏‏میرے لشکر میں شریک) نہ ہو، جس نے کوئی گھر بنانا شروع کیا ہے، لیکن ابھی تک چھت نہیں کیا اور جو آدمی بکریاں یا ایسے حاملہ جانور خرید چکا ہے، کہ جن کے بچوں کی ولادت کا اسے انتظار ہے، وہ بھی ہمارے ساتھ نہ آئے۔ (‏‏‏‏یہ اعلان کرنے کے بعد) وہ غزوہ کے لیے روانہ ہو گیا، جب وہ ایک گاؤں کے پاس پہنچے تو نماز عصر کا وقت ہو چکا تھا، یا قریب تھا۔ (‏‏‏‏اور ایک روایت میں ہے کہ غروب آفتاب سے پہلے دشمنوں سے مقابلہ ہوا)۔ اس وقت اس نبی نے سورج سے کہا: تو بھی (‏‏‏‏اللہ تعالیٰ کا) مامور ہے اور میں بھی (‏‏‏‏اسی کا) مامور ہوں۔ اے اللہ! تو اس سورج کو میرے لیے کچھ دیر تک روک لے۔ پس اسے روک دیا گیا، (‏‏‏‏وہ جہاد میں مگن رہے، یہاں تک کہ اللہ تعالیٰ نے فتح عطا کی اور کافی غنیمتیں حاصل ہوئیں۔ اس لشکر والوں نے (‏‏‏‏اس وقت کے شرعی قانون کے مطابق) غنیمتوں کا مال جمع کیا، اسے کھانے کے لیے آگ آئی، لیکن اس نے ایسا کرنے سے انکار کر دیا۔ ان کا اصول یہ تھا کہ جب وہ غنیمت کا مال حاصل کرتے تو اللہ تعالیٰ آگ بھیجتا جو اسے کھا جاتی۔ اس نبی نے (‏‏‏‏آگ کے نہ کھانے کی وجہ بیان کرتے ہوئے) کہا: تم میں سے کسی نے خیانت کی ہے، لہٰذا ہر قبلیے سے ایک ایک آدمی میری بیعت کرے۔ انہوں نے بیعت کی۔ بیعت کے دوران ایک آدمی کا ہاتھ ان کے ہاتھ کے ساتھ چپک گیا۔ اس وقت انہوں نے کہا: تم میں خیانت ہے۔ اب تیرے قبیلے کا ہر آدمی میری بیعت کرے گا (‏‏‏‏تاکہ مجرم کا پتہ چل سکے)، انہوں نے بیعت شروع کی، بالآخر دو یا تین آدمیوں کے ہاتھ چپک گئے۔ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے کہا: تم میں خیانت ہے، تم نے خیانت کی ہے۔ انہوں نے کہا: جی ہاں، ہم نے گائے کے چہرے کی مانند بنی ہوئی سونے کی ایک مورتی کی خیانت کی ہے۔ پھر وہ گائے کے چہرے کی طرح کی بنی ہوئی چیز لے کر آئے اور اسے مٹی کے ساتھ مال غنیمت میں رکھ دیا، پھر آگ متوجہ ہوئی اور مال غنیمت کھا گئی۔ ہم (‏‏‏‏امت محمد صلی اللہ علیہ وسلم ) سے پہلے کسی کے لیے بھی مال غنیمت حلال نہیں تھا۔ اس کی وجہ یہ ہے کہ جب اللہ تعالیٰ نے دیکھا کہ ہم ضعیف اور بے بس ہیں تو غنیمتوں کو ہمارے لیے حلال قرار دیا۔ ‏‏‏‏ اور ایک روایت میں ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے اس وقت فرمایا: اللہ تعالیٰ نے ہمارے ساتھ رحم کرتے ہوئے اور ہماری کمزوری کی بنا پر ہمارے ساتھ تخفیف کرتے ہوئے ہمیں غنیمت کا مال کھانے کی اجازت دے دی۔
हज़रत अबु हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “बेशक सूर्य किसी बशर के लिये कभी भी नहीं रोका गया, सिवाए यूशअ बिन नून के, यह उन दिनों की बात है जब वह बेत अल-मुक़ददस की ओर जारहे थे, एक रिवायत में है कि नबियों में से एक नबी ने जिहाद किया, उसने अपनी क़ौम से कहा कि वह आदमी मेरे साथ न आए जो किसी औरत के गुप्ता अंग का मालिक बन चुका है (यानि उसने निकाह कर लिया है) और विदाई करना चाहता है, लेकिन अभी तक नहीं की, वह आदमी भी (मेरे साथ) न हो, जिसने कोई घर बनाना शुरू किया है, लेकिन अभी तक छत नहीं बनाई और जो आदमी बकरियां या ऐसे गर्भवती जानवर ख़रीद चुका है, कि जिनके बच्चों के जन्म का उसे इंतिज़ार है, वह भी हमारे साथ न आए। (यह एलान करने के बाद) वह जंग के लिये रवाना होगया, जब वह एक गाँव के पास पहुंचे तो अस्र की नमाज़ का समय हो चुका था, या क़रीब था। (और एक रिवायत में है कि सूर्य के डूबने से पहले दुश्मनों से मुक़ाब्ला हुआ)। उस समय उस नबी ने सूर्य से कहा, तू भी (अल्लाह तआला का) ग़ुलाम है और मैं भी (उसी का) ग़ुलाम हूँ। ऐ अल्लाह, तू इस सूर्य को मेरे लिये कुछ देर तक रोकले। बस उसे रोक दिया गया, (वह जिहाद में मगन रहे, यहाँ तक कि अल्लाह तआला ने विजय दिलाई और काफ़ी ग़नीमतें हासिल हुईं। उस फ़ौज वालों ने (उस समय के शरई क़ानून के अनुसार) ग़नीमतों का माल इकट्टा किया, उसे खाने के लिये आग आई, लेकिन उसने खाने से इन्कार कर दिया। उनका नियम यह था कि जब वे ग़नीमत का माल पाते तो अल्लाह तआला आग भेजता जो उसे खा जाती। उस नबी ने (आग के न खाने का कारण बताते हुए) कहा, तुम में से किसी ने ख़यानत की है, इस लिए हर क़बीले से एक एक आदमी मेरी बैअत करे। उन्हों ने बैअत की। बैअत के बीच एक आदमी का हाथ उनके हाथ के साथ चिपक गय। उस समय उन्हों ने कहा कि तुम में कोई ख़यानती है। अब तेरे क़बीले का हर आदमी मेरी बैअत करेगा (ताकि मुजरिम का पता चल सके), उन्हों ने बैअत शुरू की, अंत में दो या तीन आदमियों के हाथ चिपक गए। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा कि तुम में कोई ख़यानती है, तुम ने ख़यानत की है। उन्हों ने कहा, जी हाँ, हम ने गाय के चहरे की तरह बनि हुई सोने की एक मूर्ति की ख़यानत की है। फिर वह गाय के चहरे की तरह की बनि हुई चीज़ लेकर आए और उसे मिट्टी के साथ माल ग़नीमत में रख दिया, फिर आग भड़की और माल ग़नीमत खा गई। हम (उम्मत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से पहले किसी के लिये भी माल ग़नीमत हलाल नहीं था। उसका कारण यह है कि जब अल्लाह तआला ने देखा कि हम कमज़ोर और बेबस हैं तो मालों को हमारे लिये हलाल कर दिया।” और एक रिवायत में है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस समय फ़रमाया ! “अल्लाह तआला ने हम पर रहम करते हुए और हमारी कमज़ोरी की बिना पर हमारे साथ नरमी करते हुए हमें ग़नीमत का माल खाने की अनुमति देदी।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 202

قال الشيخ الألباني:
- " إن الشمس لم تحبس على بشر إلا ليوشع ليالي سار إلى بيت المقدس " وفي رواية " غزا نبي من الأنبياء، فقال لقومه: لا يتبعني رجل قد ملك بضع امرأة، وهو يريد أن يبني بها، ولما يبن " بها "، ولا آخر قد بنى بنيانا، ولما يرفع سقفها، ولا آخر قد اشترى غنما أو خلفات، وهو منتظر ولادها، قال: فغزا، فأدنى للقرية حين صلاة العصر، أو قريبا من ذلك، " وفي رواية: فلقي العدو عند غيبوبة الشمس "، فقال للشمس: أنت مأمورة، وأنا مأمور، اللهم احبسها علي شيئا، فحبست عليه، حتى فتح الله عليه، " فغنموا الغنائم "، قال: فجمعوا ما غنموا، فأقبلت النار لتأكله، فأبت أن تطعمه " وكانوا إذا غنموا الغنمية بعث الله تعالى عليها النار فأكلتها " فقال: فيكم غلول، فليبايعني من كل قبيلة رجل، فبايعوه، فلصقت يد رجل بيده، فقال: فيكم الغلول، فلتبايعني قبيلتك، فبايعته، قال: فلصقت بيد رجلين أو ثلاثة " يده "، فقال: فيكم الغلول، أنتم غللتم، " قال: أجل قد غللنا صورة وجه بقرة من ذهب "، قال: فأخرجوه له مثل رأس بقرة من ذهب، قال: فوضعوه في المال، وهو بالصعيد، فأقبلت النار فأكلته، فلم تحل الغنائم لأحد من قبلنا، ذلك بأن الله تبارك وتعالى رأى ضعفنا وعجزنا فطيبها لنا، " وفي رواية " فقال رسول الله صلى الله عليه وسلم عند ذلك: إن الله أطعمنا الغنائم رحمة بنا وتخفيفا، لما علم من ضعفنا ".
‏‏‏‏_____________________
‏‏‏‏
‏‏‏‏هذا حديث صحيح جليل، مما حفظه لنا أبو هريرة رضي الله عنه وله عنه أربع طرق:
‏‏‏‏الأولى: قال الإمام أحمد (2 / 325) . حدثنا أسود بن عامر، حدثنا أبو بكر عن
‏‏‏‏هشام عن ابن سيرين عن أبي هريرة قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم
‏‏‏‏.... فذكر الرواية الأولى.
‏‏‏‏وهكذا أخرجه الطحاوي في " مشكل الآثار " (2 / 10) من طريقين آخرين عن الأسود
‏‏‏‏بن عامر به.
‏‏‏‏قلت: وهذا إسناد جيد، رجاله كلهم ثقات من رجال الشيخين عدا أبا بكر وهو
‏‏‏‏ابن عياش، فإنه من رجال البخاري وحده، وفيه كلام، لا ينزل به حديثه عن
‏‏‏‏رتبة الحسن، وأحسن ما قرأت فيه قول ابن حبان في ترجمته من " الثقات "
‏‏‏‏(2 / 324) :
‏‏‏‏__________جزء : 1 /صفحہ : 394__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏" كان أبو بكر من الحفاظ المتقنين، وكان يحيى القطان، وابن المديني يسيئان
‏‏‏‏الرأي فيه، وذلك أنه لما كبر سنه، ساء حفظه، فكان يهم إذا روى، والخطأ
‏‏‏‏والوهم شيئان لا ينفك عنهما البشر، فلو كثر الخطأ حتى كان غالبا على صوابه
‏‏‏‏لاستحق مجانبة رواياته، فأما عند الوهم يهم، أو الخطأ يخطىء، لا يستحق ترك
‏‏‏‏حديثه بعد تقدم عدالته وصحة سماعه ". ثم قال:
‏‏‏‏" والصواب في أمره مجانبة ما علم أنه أخطأ فيه، والاحتجاج بما يرويه، سواء
‏‏‏‏وافق الثقات " أولا "، لأنه داخل في جملة أهل العدالة، ومن صحت عدالته لم
‏‏‏‏يستحق القدح ولا الجرح، إلا بعد زوال العدالة عنه بأحد أسباب الجرح.
‏‏‏‏وهذا حكم كل محدث ثقة صحت عدالته، وتيقن خطؤه ".
‏‏‏‏قلت: ولهذا صرح الحافظ ابن حجر في " الفتح " بصحة هذا السند، ثم قال
‏‏‏‏(6 / 154) :
‏‏‏‏" فإن رجال إسناده محتج بهم في الصحيح ".
‏‏‏‏وسبقه إلى نحوه الحافظ ابن كثير كما سيأتي، وكذا الذهبي كما في " تنزيه
‏‏‏‏الشريعة " (1 / 379) .
‏‏‏‏الطريق الثانية: قال الإمام أحمد أيضا (2 / 318) :
‏‏‏‏" حدثنا عبد الرزاق بن همام حدثنا معمر عن همام عن أبي هريرة قال:
‏‏‏‏قال رسول الله صلى الله عليه وسلم .... فذكر أحاديث كثيرة فوق المائة بهذا
‏‏‏‏الإسناد، هذا الحديث أحدها، وهي جميعها في " صحيفة همام بن منبه " التي
‏‏‏‏رواها أبو الحسن أحمد ابن يوسف السلمي عن عبد الرزاق به، وهذا الحديث فيها
‏‏‏‏برقم (123) .
‏‏‏‏وقد أخرجه مسلم في " صحيحه " (5 / 145) من طريق محمد بن رافع:
‏‏‏‏حدثنا عبد الرزاق به بالرواية الثانية، واللفظ لمسلم.
‏‏‏‏__________جزء : 1 /صفحہ : 395__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏ثم أخرجه هو والبخاري في " صحيحه " (6 / 154 - 156، 9 / 193 بشرح
‏‏‏‏" الفتح ") عن عبد الله بن المبارك عن معمر به.
‏‏‏‏الطريق الثالثة: قال الطحاوي (2 / 10 - 11) :
‏‏‏‏" حدثنا محمد بن إسماعيل بن سالم الصائغ، حدثنا عبيد الله بن عمر بن ميسرة
‏‏‏‏يعني القواريري، حدثنا معاذ بن هشام عن أبيه عن قتادة عن سعيد بن المسيب عن
‏‏‏‏أبي هريرة به مثل الرواية الثانية، وفيها أكثر الزيادات التي جعلناها بين
‏‏‏‏القوسين () .
‏‏‏‏وهذا سند صحيح، رجاله كلهم ثقات رجال الشيخين غير محمد بن إسماعيل هذا.
‏‏‏‏قال ابن أبي حاتم (3 / 2 / 190) :
‏‏‏‏" سمعت منه بمكة، وهو صدوق ".
‏‏‏‏وهذه الطريق عزاها الحافظ (6 / 155) للنسائي وأبي عوانة وابن حبان.
‏‏‏‏الطريق الرابعة: أخرجها الحاكم (2 / 129) عن مبارك بن فضالة عن عبيد الله
‏‏‏‏ابن عمر عن سعيد المقبري عن أبي هريرة مثل الرواية الثانية، وزاد في آخره:
‏‏‏‏" فقال كعب: صدق الله ورسوله، هكذا والله في كتاب الله، يعني في التوراة،
‏‏‏‏ثم قال: يا أبا هريرة أحدثكم النبي صلى الله عليه وسلم أي نبي كان؟ قال: لا
‏‏‏‏قال كعب: هو يوشع بن نون، قال: فحدثكم أي قرية هي؟ قال: لا، قال: هي
‏‏‏‏مدينة أريحا ".
‏‏‏‏وقال الحاكم:
‏‏‏‏" حديث غريب صحيح ". ووافقه الذهبي!
‏‏‏‏كذا قالا، ومبارك بن فضالة مدلس وقد عنعنه، فليس إسناده صحيحا، بل ولا
‏‏‏‏حسنا، ومن هذه الطريق رواه البزار أيضا، كما في " البداية والنهاية " لابن
‏‏‏‏كثير (1 / 324) .
‏‏‏‏ثم إن في هذه الطريق نكارة واضحة، وهي في هذه الزيادة، فإن فيها تسميته
‏‏‏‏__________جزء : 1 /صفحہ : 396__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏النبي بـ (يوشع) موقوفا على كعب، وهي في الرواية الأولى مرفوعة إلى النبي
‏‏‏‏صلى الله عليه وسلم .
‏‏‏‏وفيها تسمية المدينة بـ (أريحا) ، وفي الرواية الأولى أنها بيت المقدس
‏‏‏‏وهذا هو الصواب، ومن الغريب أن يغفل عن هذا الحافظ ابن حجر، فيقول في تفسير
‏‏‏‏(القرية) المذكورة في رواية " الصحيحين ":
‏‏‏‏" هي أريحا، بفتح الهمزة وكسر الراء، بعدها تحتانية ساكنة ومهملة مع القصر
‏‏‏‏سماها الحاكم في روايته عن كعب ".
‏‏‏‏فغفل عما ذكرنا من تسميتها بـ " بيت المقدس " في الحديث المرفوع مع أنه قد ذكره
‏‏‏‏قبيل ذلك في كتابه وصححه كما نقلته عنه آنفا.
‏‏‏‏وقد تنبه لذلك الحافظ ابن كثير، فإنه بعد أن نقل عن أهل الكتاب أن حبس الشمس
‏‏‏‏ليوشع وقع في فتح (أريحا) قال (1 / 323) :
‏‏‏‏" فيه نظر، والأشبه - والله أعلم - أن هذا كان في فتح بيت المقدس الذي هو
‏‏‏‏المقصود الأعظم، وفتح (أريحا) كان وسيلة إليه ".
‏‏‏‏ثم استدل على ذلك بالرواية الأولى للحديث، ثم قال بعد أن ساقه من طريق أحمد
‏‏‏‏وحده:
‏‏‏‏" انفرد به أحمد من هذا الوجه، وهو على شرط البخاري. وفيه دلالة على أن
‏‏‏‏الذي فتح بيت المقدس هو يوشع بن نون عليه السلام لا موسى، وأن حبس الشمس
‏‏‏‏__________جزء : 1 /صفحہ : 397__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏كان
‏‏‏‏في فتح بيت المقدس لا أريحا لما قلنا ".
‏‏‏‏غريب الحديث
‏‏‏‏(بضع امرأة) . قال الحافظ:
‏‏‏‏" بضم الموحدة وسكون المعجمة، البضع يطلق على الفرج والتزويج والجماع
‏‏‏‏والمعاني الثلاثة لائقة هنا، ويطلق أيضا على المهر وعلى الطلاق ".
‏‏‏‏(ولما يبن بها) أي لم يدخل عليها، لكن التعبير بـ (لما) يشعر بتوقع ذلك.
‏‏‏‏(خلفات) بفتح المعجمة وكسر اللام بعدها فاء خفيفة جمع (خلفة) وهي الحامل
‏‏‏‏من النوق، وقد يطلق على غير النوق.
‏‏‏‏(احبسها على شيئا) هو منصوب نصب المصدر، أي قدر ما تقتضي حاجتنا من فتح
‏‏‏‏البلد. قال عياض، اختلف في حبس الشمس هنا، فقيل: ردت على أدراجها، وقيل:
‏‏‏‏وقفت، وقيل: بطئت حركتها. وكل ذلك محتمل، والثالث أرجح عند ابن بطال
‏‏‏‏وغيره.
‏‏‏‏قلت: وأيها كان الأرجح، فالمتبادر من الحبس أن الغرض منه أن يتمكن النبي
‏‏‏‏يوشع وقومه من صلاة العصر قبل غروب الشمس، وليس هذا هو المراد، بل الغرض،
‏‏‏‏أن يتمكن من الفتح قبل الليل، لأن الفتح كان يوم الجمعة، فإذا دخل الليل دخل
‏‏‏‏يوم السبت الذي حرم الله عليهم العمل، وهذا إذا صح ما ذكره ابن كثير عن أهل
‏‏‏‏الكتاب:
‏‏‏‏" وذكروا أنه انتهى من محاصرته لها يوم الجمعة بعد العصر، فلما غربت الشمس
‏‏‏‏أو كادت تغرب، ويدخل عليهم السبت الذي جعل عليهم وشرع لهم ذلك الزمان ...
‏‏‏‏والله أعلم.
‏‏‏‏__________جزء : 1 /صفحہ : 398__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏من فوائد الحديث
‏‏‏‏1 - قال المهلب: فيه أن فتن الدنيا تدعو النفس إلى الهلع ومحبة البقاء.
‏‏‏‏لأن من ملك بضع امرأة، ولم يدخل بها، أو دخل بها، وكان على قرب من ذلك،
‏‏‏‏فإن قلبه متعلق بالرجوع إليها، ويجد الشيطان السبيل إلى شغل قلبه عما هو عليه
‏‏‏‏وكذلك غير المرأة من أحوال الدنيا.
‏‏‏‏2 - قال ابن المنير: يستفاد منه الرد على العامة في تقديمهم الحج على الزواج،
‏‏‏‏ظنا منهم أن التعفف إنما يتأكد بعد الحج، بل الأولى أن يتعفف ثم يحج.
‏‏‏‏قلت: وقد روي في موضوع الحج قبل الزواج أو بعده حديثان كلاهما عن أبي هريرة
‏‏‏‏مرفوعا، ولكنهما موضوعان، كما بينته في " سلسلة الأحاديث الضعيفة "
‏‏‏‏(رقم 221 - 222) .
‏‏‏‏3 - وفيه أن الشمس لم تحبس لأحد إلا ليوشع عليه السلام، ففيه إشارة إلى ضعف
‏‏‏‏ما يروى أنه وقع ذلك لغيره، ومن تمام الفائدة أن أسوق ما وقفنا عليه من ذلك:
‏‏‏‏1 - ما ذكره ابن إسحاق في " المبتدأ " من طريق يحيى بن عروة بن الزبير عن أبيه
‏‏‏‏أن الشمس حبست لموسى عليه السلام لما حمل تابوت يوسف صلى الله عليه وسلم .
‏‏‏‏قلت: وهذا موقوف، والظاهر أنه من الإسرائيليات. وقصة نقل موسى لعظام يوسف
‏‏‏‏عليهما السلام من قبره في مصر في " المستدرك " (2 / 571 - 572) بسند صحيح عنه
‏‏‏‏صلى الله عليه وسلم وليس فيها ذكر لحبس الشمس.
‏‏‏‏2 - أنها حبست لداود عليه السلام.
‏‏‏‏أخرجه الخطيب في " ذم النجوم " له من طريق أبي حذيفة، وابن إسحاق في
‏‏‏‏" المبتدأ " بإسناد له عن علي موقوفا مطولا.
‏‏‏‏قال الحافظ:
‏‏‏‏__________جزء : 1 /صفحہ : 399__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏وإسناده ضعيف جدا، وحديث أبي هريرة المشار إليه عند أحمد أولى، فإن رجال
‏‏‏‏إسناده محتج بهم في الصحيح، فالمعتمد أنها لم تحبس إلا ليوشع ".
‏‏‏‏3 - أنها حبست لسليمان بن داود عليهما السلام، في قصة عرضه للخيل، وقوله
‏‏‏‏الذي حكاه الله عنه في القرآن: " ردوها علي ".
‏‏‏‏رواه الثعلبي ثم البغوي عن ابن عباس. قال الحافظ:
‏‏‏‏" وهذا لا يثبت عن ابن عب


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