الحمدللہ! انگلش میں کتب الستہ سرچ کی سہولت کے ساتھ پیش کر دی گئی ہے۔

 
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
حدود، معاملات، احکام
सीमाएं, मामले, नियम
847. کیا بلا اجازت کسی کے باغ سے پھل کھانا جائز ہے؟
“ क्या बिना अनुमति के किसी के बाग़ से फल खाया जा सकता है ”
حدیث نمبر: 1229
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
-" اقبلت مع سادتي نريد الهجرة، حتى دنونا من المدينة، قال: فدخلوا المدينة وخلفوني في ظهرهم، قال: فاصابني مجاعة شديدة، قال: فمر بي بعض من يخرج من المدينة فقالوا لي: لو دخلت المدينة فاصبت من ثمر حوائطها، فدخلت حائطا فقطعت منه قنوين، فاتاني صاحب الحائط، فاتى بي إلى رسول الله صلى الله عليه وسلم واخبره خبري، وعلي ثوبان، فقال لي:" ايهما افضل؟"، فاشرت له إلى احدهما، فقال:" خذه"، واعطى صاحب الحائط الآخر وخلى سبيلي".-" أقبلت مع سادتي نريد الهجرة، حتى دنونا من المدينة، قال: فدخلوا المدينة وخلفوني في ظهرهم، قال: فأصابني مجاعة شديدة، قال: فمر بي بعض من يخرج من المدينة فقالوا لي: لو دخلت المدينة فأصبت من ثمر حوائطها، فدخلت حائطا فقطعت منه قنوين، فأتاني صاحب الحائط، فأتى بي إلى رسول الله صلى الله عليه وسلم وأخبره خبري، وعلي ثوبان، فقال لي:" أيهما أفضل؟"، فأشرت له إلى أحدهما، فقال:" خذه"، وأعطى صاحب الحائط الآخر وخلى سبيلي".
سیدنا عمیر رضی اللہ عنہ، جو آبی اللحم کے غلام تھے، کہتے ہیں: میں اپنے آقاؤں کے ساتھ آیا، ہمارا ارادہ ہجرت کا تھا، ہم مدینہ کے قریب آ پہنچے۔ وہ خود مدینہ میں داخل ہو گئے اور مجھے پیچھے چھوڑ گئے۔ مجھے سخت بھوک لگی۔ میرے پاس سے مدینہ سے نکلنے والے بعض لوگ گزرے اور مجھے کہا: (‏‏‏‏بہتر ہے کہ) تو مدینہ میں چلا جائے اور باغوں کا پھل کھا لے۔ پس میں ایک باغ میں داخل ہوا اور کھجوروں سے بھرے ہوئے دو گچھے توڑ لیے۔ (‏‏‏‏ اللہ کا کرنا کہ) باغ کا مالک آ پہنچا، مجھے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس لے گیا اور آپ صلی اللہ علیہ وسلم کو ساری بات بتا دی۔ میں نے دو کپڑے پہنے ہوئے تھے۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے مجھے فرمایا: کون سا کپڑا افضل ہے؟ میں نے ایک کپڑے کی طرف اشارہ کیا۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: (‏‏‏‏یہ کپڑا) تو خود لے لے۔ اور دوسرا کپڑا باغ کے مالک کو دے دیا اور مجھے رہا کر دیا۔
हज़रत उमैर रज़ि अल्लाहु अन्ह जो आबी अल्ल्हम के ग़ुलाम थे कहते हैं कि मैं अपने आक़ाओं के साथ आया हमारा इरादा हिजरत का था हम मदीने के क़रीब आपहुंचे। वह ख़ुद मदीने में चले गए और मुझे पीछे छोड़ गए, मुझे बहुत भूक लगी मेरे पास से मदीने से निकलने वाले कुछ लोग गुज़रे और मुझे से कहा ! (अच्छा है कि) तू मदीने में चला जाए और बाग़ों का फल खाले। बस मैं एक बाग़ में गया और खजूरों से भरे हुए दो गुच्छे तोड़ लिए। (‏‏‏‏ अल्लाह का करना कि) बाग़ का मालिक आ पहुंचा मुझे रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास लेगया और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सारी बात बतादी। मैं ने दो कपड़े पहने हुए थे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे से कहा ! “कौन सा कपड़ा अच्छा है ?” मैं ने एक कपड़े की ओर इशारा किया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “(यह कपड़ा) तू ख़ुद लेले” और दूसरा कपड़ा बाग़ के मालिक को दे दिया और मुझे छोड़ दिया।
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 2580

قال الشيخ الألباني:
- " أقبلت مع سادتي نريد الهجرة، حتى دنونا من المدينة، قال: فدخلوا المدينة وخلفوني في ظهرهم، قال: فأصابني مجاعة شديدة، قال: فمر بي بعض من يخرج من المدينة فقالوا لي: لو دخلت المدينة فأصبت من ثمر حوائطها، فدخلت حائطا فقطعت منه قنوين، فأتاني صاحب الحائط، فأتى بي إلى رسول الله صلى الله عليه وسلم وأخبره خبري، وعلي ثوبان، فقال لي: " أيهما أفضل؟ "، فأشرت له إلى أحدهما ، فقال: " خذه "، وأعطى صاحب الحائط الآخر وخلى سبيلي ".
‏‏‏‏_____________________
‏‏‏‏
‏‏‏‏أخرجه أحمد (5 / 223) : حدثنا ربعي بن إبراهيم حدثنا عبد الرحمن - يعني ابن
‏‏‏‏إسحاق -: حدثنا أبي، عن عمه وعن أبي بكر بن زيد بن المهاجر أنهما سمعا
‏‏‏‏عميرا مولى أبي اللحم قال: فذكره. قلت: وهذا إسناد حسن رجاله كلهم ثقات
‏‏‏‏معروفون غير عم إسحاق، وهو إسحاق بن عبد الله بن الحارث بن كنانة العامري،
‏‏‏‏فلم أعرفه، ولا يخدج ذلك في السند، لأنه مقرون بأبي بكر بن زيد بن المهاجر،
‏‏‏‏وهذا ثقة من رجال مسلم، واسمه محمد، وكنيته أبو بكر كما جزم بذلك الحافظ
‏‏‏‏ابن حجر في
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 160__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏" تعجيل المنفعة " (ص 469) خلافا لابن أبي حاتم، فإنه ذكر في "
‏‏‏‏الجرح والتعديل " (4 / 2 / 342) عن أبيه أن محمد بن زيد بن المهاجر هو أخو
‏‏‏‏أبي بكر هذا. والله أعلم. والحديث أخرجه البيهقي (10 / 3) من طريق أخرى
‏‏‏‏عن عبد الرحمن بن إسحاق عن أبيه عن عمير، فأسقط من السند أبا بكر هذا وقرينه
‏‏‏‏عم إسحاق بن عبد الله. وأخرجه الحاكم (4 / 132) من طريق ثالثة عن عبد الله
‏‏‏‏موصولا، لكن وقع في سنده شيء من التحريف، لا أدري هو من الطابع أم من بعض
‏‏‏‏الرواة، وقال: " صحيح الإسناد ". ووافقه الذهبي. قلت: ولولا أن في عبد
‏‏‏‏الرحمن هذا بعض الضعف من قبل حفظه لحكمت على الحديث بالصحة، فهو حسن فقط.
‏‏‏‏والله أعلم. من فقه الحديث: فيه دليل على جواز الأكل من مال الغير بغير إذنه
‏‏‏‏عند الضرورة، مع وجوب البدل. أفاده البيهقي. قال الشوكاني (8 / 128) : "
‏‏‏‏فيه دليل على تغريم السارق قيمة ما أخذه مما لا يجب فيه الحد، وعلى أن الحاجة
‏‏‏‏لا تبيح الإقدام على مال الغير مع وجود ما يمكن الانتفاع به أو بقيمته، ولو
‏‏‏‏كان مما تدعو حاجة الإنسان إليه، فإنه هنا أخذ أحد ثوبيه ودفعه إلى صاحب
‏‏‏‏النخل ". ومن هنا يتبين خطأ الشيخ تقي الدين النبهاني في كتابه " النظام
‏‏‏‏الاقتصادي في الإسلام "، فإنه أباح فيه (ص 20 - 21) للفرد إذا تعذر عليه
‏‏‏‏العمل ولم تقم
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 161__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏الجماعة الإسلامية بأوده " أن يأخذ ما يقيم به أوده من أي مكان
‏‏‏‏يجده، سواء كان ملك الأفراد أو ملك الدولة، ويكون ملكا حلالا له، ويجوز أن
‏‏‏‏يحصل عليه بالقوة، وإذا أخذ الجائع طعاما يأكله أصبح هذا الطعام ملكا له "!
‏‏‏‏ووجه الخطأ واضح جدا، وذلك من عدة نواح، أهمها معارضته للحديث، فإنه لم
‏‏‏‏يملك الجائع ما أخذه من الطعام ما دام يجد بدله. ومنها أن المحتاج له طرق
‏‏‏‏مشروعة لابد له من سلوكها كالاستقراض دون فائدة، وسؤال الناس ما يغنيه شرعا،
‏‏‏‏ونحو ذلك من الوسائل الممكنة. فما بال الشيخ - عفا الله عنه - صرف النظر عنها
‏‏‏‏، وأباح للفرد أخذ المال بالقوة دون أن يشترط عليه سلوك هذه الطرق المشروعة؟
‏‏‏‏! ولست أشك أنه لو انتشر بين الناس رأي الشيخ هذا لأدى إلى مفاسد لا يعلم
‏‏‏‏عواقبها إلا الله تعالى.
‏‏‏‏¤


http://islamicurdubooks.com/ 2005-2023 islamicurdubooks@gmail.com No Copyright Notice.
Please feel free to download and use them as you would like.
Acknowledgement / a link to www.islamicurdubooks.com will be appreciated.