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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
بیماری، نماز جنازہ، قبرستان
बीमारी, नमाज़ जनाज़ा और क़ब्रस्तान
1174. کیا میت کو اہل میت کے نوحہ کی وجہ سے عذاب ہوتا ہے
“ क्या मय्यत को रोने पीटने और मातम करने से अज़ाब होता है ”
حدیث نمبر: 1747
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
- (إن الكافر ليزيده الله عز وجل ببكاء اهله عذابا).- (إنّ الكافر ليزيدُه الله عز وجل ببكاءِ أهلهِ عذاباً).
عبداللہ بن ابوملیکہ کہتے ہیں: میں سیدنا عبداللہ بن عمر رضی اللہ عنہما کے پاس تھا، ہم ام ابان بنت عثمان بن عفان کے جنازے کا انتظار کر رہے تھے، عمرو بن عثمان بھی آپ کے پاس تھے، اتنے میں سیدنا عبداللہ بن عباس رضی اللہ عنہما ایک رہنما کی رہنمائی میں تشریف لے آئے۔ میرا خیال ہے کہ ان کے رہنما نے انہیں سیدنا ابن عمر رضی اللہ عنہ کی مجلس کے بارے میں بتلایا۔ وہ آگے بڑھے اور میرے ساتھ بیٹھ گئے۔ اب میں سیدنا ابن عمر رضی اللہ عنہما اور سیدنا ابن عباس رضی اللہ عنہما کے درمیان آ گیا۔ گھر سے (رونے کی) آواز آئی، عبداللہ بن عمر رضی اللہ عنہما نے کہا: میں نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کو یہ فرماتے سنا کہ: میت کو اس پر اس کے اہل و عیال کے رونے کی وجہ سے عذاب ہوتا ہے۔ سیدنا عبداللہ بن عباس رضی اللہ عنہما نے کہا: ہم امیر المؤمنین عمر بن خطاب رضی اللہ عنہ کے ساتھ سفر میں تھے، جب بیدا مقام پر پہنچے تو آپ رضی اللہ عنہ نے ایک آدمی کو ایک درخت کے سائے میں دیکھا اور مجھے حکم دیا کہ جاؤ اور دیکھ کر آؤ کہ یہ آدمی کون ہے؟؟ میں گیا اور دیکھا کہ وہ صہیب ہے، واپس پلٹا اور آپ کو بتلایا کہ وہ صہیب ہے۔ سیدنا عمر رضی اللہ عنہ نے کہا: اسے کہو کہ ہمارے ساتھ آ جائے۔ میں نے کہا: کہ ان کے ساتھ بیوی بچے بھی ہیں۔ آپ نے فرمایا: بیشک بیوی بچے ہوں، بس اسے ہمارے ساتھ مل جانا چاہیے۔ جب ہم مدینہ پہنچے تو تھوڑے ہی دنوں کے بعد امیر المؤمنین پر قاتلانہ حملہ ہوا۔ صہیب آئے اور کہا: ہائے میرے بھائی! ہائے میرے ساتھی! سیدنا عمر رضی اللہ عنہ نے کہا: کیا تو نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کی یہ حدیث نہیں سنی کہ میت کو اس پر اس کے اہل و عیال کے رونے کی وجہ سے عذاب ہوتا ہے۔ (یہ سن کر) میں سیدہ عائشہ رضی اللہ عنہا کے پاس آیا اور سیدنا عمر رضی اللہ عنہ کی بیان کردہ حدیث ان کے سامنے رکھی۔ سیدہ عائشہ رضی اللہ عنہا نے کہا: اللہ کی قسم رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے ایسی کوئی حدیث بیان نہیں کی کہ میت کو کسی کے رونے کی وجہ سے عذاب ہوتا ہے، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے تو یہ فرمایا تھا کہ: اللہ تعالیٰ کافر کے عذاب میں اس پر اس کے اہل و عیال کے رونے کی وجہ سے اضافہ کرتے ہیں۔ پھر سیدہ عائشہ رضی اللہ عنہا نے فرمایا: وہی اللہ ہے جو ہنساتا ہے اور رلاتا ہے (اور کوئی بوجھ اٹھانے والا دوسرے کا بوجھ نہیں اٹھائے گا۔) جبکہ ایوب کی روایت، جو انہوں نے ابن ابوملیکہ سے اور انہوں نے قاسم سے روایت کی، میں ہے کہ جب سیدہ عائشہ رضی اللہ عنہا کو سیدنا عمر رضی اللہ عنہ اور سیدنا عبداللہ بن عمر رضی اللہ عنہما کی حدیث کا پتہ چلا تو انہوں نے کہا: جن صحابہ سے تم مجھے احادیث بیان کر رہے ہو، وہ نہ جھوٹے ہیں اور نہ جھٹلائے گئے ہیں، لیکن سننے میں غلطی لگ سکتی ہے۔
अब्दुल्लाह बिन अबू मुलेकह कहते हैं कि मैं हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि अल्लाहु अन्हुमा के पास था, हम उम्म अबान बिन्त उस्मान बिन अफ़्फ़ान के जनाज़े का इंतिज़ार कर रहे थे, अमरो बिन उस्मान भी आप के पास थे, इतने में हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हुमा एक व्यक्ति के साथ आए। मेरा ख़्याल है कि उन के साथी ने उन्हें हज़रत इब्न उमर रज़ि अल्लाहु अन्ह की सभा के बारे में बतलाया। वह आगे बढ़े और मेरे साथ बैठ गए। अब मैं हज़रत इब्न उमर रज़ि अल्लाहु अन्हुमा और हज़रत इब्न अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हुमा के बीच आ गया। घर से (रोने की) आवाज़ आई, अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि अल्लाहु अन्हुमा ने कहा, मैं ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह कहते हुए सुना कि “मय्यत को उस पर उस के परिवार और रिश्तेदारों के रोने के कारण अज़ाब होता है।” हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हुमा ने कहा कि हम अमीर मोमिनीन उमर बिन ख़त्ताब रज़ि अल्लाहु अन्ह के साथ यात्रा में थे, जब बेदाअ मुक़ाम पर पहुंचे तो आप रज़ि अल्लाहु अन्ह ने एक आदमी को एक पेड़ की छाया में देखा और मुझे हुक्म दिया कि जाओ और देख कर आओ कि यह आदमी कौन है ? मैं गया और देखा कि वह सुहैब है, वापस पलटा और आप को बतलाया कि वह सुहैब है। हज़रत उमर रज़ि अल्लाहु अन्ह ने कहा कि उस से कहो कि हमारे साथ आ जाए। मैं ने कहा कि उन के साथ पत्नी और बच्चे भी हैं। आप ने कहा बेशक पत्नी और बच्चे हों, बस उसे हमारे साथ मिल जाना चाहिए। जब हम मदीने पहुंचे तो थोड़े ही दिनों के बाद अमीरुल मोमिनीन पर क़त्ल कर देने वाला हमला हुआ। सुहैब आए और कहा, हाए मेरे भाई, हाए मेरे साथी, हज़रत उमर रज़ि अल्लाहु अन्ह ने कहा, क्या तू ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की यह हदीस नहीं सुनी कि मय्यत को उस पर उस के परिवार और रिश्तेदारों के रोने के कारण अज़ाब होता है।” (यह सुन कर) मैं हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहु अन्हा के पास आया और हज़रत उमर रज़ि अल्लाहु अन्ह की कही गई हदीस उन के सामने रखी। हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने कहा कि अल्लाह की क़सम रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐसी कोई हदीस नहीं कही कि मय्यत को किसी के रोने के कारण अज़ाब होता है, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तो यह कहा था कि “अल्लाह तआला काफ़िर पर अज़ाब को उस के परिवार और रिश्तेदारों के रोने के कारण बढ़ा देता है।” फिर हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने कहा कि वही अल्लाह है जो हंसाता है और रुलाता है (और कोई बोझ उठाने वाला दूसरे का बोझ नहीं उठाए गा) जबकि अयूब की रिवायत, जो उन्हों ने इब्न अबू मुलेकह से और उन्हों ने क़ासिम से रिवायत की है उस में है कि जब हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहु अन्हा को हज़रत उमर रज़ि अल्लाहु अन्ह और हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि अल्लाहु अन्हुमा की हदीस का पता चला तो उन्हों ने कहा, जिन सहाबा से तुम मुझे अहादीस बता रहे हो, वे न झूठे हैं और न झुठलाए गए हैं लेकिन सुनने में ग़लती हो सकती है।
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 3511

قال الشيخ الألباني:
- (إنّ الكافر ليزيدُه الله عز وجل ببكاءِ أهلهِ عذاباً) .
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‏‏‏‏أخرجه البخاري (1287 و1288) ، ومسلم (3/42- 43) ، وابن حبان (5/54/ 3126) ، وأحمد (1/41- 42) كلهم من طريق عبد الله بن أبي مُليكة قال:
‏‏‏‏كنت عند عبد الله بن عمر، ونحن ننتظر جنازة أم أبان ابنة عثمان بن عفان، وعنده عمرو بن عثمان، فجاء ابن عباس يقوده قائد، قال: فأراه أخبره بمكان ابن عمر، فجاء حتى جلس إلى جنبي، وكنت بينهما؛ فإذا صَوْتٌ من الدار، فقال ابن عمر: سمعت رسول الله - صلى الله عليه وسلم - يقول:
‏‏‏‏"إن الميت يعذب ببكاء أهله عليه "، فأرسلها عبد الله مرسلة.
‏‏‏‏قال ابن عباس:
‏‏‏‏كنا مع أمير المؤمنين عمر، حتى إذا كنا بالبيداء؛ إذا هو برجل نازل في ظل
‏‏‏‏__________جزء : 7 /صفحہ : 1465__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏شجرة، فقال لي: انطلق فاعلم من ذاك؟ فانطلقت؛ فإذا هو صهيب، فرجعت إليه فقلت: إنك أمرتني أن أَعْلَمَ لك من ذاك؟ وإنه صهيب. فقال: مروه فليلحق بنا. فقلت: إن معه أهله! قال: وإن كان معه أهله- وربما قال أيوب مرة: فليلحق بنا-! فلما بلغنا المدينة؛ لم يلبث أمير المؤمنين أن أصيب، فجاء صهيب، فقال: واأخاه! واصاحباه! فقال عمر: ألم تعلم- أو لم تسمع- أن رسول الله - صلى الله عليه وسلم - قال:
‏‏‏‏"إن الميت ليعذب ببعض بكاء أهله عليه "؟!
‏‏‏‏فأما عبد الله فأرسلها مرسلة، وأما عمر فقال: "ببعض بكاء ... ".
‏‏‏‏فأتيت عائشة- رضي الله عنها-، فذكرت لها قول عمر؟ فقالت: لا والله! ما قاله رسول الله - صلى الله عليه وسلم -، إن الميت يعذب ببكاء أحد! ولكن رسول الله - صلى الله عليه وسلم - قال: ... فذكرت الحديث. [قالت] :
‏‏‏‏وإن الله لهو أضحك وأبكى، ﴿ ولا تزر وازرة وزر أخرى﴾ !
‏‏‏‏قال أيوب: وقال ابن أبي مليكة: حدثني القاسم قال:
‏‏‏‏لما بلغ عائشة رضي الله عنها قول عمر وابن عمر؛ قالت:
‏‏‏‏إنكم لتحدثوني عن غير كاذبين، ولا مكذبين، ولكن السمع يخطئ.
‏‏‏‏وأخرجه النسائي (1/263) ببعض اختصار.
‏‏‏‏(تنبيه) : من الواضح من السياق المتقدم: أن السيدة عائشة رضي الله تعالى عنها تخطِّئ عمر، وابنه- رضي الله عنهما- فيما. سمعا رسول الله - صلى الله عليه وسلم - يقول:
‏‏‏‏"إن الميت ليعذب ببكاء- أو ببعض بكاء- أهله عليه ". وعللت ذلك بأن السمع يخطئ، فتذهب إلى أن الصواب في الحديث: أن الكافر هو الذي يعذب ببكاء أهله.
‏‏‏‏__________جزء : 7 /صفحہ : 1466__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏ونحن نقول: إن التعليل المذكور يرد عليها أيضاً، بل هي به أولى؛ لأنها فرد وهما اثنان، كيف ومعهما ثالث وهو: المغيرة بن شعبة؟! انظر حديثه في "أحكام الجنائز" (41/7) ، ومعهم رابع وهو: عمران بن حصين؛ "أحكام الجنائز" (40/6) ، فتخطئة هؤلاء من أجل فرد أبعد ما يكون عن الصواب.
‏‏‏‏لكني أقول: إنه لا ضرورة لتخطئة أم المؤمنين عائشة، بل إنها قد حدثت بما سمعته من النبي - صلى الله عليه وسلم -، ولعل ذلك كان لمناسبة وفاة أحد الكفار من اليهود أو غيرهم؛ علماً بأنه لا منافاة بين حديثها وحديث الجماعة؛ فإن لفظ: "الميت " عندهم يشمل الكافر كما هو ظاهر. والله أعلم.
‏‏‏‏وأما احتجاجها بقوله تعالى: ﴿ ولا تزر وازرة وزر أخرى﴾ ؛ فغير وارد على كل ميت، وإنما المراد به الميت الذي لم يَنْهَ أهله عن البكاء عليه، وهو يعلم عادتهم، ونحو ذلك من التأويل الذي لا بد منه لدفع التعارض المُدّعى. والله أعلم. * ¤


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