-" بعثني إلى [قومي] (باهلة)، [فانتهيت إليهم وانا طاو]، فاتيت وهم على الطعام، (وفي رواية: ياكلون دما)، فرجعوا بي واكرموني، [قالوا: مرحبا بالصدي بن عجلان، قالوا: بلغنا انك صبوت إلى هذا الرجل. قلت: لا ولكن آمنت بالله وبرسوله، وبعثني رسول الله صلى الله عليه وسلم إليكم اعرض عليكم الإسلام وشرائعه] وقالوا: تعال كل. فقلت: [ويحكم إنما] جئت لانهاكم عن هذا، وانا رسول رسول الله صلى الله عليه وسلم اتيتكم لتؤمنوا به، [فجعلت ادعوهم إلى الإسلام]، فكذبوني وزبروني، [فقلت لهم: ويحكم ائتوني بشيء من ماء فإني شديد العطش. قال: وعلي عمامتي، قالوا: لا ولكن ندعك تموت عطشا!]، فانطلقت وانا جائع ظمآن قد نزل بي جهد شديد. [قال: فاغتممت، وضربت راسي في العمامة] فنمت [في الرمضاء في حر شديد] فاتيت في منامي بشربة من لبن [لم ير الناس الذ منه، فامكنني منها]، فشربت ورويت وعظم بطني. فقال القوم: اتاكم رجل من خياركم واشرافكم فرددتموه، فاذهبوا إليه فاطعموه من الطعام والشراب ما يشتهي. فاتوني بطعام! قلت: لا حاجة لي في طعامكم وشرابكم، فإن الله قد اطعمني وسقاني، فانظروا إلى الحال التي انا عليها، [فاريتهم بطني]، فنظروا، فآمنوا بي وبما جئت به من عند رسول الله صلى الله عليه وسلم، [فاسلموا عن آخرهم]".-" بعثني إلى [قومي] (باهلة)، [فانتهيت إليهم وأنا طاو]، فأتيت وهم على الطعام، (وفي رواية: يأكلون دما)، فرجعوا بي وأكرموني، [قالوا: مرحبا بالصدي بن عجلان، قالوا: بلغنا أنك صبوت إلى هذا الرجل. قلت: لا ولكن آمنت بالله وبرسوله، وبعثني رسول الله صلى الله عليه وسلم إليكم أعرض عليكم الإسلام وشرائعه] وقالوا: تعال كل. فقلت: [ويحكم إنما] جئت لأنهاكم عن هذا، وأنا رسول رسول الله صلى الله عليه وسلم أتيتكم لتؤمنوا به، [فجعلت أدعوهم إلى الإسلام]، فكذبوني وزبروني، [فقلت لهم: ويحكم ائتوني بشيء من ماء فإني شديد العطش. قال: وعلي عمامتي، قالوا: لا ولكن ندعك تموت عطشا!]، فانطلقت وأنا جائع ظمآن قد نزل بي جهد شديد. [قال: فاغتممت، وضربت رأسي في العمامة] فنمت [في الرمضاء في حر شديد] فأتيت في منامي بشربة من لبن [لم ير الناس ألذ منه، فأمكنني منها]، فشربت ورويت وعظم بطني. فقال القوم: أتاكم رجل من خياركم وأشرافكم فرددتموه، فاذهبوا إليه فأطعموه من الطعام والشراب ما يشتهي. فأتوني بطعام! قلت: لا حاجة لي في طعامكم وشرابكم، فإن الله قد أطعمني وسقاني، فانظروا إلى الحال التي أنا عليها، [فأريتهم بطني]، فنظروا، فآمنوا بي وبما جئت به من عند رسول الله صلى الله عليه وسلم، [فأسلموا عن آخرهم]".
سیدنا ابوامامہ رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے مجھے میری قوم ”باہلہ“ کی طرف ( بحیثیت مبلغ) بھیجا، جب میں ان کے پاس پہنچا تو بھوکا تھا اور وہ اس وقت کھانا کھا رہے تھے، (ایک روایت میں ہے کہ خون کھا رہے تھے)۔ وہ میری طرف متوجہ ہوئے اور میری عزت و آبرو کی، انہوں نے کہا: صدی بن عجلان کو خوش آمدید۔ انہوں نے کہا: ہمیں یہ خبر موصول ہوئی ہے کہ تم اس آدمی (محمد صلی اللہ علیہ وسلم ) کی طرف مائل ہو گئے ہو (کیا بات اسی طرح ہے)؟ میں نے کہا: نہیں نہیں۔ میں تو اللہ تعالیٰ اور اس کے رسول پر ایمان لایا ہوں اور اب رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے مجھے ( قاصد بنا کر) بھیجا ہے تاکہ تم پر اسلام اور اس کے شرعی قوانین پیش کروں۔ انہوں نے کہا: آؤ کھانا کھاؤ۔ میں نے کہا: تمہارا ستیاناس ہو، میں تو تمہیں اس (قسم کے کھانوں سے) منع کرنے کے لیے آیا ہوں، میں رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کا قاصد ہوں، میں تمہارے پاس آیا ہوں تاکہ تم لوگ مومن بن جاؤ۔ میں انہیں دعوت اسلام دیتا رہا اور وہ مجھے جھٹلاتے اور جھڑکتے رہے۔ میں نے انہیں کہا: تمہارا ناس ہو، میں سخت پیاسا ہوں، پانی تو پلاؤ، اس وقت میرے پاس ایک پگڑی بھی رکھی ہوئی تھی۔ انہوں نے کہا: نہیں۔ ہم تجھے یوں ہی چھوڑے رکھیں گے، حتیٰ کہ تو مر جائے گا۔ میں سخت بھوک اور پیاس کی حالت میں وہاں سے چل دیا، میں اس وقت بری طرح تھک ہار چکا تھا اور دم گھٹ رہا تھا، میں نے اپنا سر پگڑی میں دیا اور گرمی کی شدت میں تپتی ہوئی زمین پر سو گیا، خواب میں میرے پاس دودھ لایا گیا (اور اتنا لذیذ کہ) لوگوں نے اس جیسا لذت والا دودھ نہیں دیکھا ہو گا، مجھے اس کو پینے کا موقع دیا گیا، میں نے پیا اور سیراب ہو گیا اور میرا پیٹ بڑا ہو گیا۔ لوگوں نے کہا: تمہارے پاس ایک اعلی و اشرف آدمی آیا تھا، لیکن تم نے (اس کی کوئی عزت نہیں کی) اور اسے دھتکار دیا، جاؤ اور اسے اس کی چاہت کے مطابق کھانا کھلاؤ اور مشروب پلاؤ۔ وہ میرے پاس کھانا لائے، لیکن میں نے کہا: مجھے تمہارے کھانے پینے کی کوئی ضرورت نہیں، اللہ تعالیٰ نے مجھے کھلایا بھی ہے اور پلایا بھی ہے۔ یہ میرا وجود دیکھ لو۔ پھر میں نے ان کو اپنا (سیر و سیراب) پیٹ دکھایا، جب انہوں نے یہ (کرامت) صورتحال دیکھی تو وہ مجھ پر اور جو کچھ میں رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کی طرف سے لایا تھا، اس پر ایمان لے آئے اور سارے کے سارے مسلمان ہو گئے۔
हज़रत अबु उमामह रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे मेरी क़ौम “बाहिला” की ओर (प्रचारक बनाकर) भेजा, जब मैं उनके पास पहुंचा तो भूखा था और वे उस समय खाना खारहे थे, (एक रिवायत में है कि ख़ून खारहे थे)। उन्हों ने मेरी ओर ध्यान किया और मेरी इज़्ज़त की, उन्हों ने कहा कि सुदाई बिन अजलान आपका स्वागत है। उन्हों ने कहा कि हमें यह ख़बर मिल गई है कि तुम उस आदमी (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ओर चले गए हो (क्या बात इसी तरह है) ? मैं ने कहा कि नहीं नहीं। मैं तो अल्लाह तआला और उसके रसूल पर ईमान लाया हूँ और अब रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे (संदेश देकर) भेजा है ताकि तुम को इस्लाम और उसके शरई नियम बताउं। उन्हों ने कहा कि आओ खाना खाओ। मैं ने कहा कि तुम्हारी बरबादी हो, मैं तो तुम्हें इस (खानों से) मना करने के लिये आया हूँ, मैं रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दूत हूँ, मैं तुम्हारे पास आया हूँ ताकि तुम लोग मोमिन बन जाओ। मैं उन्हें इस्लाम की दावत देता रहा और वह मुझे झुटलाते और झिड़कते रहे। मैं ने उन से कहा कि तुम्हारा नास हो, मैं बहुत प्यासा हूँ, पानी तो पिलाओ, उस समय मेरे पास एक पगड़ी भी रखी हुई थी। उन्हों ने कहा कि नहीं। हम तुझे यूँ ही छोड़े रखेंगे, यहां तक कि तू मर जाए। मैं बहुत भूक और प्यास की हालत में वहां से चल दिया, मैं उस समय बुरी तरह थक हार चूका था और दम घुट रहा था, मैं ने अपना सिर पगड़ी में दिया और गर्मी के ज़ोर में तपती हुई ज़मीन पर सौ गया, सपने में मेरे पास दूध लाया गया (और इतना स्वादिष्ट कि) लोगों ने उस जैसा आनंद वाला दूध नहीं देखा होगा, मुझे उसको पीने का मौक़ा दिया गया, मैं ने पिया और पेट भर गया और मेरा पेट बड़ा हो गया। लोगों ने कहा कि तुम्हारे पास एक बहुत अच्छा और शरीफ़ आदमी आया था, लेकिन तुम ने (उसकी कोई इज़्ज़त नहीं की) और उसे धुतकार दिया, जाओ और उसे उस की इच्छा के अनुसार खाना खिलाओ और शर्बत पिलाओ। वे मेरे पास खाना लाए, लेकिन में ने कहा कि मुझे तुम्हारे खाने पीने की कोई ज़रूरत नहीं, अल्लाह तआला ने मुझे खिलाया भी है और पिलाया भी है। यह मेरा वजूद देखलो। फिर में ने उनको अपना (भरा) पेट दिखाया, जब इन्हों ने यह (चमत्कार) देखा तो वे मुझ पर और जो कुछ में रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ओर से लाया था, उस पर ईमान ले आए और सारे के सारे मुसलमान होगए।
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 2706
قال الشيخ الألباني: - " بعثني إلى [قومي] (باهلة) ، [فانتهيت إليهم وأنا طاو] ، فأتيت وهم على الطعام، (وفي رواية: يأكلون دما) ، فرجعوا بي وأكرموني، [قالوا: مرحبا بالصدي بن عجلان، قالوا: بلغنا أنك صبوت إلى هذا الرجل. قلت: لا ولكن آمنت بالله وبرسوله، وبعثني رسول الله صلى الله عليه وسلم إليكم أعرض عليكم الإسلام وشرائعه] وقالوا: تعال كل. فقلت: [ويحكم إنما] جئت لأنهاكم عن هذا، وأنا رسول رسول الله صلى الله عليه وسلم أتيتكم لتؤمنوا به، [فجعلت أدعوهم إلى الإسلام] ، فكذبوني وزبروني، [فقلت لهم: ويحكم ائتوني بشيء من ماء فإني شديد العطش. قال: وعلي عمامتي، قالوا: لا ولكن ندعك تموت عطشا!] ، فانطلقت وأنا جائع ظمآن قد نزل بي جهد شديد. [قال: فاغتممت ، وضربت رأسي في العمامة] فنمت [في الرمضاء في حر شديد] فأتيت في منامي بشربة من لبن [لم ير الناس ألذ منه، فأمكنني منها] ، فشربت ورويت وعظم بطني. فقال القوم: أتاكم رجل من خياركم وأشرافكم فرددتموه، فاذهبوا إليه فأطعموه من الطعام والشراب ما يشتهي. فأتوني بطعام! قلت: لا حاجة لي في طعامكم وشرابكم، فإن الله قد أطعمني وسقاني، فانظروا إلى الحال التي أنا عليها، [فأريتهم بطني] ، فنظروا، فآمنوا بي وبما جئت به من عند رسول الله صلى الله عليه وسلم ، [فأسلموا عن آخرهم] ". _____________________ هو من حديث أبي أمامة رضي الله عنه يرويه عنه أبو غالب، وله عنه ثلاث طرق : الأولى: عن الحسين بن واقد عن أبي غالب عن أبي أمامة قال: بعثني رسول الله صلى الله عليه وسلم إلى باهلة.. الحديث. أخرجه الطبراني في " المعجم الكبير " (8099) : حدثنا محمد بن عبدوس بن كامل السراج حدثنا محمد بن علي بن الحسن بن شقيق حدثنا أبي حدثنا حسين بن واقد. __________جزء : 6 /صفحہ : 460__________ قلت: وهذا إسناد حسن للخلاف المعروف في أبي غالب. الثانية: عن صدقة بن هرمز القسملي عن أبي غالب نحوه، وفيه الزيادة الأولى والثانية، والرواية الثانية وغيرها. أخرجه الطبراني (8073 ) وأبو يعلى أيضا كما في " الإصابة "، وسكت عليه، والحاكم (3 / 641 - 642 ) وسكت عليه أيضا، وتعقبه الذهبي بقوله: " وصدقة ضعفه ابن معين ". قلت: ووثقه ابن حبان، فمثله يستشهد به. الثالثة: عن بشير بن سريج عن أبي غالب به نحوه. وفيه الزيادة الثالثة والرابعة والخامسة وغيرها. أخرجه الطبراني ( 8074) . وقال الهيثمي في " المجمع " (9 / 387) : " وفيه بشير بن سريج وهو ضعيف "، وقال في الطريق الأولى والثانية: " رواه الطبراني بإسنادين، وإسناد الأول حسن ". ¤