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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
ایمان توحید، دین اور تقدیر کا بیان
तौहीद पर ईमान, दीन और तक़दीर
98. شیطان کے ہتھکنڈے شیطان کی نافرمانی پر جنت کی بشارت
“ शैतान की चालबाज़ी और शैतान की बात ना मानने पर जन्नत कि ख़ुशख़बरी ”
حدیث نمبر: 160
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
-" إن الشيطان قعد لابن آدم باطرقه، فقعد له بطريق الإسلام، فقال: تسلم وتذر دينك ودين آبائك وآباء ابيك؟! فعصاه فاسلم، ثم قعد له بطريق الهجرة، فقال: تهاجر وتدع ارضك وسماءك، وإنما مثل المهاجر كمثل الفرس في الطول؟! فعصاه فهاجر، ثم قعد له بطريق الجهاد، فقال: تجاهد فهو جهد النفس والمال، فتقاتل فتقتل، فتنكح المراة، ويقسم المال؟! فعصاه فجاهد. فقال رسول الله صلى الله عليه وسلم: فمن فعل ذلك كان حقا على الله عز وجل ان يدخله الجنة. ومن قتل كان حقا على الله ان يدخله الجنة. وإن غرق كان حقا على الله ان يدخله الجنة، او وقصته دابته كان حقا على الله ان يدخله الجنة".-" إن الشيطان قعد لابن آدم بأطرقه، فقعد له بطريق الإسلام، فقال: تسلم وتذر دينك ودين آبائك وآباء أبيك؟! فعصاه فأسلم، ثم قعد له بطريق الهجرة، فقال: تهاجر وتدع أرضك وسماءك، وإنما مثل المهاجر كمثل الفرس في الطول؟! فعصاه فهاجر، ثم قعد له بطريق الجهاد، فقال: تجاهد فهو جهد النفس والمال، فتقاتل فتقتل، فتنكح المرأة، ويقسم المال؟! فعصاه فجاهد. فقال رسول الله صلى الله عليه وسلم: فمن فعل ذلك كان حقا على الله عز وجل أن يدخله الجنة. ومن قتل كان حقا على الله أن يدخله الجنة. وإن غرق كان حقا على الله أن يدخله الجنة، أو وقصته دابته كان حقا على الله أن يدخله الجنة".
سیدنا سبرہ بن ابوفاکہ رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں کہ میں نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کو فرماتے ہوئے سنا: آدم (علیہ السلام) کے بیٹے (کو گمراہ کرنے کے لئے) شیطان اس کے مختلف راستوں میں گھات لگا کر بیٹھ گیا۔ اسلام کے راستے میں بیٹھ کر (مسلمان ہونے والے) کو کہتا ہے: کیا تو اسلام قبول کرتا ہے اور اپنے اور اپنے آباؤ اجداد کے دین کو ترک کرتا ہے؟ لیکن ابن آدم اس کی نافرمانی کرتا ہے اور اسلام قبول کر لیتا ہے۔ پھر وہ ہجرت کے راستے پر بیٹھ جاتا ہے اور اسے کہتا ہے: کیا تو اب ہجرت کرتا ہے اور اپنے زمین و آسمان (یعنی علاقہ و وراثت) کو چھوڑنے لگا ہے، مہاجر کی مثال اس گھوڑے کی طرح ہے جو اس رسی میں ہو؟ لیکن وہ اس کی نافرمانی کرتے ہوئے ہجرت کر جاتا ہے۔ پھر وہ جہاد کے راستے پر بیٹھ جاتا ہے اور کہتا ہے: کیا تو جہاد کرنے کے لئے جا رہا ہے (دیکھ لے) یہ تو محنت و مشقت والا کام ہے، اس میں مال و دولت کھپ جاتا ہے، جب تو لڑے گا تجھے قتل کر دیا جائے گا، کوئی دوسرا تیری عورت سے نکاح کر لے گا اور تیرا مال (ورثا میں) تقسیم کر دیا جائے گا؟ لیکن وہ اس کی رائے کو ٹھکرا دیتا ہے اور جہاد کرتا ہے۔ پھر رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: جس نے (شیطان کے ساتھ) ایسے کیا، تو اللہ تعالی پر حق ہے وہ اسے جنت میں داخل کرے اور جو شہید ہو تو اللہ تعالی پر حق ہے کہ اسے جنت میں داخل کرے، اگر وہ غرق ہو گیا تو اللہ تعالی پر لازم ہے کہ اسے جنت میں داخل کرے گا اور اگر اس کی سواری نے اسے اس طرح گرایا کہ اس ک «ی گر» دن ٹوٹ گئی (اور وہ فوت ہو گیا) تو اللہ تعالی پر حق ہے کہ اسے جنت میں داخل میں داخل کرے گا۔
हज़रत सबरा बिन अबु फ़ाकिहि रज़ि अल्लाहु अन्ह बयान करते हैं कि मैं ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कहते हुए सुना ! “आदम (अलैहिस्सलाम) के बेटे (को गुमराह करने के लिए) शैतान उस के विभिन्न रास्तों में घात लगा कर बैठ गया। इस्लाम के रास्ते में बैठ कर (मुसलमान होने वाले) को केहता है ! क्या तू इस्लाम स्वीकार करता है और अपने और अपने पूर्वजों के दीन को छोड़ता है ? लेकिन आदम का बेटा उस की बात नहीं मानता है और इस्लाम स्वीकार कर लेता है। फिर वह हिजरत के रास्ते पर बैठ जाता है और उस से केहता है ! क्या तू अब हिजरत करता है और अपनी ज़मीन और आसमान को छोड़ने लगा है, मुहाजिर की मिसाल उस घोड़े की तरह है जो इस रस्सी में हो ? लेकिन वह उस की बात नहीं मानते हुए हिजरत कर जाता है। फिर वह जिहाद के रास्ते पर बैठ जाता है और केहता है ! क्या तू जिहाद करने के लिए जा रहा है। ये तो कड़ी मेहनत वाला मुश्किल काम है, इस में माल दौलत खप जाता है, जब तू लड़े गा तुझे क़त्ल कर दिया जाए गा, कोई दूसरा तेरी औरत से निकाह कर लेगा और तेरा माल (विरसा में) बांट दिया जाए गा ? लेकिन वह उस की राय को ठुकरा देता है और जिहाद करता है।” फिर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “जिस ने (शैतान के साथ) ऐसे किया, तो अल्लाह तआला पर हक़ है कि वह उसे जन्नत में दाख़िल करे और जो शहीद हो तो अल्लाह तआला पर हक़ है कि उसे जन्नत में दाख़िल करे, अगर वह डूब गया तो अल्लाह तआला पर हक़ है कि उसे जन्नत में दाख़िल करे गा और अगर उस की सवारी ने उसे इस तरह गिराया कि उस की गर्दन टूट गई (और वह मर गया) तो अल्लाह तआला पर हक़ है कि उसे जन्नत में दाख़िल करे गा।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 2979

قال الشيخ الألباني:
- " إن الشيطان قعد لابن آدم بأطرقه، فقعد له بطريق الإسلام، فقال: تسلم وتذر دينك ودين آبائك وآباء أبيك؟! فعصاه فأسلم، ثم قعد له بطريق الهجرة، فقال : تهاجر وتدع أرضك وسماءك، وإنما مثل المهاجر كمثل الفرس في الطول؟! فعصاه فهاجر، ثم قعد له بطريق الجهاد، فقال: تجاهد فهو جهد النفس والمال، فتقاتل فتقتل، فتنكح المرأة، ويقسم المال؟! فعصاه فجاهد. فقال رسول الله صلى الله عليه وسلم: فمن فعل ذلك كان حقا على الله عز وجل أن يدخله الجنة. ومن قتل كان حقا على الله أن يدخله الجنة. وإن غرق كان حقا على الله أن يدخله الجنة، أو وقصته دابته كان حقا على الله أن يدخله الجنة ".
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‏‏‏‏
‏‏‏‏أخرجه البخاري في " التاريخ الكبير " (2 / 2 / 187 - 188) والنسائي (2 / 58)
‏‏‏‏وابن حبان (385 / 1601 - الموارد) والبيهقي في " شعب الإيمان " (4 / 21
‏‏‏‏/ 4246) وابن أبي شيبة في " المصنف " (5 / 293) ومن طريقه الطبراني في "
‏‏‏‏المعجم الكبير " (7 / 138) وأحمد (3 / 483) من طريق أبي عقيل عبد الله بن
‏‏‏‏عقيل قال: حدثنا موسى بن المسيب عن سالم بن أبي الجعد عن سبرة بن أبي فاكه
‏‏‏‏قال: سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: فذكره. قلت: وهذا إسناد جيد
‏‏‏‏رجاله كلهم ثقات، وفي بعضهم كلام لا يضر، ولذلك قال الحافظ العراقي في "
‏‏‏‏تخريج الإحياء " (3 / 29) : " أخرجه النسائي من حديث سبرة بن أبي فاكه بإسناد
‏‏‏‏صحيح ".
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 1186__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏وأقره الزبيدي في شرحه على " الإحياء " (7 / 270) كما أقر المنذري
‏‏‏‏في " الترغيب " (2 / 173) ابن حبان على تصحيحه، وكذلك قواه الحافظ، ولكنه
‏‏‏‏أشار إلى أن فيه علة، ولكنها غير قادحة، فقال في ترجمة (سبرة) من "
‏‏‏‏الإصابة ": " له حديث عند النسائي بإسناد حسن، إلا أن في إسناده اختلافا ".
‏‏‏‏قلت: هو اختلاف مرجوح لا يؤثر، وقد أشار إليه الحافظ المزي في ترجمة (سبرة
‏‏‏‏) من " التهذيب "، فإنه ساقه من طريق أحمد، وقال عقبه: " تابعه محمد بن
‏‏‏‏فضيل عن موسى بن المسيب. ورواه طارق بن عبد العزيز عن محمد ابن عجلان عن موسى
‏‏‏‏بن المسيب عن سالم بن أبي الجعد عن جابر بن أبي سبرة عن النبي صلى الله عليه
‏‏‏‏وسلم ". وذكر مثله في " تحفة الأشراف " (3 / 264) . قلت آنفا: إن هذا
‏‏‏‏الخلاف لا يؤثر، وذلك لأن محمد بن عجلان لا يعارض به الثقتان عبد الله بن
‏‏‏‏عقيل ومتابعة محمد بن فضيل، لاسيما وابن عجلان فيه كلام معروف، وهذا يقال
‏‏‏‏لو صحت المخالفة عنه، فإن الراوي عنه طارق بن عبد العزيز فيه كلام أيضا، وهو
‏‏‏‏طارق بن عبد العزيز بن طارق الربعي، هكذا نسبه في " الجرح "، وقال عن أبيه:
‏‏‏‏" ما رأيت بحديثه بأسا في مقدار ما رأيت من حديثه ". ونسبه في " الثقات " (8 / 327) إلى جده، فقال: " طارق بن طارق المكي "، وقال: " ربما خالف
‏‏‏‏الأثبات في الروايات ". وكذا في " ترتيب الثقات " لابن قطلوبغا (1 / 303 / 2
‏‏‏‏) وفي " لسان
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 1187__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏الميزان " أيضا، لكن تحرف فيه اسم الأب إلى (بارق) وهو من
‏‏‏‏الطابع فيما أظن. والله أعلم. وقد وصله عنه البيهقي في " الشعب " (رقم
‏‏‏‏4247) من طريق أبي عبد الله، وهو الحاكم، وليس هو في " المستدرك "،
‏‏‏‏فالظاهر أنه في كتابه: " التاريخ "، وقال البيهقي عقبه: " هكذا في كتابي (
‏‏‏‏جابر بن [أبي] سبرة) ، وكذلك رواه أبو مصعب أحمد بن أبي بكر الزهري عن أبيه
‏‏‏‏عن ابن عجلان ... وهو في الثاني والسبعين من (التاريخ) ". وكأنه يعني
‏‏‏‏تاريخ شيخه الحاكم. ووالد أحمد بن أبي بكر اسمه (القاسم بن الحارث بن زرارة
‏‏‏‏..) كما في ترجمة (أحمد) ، ولم أجد له ترجمة، ولا ذكروه في ترجمة ابنه.
‏‏‏‏والله سبحانه وتعالى أعلم. ثم رأيت أبا نعيم قد وصله أيضا في " معرفة
‏‏‏‏الصحابة " (1 / 125 / 1) من طرق عن طارق بن عبد العزيز بن طارق به. وقال:
‏‏‏‏" وهذا مما وهم فيه طارق، تفرد بذكر جابر. ورواه ابن فضيل عن موسى أبي جعفر
‏‏‏‏عن سالم عن سبرة بن أبي فاكه، و [هو] المشهور ". ورواية ابن فضيل هذه
‏‏‏‏وصلها أبو نعيم في ترجمة (سبرة بن الفاكه) من طرق عنه. وذكر الحافظ في
‏‏‏‏ترجمة (جابر) حديثه هذا، وقال: " قال ابن منده: غريب تفرد به (طارق) ،
‏‏‏‏والمحفوظ في هذا عن سالم بن أبي الجعد عن سبرة بن أبي فاكه ".
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 1188__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏وجملة القول
‏‏‏‏أن الحديث صحيح من رواية سالم عن سبرة رضي الله عنه، وقد صححه من تقدم ذكرهم
‏‏‏‏، واحتج به ابن كثير في " التفسير " (2 / 204) وساقه ابن القيم في " إغاثة
‏‏‏‏اللهفان " مساق المسلمات. وأما المعلق عليه (ابن عبد المنان) ، المتخصص في
‏‏‏‏تضعيف الأحاديث الصحيحة، فقد جزم في تعليقه عليه (1 / 134) بأن إسناده ضعيف
‏‏‏‏مخالفا في ذلك كل من ذكرنا من المصححين له والمحتجين به، معللا إياه بأن سالم
‏‏‏‏بن أبي الجعد لم يصرح بالسماع من سبرة. متشبثا في ذلك بما ذهب إليه البخاري
‏‏‏‏وغيره أنه لا يكفي في الحديث أو الإسناد المعنعن لإثبات اتصاله المعاصرة، بل
‏‏‏‏لابد من ثبوت اللقاء ولو مرة، خلافا لمسلم وغيره ممن يكتفي بالمعاصرة.
‏‏‏‏والحقيقة أن هذه المسألة من المعضلات، ولذلك تضاربت فيها أقوال العلماء، بل
‏‏‏‏العالم الواحد، فبعضهم مع البخاري، وبعضهم مع مسلم. وقد أبان هذا عن وجهة
‏‏‏‏نظره، وبسط الكلام بسطا وافيا مع الرد على مخالفه، بحيث لا يدع مجالا للشك
‏‏‏‏في صحة مذهبه، وذلك في مقدمة كتابه " الصحيح "، وكما اختلف هو مع شيخه في
‏‏‏‏المسألة، اختلف العلماء فيها من بعدهما، فمن مؤيد ومعارض، كما تراه مشروحا
‏‏‏‏في كتب علم المصطلح، في بحث (الإسناد المعنعن) . ولدقة المسألة رأيت الإمام
‏‏‏‏النووي الذي انتصر في مقدمة شرحه على " مسلم " لرأي الإمام البخاري، قد تبنى
‏‏‏‏مذهب الإمام مسلم في بعض كتبه في " المصطلح "، فقال في بيان الإسناد المعنعن
‏‏‏‏في كتابه " التقريب ": ".. وهو فلان عن فلان، قيل: إنه مرسل. والصحيح
‏‏‏‏الذي عليه العمل، وقاله الجماهير من أصحاب الحديث والفقه والأصول أنه متصل
‏‏‏‏بشرط أن لا يكون المعنعن مدلسا، وبشرط إمكان لقاء بعضهم بعضا، وفي اشتراط
‏‏‏‏ثبوت اللقاء، وطول الصحبة ومعرفته بالرواية عنه خلاف.. ".
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 1189__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏ونحوه في كتابه
‏‏‏‏" إرشاد طلاب الحقائق " (1 / 185 - 189) . 1 - وهذا الذي صححه النووي في
‏‏‏‏كتابيه المذكورين، هو الذي تبناه جمع من الحفاظ والمؤلفين في الأصول
‏‏‏‏والمصطلح، فمنهم: الطيبي في كتابه " الخلاصة في أصول الحديث " (ص 47) ،
‏‏‏‏والعلائي في " التحصيل " (ص 210) . 2 - والذهبي في رسالته اللطيفة المفيدة:
‏‏‏‏" الموقظة "، فإنه وإن كان ذكر فيها القولين: اللقاء والمعاصرة، فإنه أقر
‏‏‏‏مسلما على رده على مخالفه، هذا من جهة. ومن جهة أخرى فقد أشار في ترجمته في
‏‏‏‏" سير النبلاء " (12 / 573) إلى صواب مذهبه وقوته، في الوقت الذي صرح بأن
‏‏‏‏مذهب البخاري أقوى، فهذا شيء، وكونه شرط صحة شيء آخر كما هو ظاهر بأدنى نظر
‏‏‏‏. 3 - والحافظ ابن كثير في " اختصار علوم الحديث ". 4 - وابن الملقن في "
‏‏‏‏المقنع في علم الحديث " (1 / 148) وفي رسالته اللطيفة " التذكرة " (16 / 11
‏‏‏‏) . 5 - والحافظ ابن حجر، فإنه رجح شرط البخاري على نحو ما تقدم عن الذهبي،
‏‏‏‏فإنه سلم بصحة مذهب مسلم، فقال في " النكت على ابن الصلاح " (1 / 289) مدللا
‏‏‏‏على الترجيح: " لأنا وإن سلمنا ما ذكره مسلم من الحكم بالاتصال، فلا يخفى أن
‏‏‏‏شرط البخاري أوضح في الاتصال ". وكذا قال في " مقدمة فتح الباري " (ص 12)
‏‏‏‏ونحوه في رسالته " نزهة النظر في توضيح نخبة الفكر " (ص 171 / 61 - بنكت الأخ
‏‏‏‏الحلبي عليه) . قلت: وكونه أوضح مما لا شك فيه، وكذلك كونه أقوى، كما نص
‏‏‏‏على ذلك
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 1190__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏الإمام الذهبي كما تقدم، فهو كسائر الصفات التي تميز بها " صحيح
‏‏‏‏البخاري " على " صحيح مسلم " كما هو مسلم به عند جمهور العلماء، فهو شرط كمال
‏‏‏‏وليس شرط صحة عندهم. 6 - الإمام الصنعاني، فإنه ناقش الحافظ ابن حجر فيما
‏‏‏‏استدل به لشرط البخاري في بحوث ثلاثة ذكرها في كتابه " توضيح الأفكار "،
‏‏‏‏وألزمه القول بصحة مذهب مسلم، وإن كان شرط البخاري أقوى. وقد كنت ألزمته
‏‏‏‏بذلك في تعليق لي موجز، كنت علقته على " نزهته "، نقله عني الأخ الحلبي في "
‏‏‏‏النكت عليه " (ص 88) ، فليراجعه من شاء. ولقوة الإلزام المذكور، فقد
‏‏‏‏التزمه الحافظ رحمه الله كما تقدم نقله عنه آنفا، والحمد لله. ثم قال
‏‏‏‏الصنعاني رحمه الله تعالى (1 / 234) : " وإذا عرفت هذا فمذهب مسلم لا يخلو
‏‏‏‏عن القوة لمن أنصف، وقد قال أبو محمد بن حزم في " كتاب " الإحكام ": (¬1)
‏‏‏‏7 - اعلم أن العدل إذا روى عمن أدركه من العدول فهو على اللقاء والسماع سواء
‏‏‏‏قال: " أخبرنا " أو " حدثنا "، أو " عن فلان " أو " قال فلان "، فكل ذلك
‏‏‏‏محمول على السماع منه. انتهى. قلت: ولا يخفى أنا قد قدمنا عنه خلاف هذا في
‏‏‏‏حديث (المعازف) فتذكره ".
‏‏‏‏¬
‏‏‏‏__________
‏‏‏‏(¬1) قلت: ذكر ذلك في بحث له في المدلس (1 / 141 - 142) وهو من حجتنا على
‏‏‏‏ابن حزم ومن قلده من الغابرين والمعاصرين في إعلال حديث (المعازف) الذي
‏‏‏‏رواه البخاري معلقا على هشام بن عمار بالانقطاع بينهما. وقد فصلت القول في
‏‏‏‏الرد عليه تفصيلا في كتاب خاص سيصدر قريبا إن شاء الله تعالى.
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 1191__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏هذا وإن مما يسترعي الانتباه ويلفت النظر - أن
‏‏‏‏المذكورين من الحفاظ والعلماء جروا فيما كتبوا في " علم المصطلح " على نحو مما
‏‏‏‏جرى عليه سلفهم في التأليف، أعني به ابن الصلاح في " مقدمته "، وقلما
‏‏‏‏يخالفونه، وإنما هم ما بين مختصر وملخص ومقيد وشارح، كما يعلم ذلك الدارس
‏‏‏‏لمؤلفاتهم فيه، وهذه المسألة مما خالفوه فيها، فإن عبارة النووي المتقدمة في
‏‏‏‏الاكتفاء بالمعاصرة وإمكانية اللقاء هي منه تعديل لعبارة ابن الصلاح المصرحة
‏‏‏‏بشرطية ثبوت اللقاء، وعلى هذا التعديل جرى المذكورون آنفا، وأكدوا ذلك
‏‏‏‏علميا في تصحيحهم للأحاديث المروية بأسانيد لا يمكن التحقق من ثبوت التلاقي بي


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