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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
روزے اور قیام کا بیان
रोज़े और क़याम ( रात की नमाज़ )
568. ایک ماہ میں صرف تین روزے رکھنے کا حکم
“ एक महीने में केवल तीन रोज़े रखने का हुक्म ”
حدیث نمبر: 853
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
-" ومن امرك ان تعذب نفسك؟! صم شهر الصبر، ومن كل شهر يوما. قلت: زدني. قال: صم شهر الصبر، ومن كل شهر يومين. قلت: زدني اجد قوة. قال: صم شهر الصبر ومن كل شهر ثلاثة ايام".-" ومن أمرك أن تعذب نفسك؟! صم شهر الصبر، ومن كل شهر يوما. قلت: زدني. قال: صم شهر الصبر، ومن كل شهر يومين. قلت: زدني أجد قوة. قال: صم شهر الصبر ومن كل شهر ثلاثة أيام".
سیدنا کہم ہلالی رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: جب میں نے اسلام قبول کیا، تو نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس آیا اور آپ کو اپنے اسلام کے بارے میں آگاہ کیا (اور چلا گیا)۔ پھر میں نے وہاں ایک سال تک قیام کیا۔ لیکن میں دبلا پتلا ہو گیا اور میرا جسم کمزور پڑ گیا۔ پھر میں آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس آیا۔ آپ نے (میرے وجود کے) نیچے والے حصے پر نگاہ ڈالی اور پھر اوپر والے حصہ پر۔ (یعنی آپ نے مجھے پہچاننے کے لیے بغوردیکھا)۔ میں نے کہا: کیا آپ مجھے پہچانتے نہیں ہیں؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: تم کون ہو؟ میں نے کہا: میں کہمس ہلالی ہوں۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: تو اتنا کمزور نظر کیوں آ رہا ہے؟ اس نے کہا: میں نے آپ (سے ملاقات کرنے) کے بعد ایک دن بھی افطار نہیں کیا اور نہ کسی رات کو سویا۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: کس نے تجھے حکم دیا کہ تو اپنے آپ کو عذاب میں مبتلا کر دے؟ صبر والے مہینے کے روزے اور (باقی مہینوں میں سے) ہر ماہ میں ایک روزہ رکھا لیا کر۔ میں کہا: میرے لیے زیادہ (روزوں کی گنجائش) نکالیں، آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: صبر والے ماہ کے روزے رکھ لے اور ہر ماہ میں دو دنوں کے۔ اس نے کہا: میرے لیے مزید (گنجائش) نکالیں، کیونکہ مجھ میں طاقت ہے۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: صبر والے مہینے کے روزے رکھ لے اور ہر ماہ میں تین دنوں کے۔
हज़रत कहमस हिलाली रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं ! जब मैं ने इस्लाम स्वीकार किया, तो नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और आप को अपने इस्लाम लाने के बारे में बताया (और चला गया)। फिर मैं ने वहां एक वर्ष तक क़याम किया। लेकिन मैं दुबला पतला हो गया और मेरा शरीर कमज़ोर पड़ गया। फिर मैं आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया। आप ने (मेरे वजूद के) नीचे वाले भाग पर नज़र डाली और फिर उपर वाले भाग पर। (यानी आप ने मुझे पहचानने के लिए ग़ौर से देखा)। मैं ने कहा ! क्या आप मुझे पहचानते नहीं हैं ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “तुम कौन हो ? मैं ने कहा ! मैं कहमस हिलाली हूँ। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! ’’ तू इतना कमज़ोर नज़र क्यों आ रहा है ?” उस ने कहा ! मैं ने आप (से मिलने) के बाद एक दिन भी इफ़तार नहीं किया और न किसी रात को सोया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “किस ने तुझे हुक्म दिया कि तू अपने आप को अज़ाब में डाल दे ? सब्र वाले महीने के रोज़े और (बाक़ी महीनों में से) हर महीने में एक रोज़ा रखा लिया कर।” मैं ने कहा ! मेरे लिए अधिक (रोज़ों की गुंजाईश) निकालें, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “सब्र वाले महीने के रोज़े रख ले और हर महीने में दो दिनों के।” उस ने कहा ! मेरे लिए और अधिक (गुंजाईश) निकालें, क्यूंकि मुझ में शक्ति है। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “सब्र वाले महीने के रोज़े रख ले और हर महीने में तीन दिनों के।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 2623

قال الشيخ الألباني:
- " ومن أمرك أن تعذب نفسك؟! صم شهر الصبر، ومن كل شهر يوما. قلت: زدني. قال: صم شهر الصبر، ومن كل شهر يومين. قلت: زدني أجد قوة. قال: صم شهر الصبر ومن كل شهر ثلاثة أيام ".
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‏‏‏‏أخرجه البخاري في " التاريخ الكبير " (4 / 1 / 238 - 239) والطيالسي في "
‏‏‏‏مسنده " (31) والطبراني في " المعجم الكبير " (19 / 194 / رقم 435) عن
‏‏‏‏حماد ابن يزيد بن مسلم: حدثنا معاوية بن قرة عن كهمس الهلالي قال:
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 244__________
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‏‏‏‏أسلمت
‏‏‏‏، فأتيت النبي صلى الله عليه وسلم فأخبرته بإسلامي، فمكثت حولا وقد ضمرت
‏‏‏‏ونحل جسمي [ثم أتيته] ، فخفض في البصر ثم رفعه، قلت: أما تعرفني؟ قال:
‏‏‏‏ومن أنت؟ قلت: أنا كهمس الهلالي. قال: فما بلغ بك ما أرى؟ قلت: ما أفطرت
‏‏‏‏بعدك نهارا، ولا نمت ليلا، فقال: ... فذكره. وأورده الحافظ في " المطالب
‏‏‏‏العالية " (1 / 303 / 1036) من رواية الطيالسي وسكت عليه، وقال الهيثمي في
‏‏‏‏" المجمع " (3 / 197) : " رواه الطبراني في " الكبير "، وفيه حماد بن يزيد
‏‏‏‏المنقري، (قلت: وفي " الجرح " المقرىء) ولم أجد من ذكره ". قلت: وقد
‏‏‏‏فاته أن البخاري ذكره في " التاريخ " (2 / 1 / 20) وكناه بأبي يزيد البصري،
‏‏‏‏وقال: " سمع معاوية بن قرة، سمع منه موسى، وسمع أباه ومحمد بن سيرين ".
‏‏‏‏وكذا ذكره أيضا ابن أبي حاتم (1 / 2 / 151) وزاد في شيوخه: بكر بن عبد
‏‏‏‏الله المزني ومخلد بن عقبة بن شرحبيل الجعفي. وفي الرواة عنه: يونس بن محمد
‏‏‏‏، ومسلم بن إبراهيم، ومحمد بن عون الزيادي، وطالوت بن عباد الجحدري.
‏‏‏‏وينبغي أن يزاد فيهم: أبو داود الطيالسي، فإنه قد روى عنه هذا الحديث، وذكره
‏‏‏‏ابن حبان أيضا في " الثقات " (2 / 62 - مخطوطة الظاهرية) وعلى هامشه بخط بعض
‏‏‏‏المحدثين: " وذكره البزار، وقال: ليس به بأس ". وللحديث شاهد من حديث
‏‏‏‏مجيبة الباهلية عن أبيها أو عمها بهذه القصة، وفي آخره زيادة أوردته من أجلها
‏‏‏‏في " ضعيف أبي داود " برقم (419) .
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 245__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏وعند الطيالسي في هذا الحديث قصة، وفي
‏‏‏‏آخرها حديث آخر أخرجه الضياء في " المختارة " برقم (258 و 259) من طريق
‏‏‏‏الطيالسي وغيره.
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