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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
سفر، جہاد، غزوہ اور جانور کے ساتھ نرمی برتنا
यात्रा, जिहाद, जंग और जानवरों के साथ नरमी करना
1387. جہادی سفر میں پہرہ داری اور اس کی فضیلت
“ जिहादी यात्रा में चौकीदारी और उसकी फ़ज़ीलत ”
حدیث نمبر: 2122
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
-" استقبل هذا الشعب حتى تكون في اعلاه، ولا نغرن من قبلك الليلة".-" استقبل هذا الشعب حتى تكون في أعلاه، ولا نغرن من قبلك الليلة".
سیدنا سہل بن حنظلیہ رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ حنین والے دن صحابہ، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے ساتھ چل رہے تھے، دیر تک چلتے رہے، حتٰی کہ شام ہو گئی۔ نماز کا وقت آ گیا۔ ایک گھڑ سوار آیا اور کہا: اے اللہ کے رسول! میں آپ کے آگے آگے چلتا رہا اور فلاں فلاں پہاڑ کو عبور کرتا گیا، حتی کہ صبح سویرے ہوازن قبیلے تک پہنچ گیا، ان کے آباء اپنی بیویوں، اونٹوں اور بھیڑ بکریوں سمیت حنین میں جمع ہیں۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم مسکرائے اور فرمایا: یہ مال تو کل مسلمانوں کی غنیمت بننے والا ہے، انشاء اللہ تعالیٰ۔ پھر فرمایا: آج رات کون پہرہ دے گا؟ انس بن ابومرثد غنوی نے کہا: اے اللہ کے رسول! میں۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: سوار ہو جا۔ وہ اپنے گھوڑے پر سوار ہوا اور رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس آیا، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: اس گھاٹی کی طرف چلنا شروع کر دے اور اس کی بلند چوٹی تک پہنچ جا، ہمیں آج رات تیری سمت سے کوئی دھوکا نہیں دیا جانا چاہئے۔ جب صبح ہوئی تو رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم جائے نماز کی طرف نکلے، دو رکعت سنتیں پڑھیں اور پوچھا: کیا تم نے اپنے گھوڑ سوار کو محسوس کیا؟ انہوں نے کہا: اے اللہ کے رسول! ہمیں تو محسوس نہیں ہوا۔ پھر اقامت کہی گئی، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے نماز پڑھنا شروع کی اور نماز میں ہی اس گھاٹی کی طرف متوجہ ہوتے رہے، یہاں تک کہ نماز مکمل کی اور سلام پھیرا۔ پھر فرمایا خوش ہو جاؤ، تمھارا گھوڑ سوار آ گیا۔ ہم نے گھاٹی کے درختوں کے بیچ سے دیکھنا شروع کر دیا۔ اچانک وہ پہنچ گیا، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے سامنے کھڑا ہوا، سلام دیا اور کہا: رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے حکم کے مطابق میں گیا اور وادی کی چوٹی تک پہنچ گیا، جب صبح ہوئی تو میں نے دو گھاٹیوں کو عبور کیا، لیکن کوئی آدمی مجھے نظر نہ آیا۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے اس سے پوچھا: کیا تو رات کو اپنی سواری سے اترا ہے؟ اس نے کہا: نہیں، مگر نماز پڑھنے یا قضائے حاجت کرنے کے لیے۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے اسے فرمایا: تو نے (اپنے حق میں جنت کو) واجب کر دیا ہے، آج کے بعد اگر عمل نہ بھی کرے تو کوئی حرج نہیں۔
हज़रत सहल बिन हन्ज़लियह रज़ि अल्लाहु अन्ह से रिवायत है कि हुनैन वाले दिन सहाबा, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ चल रहे थे, देर तक चलते रहे, यहां तक कि शाम हो गई। नमाज़ का समय आ गया। एक घुड़सवार आया और कहा ! ऐ अल्लाह के रसूल, मैं आप के आगे आगे चलता रहा और फ़ुलां फ़ुलां पहाड़ को पार करता गया, यहां तक कि सुबह सवेरे हवाज़िन क़बीले तक पहुंच गया, उन के पूर्वज अपनी पत्नियों, ऊँटों और भेड़ बकरियों सहित हुनैन में जमा हैं। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुस्कुराए और फ़रमाया ! “यह माल तो कल मुसलमानों का माले ग़नीमत बनने वाला है, इन शाअ अल्लाह।” फिर फ़रमाया ! “आज रात कौन पहरा देगा ?” अनस बिन अबू मरसद अलग़नवी ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल ! मैं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “सवार हो जा।” वह अपने घोड़े पर सवार हुआ और रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “इस घाटी की ओर चलना शुरू करदे और इस की ऊँची चोटी तक पहुंच जा, हमें आज रात तेरी दिशा से कोई धोखा नहीं दिया जाना चाहिए।” जब सुबह हुई तो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज़ के लिये निकले, दो रकअत सुन्नतें पढ़ीं और पूछा ! “क्या तुम ने अपने घुड़सवार को महसूस किया ?” उन्हों ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल हमें तो महसूस नहीं हुआ फिर इक़ामत कही गई, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ पढ़ना शुरू की और नमाज़ में ही उस घाटी की ओर ध्यान रखे रहे, यहाँ तक कि नमाज़ पूरी की और सलाम फेरा फिर फ़रमाया “ख़ुश हो जाओ, तुम्हारा घुड़सवार आ गया।” हम ने घाटी के पेड़ों के बीच से देखना शुरू कर दिया। अचानक वह पहुंच गया, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने खड़ा हुआ, सलाम किया और कहा ! रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म के अनुसार मैं गया और घाटी की चोटी तक पहुंच गया, जब सुबह हुई तो मैं ने दो घाटियों को पार किया लेकिन कोई व्यक्ति मुझे नज़र न आया। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस से पूछा ! “क्या तू रात को अपनी सवारी से उतरा है ?” उस ने कहा कि नहीं, मगर नमाज़ पढ़ने या मल करने के लिये। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस से कहा ! “तू ने (अपने लिये जन्नत को) वाजिब कर लिया है, आज के बाद यदि कर्म न भी करे तो कोई हर्ज नहीं।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 378

قال الشيخ الألباني:
- " استقبل هذا الشعب حتى تكون في أعلاه، ولا نغرن من قبلك الليلة ".
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‏‏‏‏هو قطعة من حديث سهل بن الحنظلية أنهم ساروا مع رسول الله صلى الله عليه
‏‏‏‏وسلم يوم حنين فأطنبوا السير حتى كانت عشية فحضرت الصلاة عند رسول الله صلى
‏‏‏‏الله عليه وسلم فجاء رجل فارس فقال: يا رسول الله إني انطلقت بين أيديكم حتى
‏‏‏‏طلعت جبل كذا وكذا فإذا أنا بهوازن على بكرة آبائهم بظعنهم ونعمهم وشائهم
‏‏‏‏اجتمعوا إلى حنين. فتبسم رسول الله صلى الله عليه وسلم وقال: تلك غنيمة
‏‏‏‏المسلمين غدا إن شاء الله تعالى، ثم قال:
‏‏‏‏من يحرسنا الليلة؟ قال أنس بن أبي مرثد الغنوي: أنا يا رسول الله، قال:
‏‏‏‏فاركب. فركب فرسا له، فجاء إلى رسول الله صلى الله عليه وسلم فقال رسول الله
‏‏‏‏صلى الله عليه وسلم : الحديث، فلما أصبحنا خرج رسول الله صلى الله عليه وسلم
‏‏‏‏إلى مصلاه فركع ركعتين ثم قال: هل أحسستم فارسكم؟ قالوا: يا رسول الله ما
‏‏‏‏أحسسناه، فثوب بالصلاة فجعل رسول الله صلى الله عليه وسلم وهو يصلي يلتفت
‏‏‏‏إلى الشعب حتى إذا قضى صلاته وسلم قال: أبشروا فقد جاءكم فارسكم فجعلنا ننظر
‏‏‏‏إلى خلال الشجر في الشعب فإذا هو قد جاء حتى وقف على رسول الله صلى الله عليه
‏‏‏‏وسلم فسلم فقال: إني انطلقت حتى كنت في أعلى هذا الشعب حيث أمرني رسول الله
‏‏‏‏صلى الله عليه وسلم فلما أصبحت طلعت الشعبين كليهما فنظرت، فلم أر أحدا فقال
‏‏‏‏له رسول الله صلى الله عليه وسلم : هل نزلت الليلة؟ قال: لا إلا مصليا أو
‏‏‏‏قاضيا حاجة، فقال له رسول الله صلى الله عليه وسلم : قد أوجبت، فلا عليك ألا
‏‏‏‏تعمل بعدها.
‏‏‏‏أخرجه أبو داود (1 / 391 - 392) والحاكم (2 / 83 - 84) من طريق أبي توبة
‏‏‏‏الربيع بن نافع الحلبي حدثنا معاوية بن سلام أخبرني زيد بن سلام حدثنا
‏‏‏‏أبو كبشة السلولي أنه سمع سهل بن الحنظلية به.
‏‏‏‏وقال الحاكم:
‏‏‏‏__________جزء : 1 /صفحہ : 723__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏صحيح الإسناد ووافقه الذهبي. وهو كما قالا.
‏‏‏‏والحديث عزاه المنذري (2 / 156) وابن كثير في " البداية " (4 / 356)
‏‏‏‏للنسائي أيضا، ولم ينسبه إليه النابلسي في " الذخائر "، ولم أجده في
‏‏‏‏" سننه الصغرى " فالظاهر أنه في " سننه الكبرى ". ¤


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