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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
ایمان توحید، دین اور تقدیر کا بیان
तौहीद पर ईमान, दीन और तक़दीर
167. عہدہ سنبھالنے والے متنبہ رہیں، اللہ تعالیٰ کے نام پر سوال کرنے والا یا جس سے اس طرح سوال کیا جائے، دونوں ملعون کیسے؟
“ पद संभालने वाले सतर्क रहैं अल्लाह तआला के नाम पर सवाल करने वाला या जिस से सवाल किया जाए दोनों लाअनती कैसे ”
حدیث نمبر: 266
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
-" ملعون من سال بوجه (الله) وملعون من يسال بوجه الله ثم منع سائله ما لم يساله هجرا".-" ملعون من سأل بوجه (الله) وملعون من يسأل بوجه الله ثم منع سائله ما لم يسأله هجرا".
یزید بن مہلب کہتے ہیں: جب میں خراسان کا حاکم بنا تو میں نے کہا: مجھے ایسے آدمی کے پاس لے جاؤ جو خصائل خیر سے بدرجہ اکمل متصف ہو۔ سو مجھے ابوبردہ بن ابوموسی اشعری کے پاس لایا گیا۔ جب میں نے ان کو دیکھا تو انھیں فائق پایا اور جب ان سے کلام کی تو ان کے باطن کو ظاہر سے افضل پایا۔ میں نے کہا: میں تجھے اپنی فلاں فلاں ڈیوٹی کا امیر بناتا ہوں۔ انہوں نے معذرت کرنا چاہی، لیکن میں نے ان کی معذرت قبول کرنے سے انکار کر دیا۔ انہوں نے کہا: اے امیر! کیا میں تجھے ایک حدیث بیان نہ کروں جو میرے باپ نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم سے سنی؟ میں نے کہا: بیان کیجئے۔ انہوں نے کہا: میرے باپ نے نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کو یہ فرماتے ہوئے سنا: جس آدمی نے ایسے کام کی ذمہ داری قبول کی، جس کا وہ اہل نہیں تو وہ اپنا ٹھکانہ جہنم میں تیار کر لے۔ امیر صاحب! میں گواہی دیتا ہوں کہ میں اس ذمہ داری کا اہل نہیں ہوں، جو آپ مجھے سونپنا چاہتے ہیں . میں نے اسے کہا: تیری اس ساری گفتگو نے مجھے مزید آمادہ کیا ہے اور رغبت دلائی ہے کہ یہ عہدہ تجھے ہی سونپا جائے، لہذا جا اور یہ ذمہ داری سنبھال لے، اب میں تجھے معاف نہیں کروں گا. یہ سن کر وہ چلے گئے، کچھ وقت وہاں ٹھہرے رہے (اور اپنی ذمہ داریاں ادا کرتے رہے)۔ ایک دن امیر یزید کے پاس آنے کی اجازت طلب کی۔ جب اجازت ملی تو انہوں نے آ کر کہا: اے امیر! کیا میں تجھے ایسی حدیث بیان نہ کروں جو مجھے میرے باپ نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے حوالے سے بیان کی؟ انہوں نے کہا: بیان کیجئے۔ ابوبردہ نے کہا: وہ حدیث یہ ہے: وہ آدمی ملعون ہے جس نے اللہ تعالیٰ کی ذات کا واسطہ دے کر سوال کیا اور وہ بھی ملعون ہے جس سے اللہ کی ذات کے واسطے سے سوال کیا گیا اور اس نے سائل کو کچھ نہ دیا، الا یہ کہ وہ کسی بیہودہ چیز کا سوال کرے۔ اب میں اللہ تعالیٰ کی ذات کا واسطہ دے کر آپ سے یہ سوال کرتا ہوں کہ اے امیر! اس عہدے کے سلسلہ میں میری معذرت قبول کرو، پس انہوں نے ان کی معذرت قبول کر لی۔
यज़ीद बिन मुहलब कहते हैं कि जब मैं ख़रासान का प्रधान बना तो में ने कहा कि मुझे ऐसे आदमी के पास ले जाओ जो अच्छाइयों से मालामाल हो। तो मुझे अबु बुरदह बिन अबु मूसा अशअरी के पास लाया गया। जब मैं ने उनको देखा तो उन्हें अच्छा पाया और जब उन से बात की तो उनके अंदर को बाहर से अफ़ज़ल पाया। मैं ने कहा कि मैं तुझे अपने फ़लां फ़लां काम का अधिकारी बनाता हूँ। उन्हों ने इन्कार करना चाहा, लेकिन में ने उनका इन्कार स्वीकार नहीं किया। उन्हों ने कहा कि ऐ अमीर, क्या मैं तुझे एक हदीस न सुना दूँ जो मेरे पिता ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुनी ? मैं ने कहा कि सुनाइये। उन्हों ने कहा कि मेरे पिता ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह कहते हुए सुना ! “जिस आदमी ने ऐसे काम की ज़िम्मेदारी स्वीकार की, जिस को वह पूरा करने के क़ाबिल नहीं है तो वह अपना ठिकाना जहन्नम में तैयार करले।” अमीर साहिब कि मैं गवाही देता हूँ कि मैं इस ज़िम्मेदारी को पूरा करने के क़ाबिल नहीं हूँ, जो आप मुझे सौंपना चाहते हैं . मैं ने उस से कहा कि तेरी इस सारी बातचीत ने मुझे और अधिक तैयार किया है और इच्छा दिलाई है कि ये पद तुझे ही सौंपा जाए, इसलिए जा और यह ज़िम्मेदारी संभाल ले, अब मैं तुझे क्षमा नहीं करूँगा यह सुनकर वह चले गए, कुछ समय वहां ठहरे रहे (और अपनी ज़िम्मेदारियां पूरी करते रहे)। एक दिन अमीर यज़ीद के पास आने की अनुमति मांगी। जब अनुमति मिली तो उन्हों ने आकर कहा कि ऐ अमीर, क्या मैं तुझे ऐसी हदीस न सुना दूँ जो मुझे मेरे पिता ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हवाले से सुनाई थी ? उन्हों ने कहा कि सुनाइये। अबु बुरदह ने कहा कि वह हदीस ये है ! “लाअनत है उस आदमी पर जिस ने अल्लाह तआला की ज़ात का वासता देकर सवाल किया और लाअनत है उस पर भी जिस से अल्लाह की ज़ात के वास्ते से सवाल किया गया और उसने सवाल करने वाले को कुछ न दिया, सिवाए इसके कि वह किसी बेहूदा चीज़ का सवाल करे।” अब मैं अल्लाह तआला की ज़ात का वासता देकर आप से यह सवाल करता हूँ कि ऐ अमीर, इस पद के लिए मेरा इन्कार स्वीकार करो, बस उन्हों ने उनका इन्कार स्वीकार कर लिया।
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 2290

قال الشيخ الألباني:
- " ملعون من سأل بوجه (الله) وملعون من يسأل بوجه الله ثم منع سائله ما لم يسأله هجرا ".
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‏‏‏‏رواه ابن عساكر (8 / 397 / 2) عن محمد بن هارون الروياني أخبرنا أحمد بن عبد
‏‏‏‏الرحمن أخبرنا عمي - يعني ابن وهب -: حدثني عبد الله بن عياش عن أبيه أن يزيد
‏‏‏‏بن
‏‏‏‏__________جزء : 5 /صفحہ : 363__________
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‏‏‏‏المهلب لما ولي خراسان قال: دلوني على رجل كل لخصال الخير، فدل على أن أبي
‏‏‏‏بردة بن أبي موسى الأشعري، فما جاءه رآه رجلا فائقا، فلما كلمه رأى
‏‏‏‏مخبرته أفضل من مرآته، قال: إني وليتك كذا وكذا من عملي، فاستعفاه فأبى أن
‏‏‏‏يعفيه، فقال: أيها الأمير! ألا أخبرك بشيء حدثنيه أبي أنه سمعه من رسول الله
‏‏‏‏صلى الله عليه وسلم ؟ قال: هاته، قال: إنه سمع النبي صلى الله عليه وسلم
‏‏‏‏يقول: " من تولى عملا وهو يعلم أنه ليس لذلك العمل أهل فليتبوأ مقعده من
‏‏‏‏النار "، قال: وأنا أشهد أيها الأمير! أني لست بأهل لما دعوتني إليه، فقال
‏‏‏‏له يزيد: ما زدت إلا أن حرضتني على نفسك ورغبتنا فيك، فأخرج إلى عهدك فإني
‏‏‏‏غير معفيك، ثم فخرج (كذا الأصل ولعل الصواب: فخرج ثم) أقام فيه ما شاء
‏‏‏‏الله أن يقيم، واستأذنه بالقدوم عليه، فأذن له، فقال: أيها الأمير! ألا
‏‏‏‏أحدثك بشيء حدثنيه أبي أنه سمع من رسول الله صلى الله عليه وسلم ؟ قال هاته،
‏‏‏‏قال: (فذكره) ، قال: وأنا أسألك بوجه الله ألا ما أعفيتني أيها الأمير!
‏‏‏‏من عملك. فأعفاه. قلت: وهذا إسناد حسن، رجاله ثقات رجال مسلم، وفي عبد
‏‏‏‏الله بن عياش ضعف من قبل حفظه، ومثله أحمد بن عبد الرحمن. ولكن هذا قد توبع
‏‏‏‏فيما يبدو لي من قول المنذري في تخريجه لهذا الحديث في " الترغيب " (2 / 17)
‏‏‏‏، فإنه قال: " رواه الطبراني، ورجاله رجال الصحيح إلا شيخه يحيى بن عثمان بن
‏‏‏‏صالح، وهو ثقة ". قلت: وهو من طبقة أحمد بن عبد الرحمن، فالظاهر أنه
‏‏‏‏متابع له. وقال الهيثمي في " المجمع " (3 / 103) : " رواه الطبراني في "
‏‏‏‏الكبير "، وإسناده حسن، على ضعف في بعضه مع توثيق ". قلت: وكأنه يشير إلى
‏‏‏‏عبد الله بن عياش. والله أعلم.
‏‏‏‏__________جزء : 5 /صفحہ : 364__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏وكذلك حسنه الحافظ العراقي، وتبعه السيوطي
‏‏‏‏كما في " المناوي ". وقد روي عن ابن عياش على وجه آخر، فقال الدولابي في "
‏‏‏‏الكنى " (1 / 43) : حدثنا يونس بن عبد الأعلى قال: أنبأ عبد الله بن وهب قال
‏‏‏‏: حدثني عبد الله بن عياش عن عبد الله بن الأسود عن أبي معقل بن أبي مسلم عن
‏‏‏‏أبي عبيدة مولى رفاعة بن رافع أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال: فذكر
‏‏‏‏الشطر الثاني منه. وذكره ابن أبي حاتم (4 / 2 / 448) في ترجمة أبي معقل بن
‏‏‏‏أبي مسلم بتمامه من طريق ابن وهب به، وقال: " سمعت أبا زرعة يقول: أبو معقل
‏‏‏‏لا يسمى، وأبو عبيدة ليست له صحبة ". وعبد الله بن الأسود لم أجد من ذكره.
‏‏‏‏وأشار إلى ذلك الهيثمي بقوله: " رواه الطبراني في " الكبير "، وفيه من لم
‏‏‏‏أعرفه ".
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