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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
بیماری، نماز جنازہ، قبرستان
बीमारी, नमाज़ जनाज़ा और क़ब्रस्तान
1123. میت کو دیکھ کر کھڑا ہونے کی وجوہات اور اس کا حکم
“ मय्यत को देख कर खड़े होने का कारण और इस का हुक्म ”
حدیث نمبر: 1660
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
-" إن للموت فزعا".-" إن للموت فزعا".
علا بن عبدالرحمن اپنے باپ سے روایت کرتے ہیں کہ وہ ایک جنازے میں شریک ہوئے، مروان نے نماز جنازہ پڑھائی اور سیدنا ابوہریرہ رضی اللہ عنہ اور مروان قبرستان میں جا کر بیٹھ گئے۔ سیدنا ابوسعید خدری رضی اللہ عنہ آئے اور مروان سے کہا: مجھے اپنا ہاتھ دکھاؤ۔ انہوں نے اپنا ہاتھ انہیں تھما دیا۔ انھوں نے اسے کہا: کھڑے ہو جاؤ۔ وہ کھڑا ہو گیا۔ پھر مروان نے ابوسعید سے کہا: آپ نے مجھے کیوں کھڑا کیا ہے؟ انہوں نے جواب دیا: جب رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم جنازہ دیکھتے تو اس کے گزر جانے تک کھڑے ہو جاتے اور فرماتے: موت گھبرا دینے والی ہے۔ مروان نے (تصدیق کے لیے) کہا: اے ابوہریرہ! کیا ابوسعید سچ کہہ رہا ہے؟ انہوں نے کہا: جی ہاں۔ مروان نے کہا: تو آپ نے مجھے یہ حدیث بیان کیوں نہ کی؟ سیدنا ابوہریرہ رضی اللہ عنہ نے جواب دیا: آپ حاکم ہیں، آپ بیٹھ گئے اور آپ کو دیکھ کر میں بھی بیٹھ گیا۔
अला बिन अब्दुर्रहमान अपने पिता से रिवायत करते हैं कि वह एक जनाज़े में गए, मरवान ने नमाज़ जनाज़ा पढ़ाई और हज़रत अबु हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्ह और मरवान क़ब्रिस्तान में जा कर बैठ गए। हज़रत अबु सईद ख़ुदरी रज़ि अल्लाहु अन्ह आए और मरवान से कहा, मुझे अपना हाथ दिखाओ। उन्हों ने अपना हाथ उन्हें थमा दिया। उन्हों ने उस से कहा, खड़े हो जाओ। वह खड़ा हो गया फिर मरवान ने अबु सईद से कहा, आप ने मुझे क्यों खड़ा किया है ? उन्हों ने जवाब दिया, जब रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जनाज़ा देखते तो उस के गुज़र जाने तक खड़े हो जाते और कहते कि “मौत घबरा देने वाली है।” मरवान ने कहा, ऐ अबु हुरैरा क्या अबु सईद सच्च कह रहा है ? उन्हों ने कहा कि जी हाँ। मरवान ने कहा तो आप ने मुझे यह हदीस क्यों न सुनाई ? हज़रत अबु हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्ह ने जवाब दिया कि आप हाकिम हैं, आप बैठ गए और आप को देख कर में भी बैठ गया।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 2852

قال الشيخ الألباني:
- " إن للموت فزعا ".
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‏‏‏‏رواه ابن خزيمة في " حديث علي بن حجر " (ج 3 رقم 35) والحاكم (1 / 356) عن
‏‏‏‏العلاء بن عبد الرحمن عن أبيه أنه شهد جنازة صلى عليها مروان بن الحكم، فذهب
‏‏‏‏أبو هريرة مع مروان حتى جلسا في المقبرة، فجاء أبو سعيد الخدري فقال
‏‏‏‏لمروان: أرني يدك، فأعطاه يده، فقال: قم، فقام، ثم قال مروان لأبي سعيد:
‏‏‏‏لم أقمتني؟ قال: كان رسول الله صلى الله عليه وسلم إذا رأى جنازة قام حتى يمر
‏‏‏‏بها، وقال: (فذكره) ، فقال مروان: أصدق يا أبا هريرة؟ قال: نعم، قال:
‏‏‏‏فقال: ما منعك أن تحدثني؟ وقال: كنت إماما فجلست فجلست. قلت: وسنده صحيح
‏‏‏‏على شرط مسلم. وكذا قال الحاكم. ووافقه الذهبي. وإنما آثرت تخريج الحديث
‏‏‏‏هنا مع أنه تقدم تخريجه مختصرا برقم (2017) من رواية ابن ماجه وأحمد، لما
‏‏‏‏في هذه الرواية من تصديق أبي هريرة لأبي سعيد، وتقدم هناك تخريجه من حديث
‏‏‏‏جابر برواية مسلم وغيره، وأزيد هنا فأقول: رواه عبد بن حميد أيضا في "
‏‏‏‏المنتخب من مسنده " (ق 151 / 2) وابن حبان (3939 - الإحسان) وابن عدي (ق
‏‏‏‏188 / 2) . وقد روي الحديث بزيادة في متنه بلفظ: " إن للموت فزعا، فإذا أتى
‏‏‏‏أحدكم وفاة أخيه فليقل: * (إنا لله وإنا إليه راجعون) *، * (وإنا إلى ربنا
‏‏‏‏لمنقلبون) *، اللهم اكتبه في المحسنين، واجعل كتابه في عليين، واخلف عقبه
‏‏‏‏في الآخرين، اللهم لا تحرمنا أجره، ولا تفتنا بعده ". رواه الطبراني (3 /
‏‏‏‏163 / 1) من طريقين عن قيس بن الربيع عن أبي هاشم الرماني عن سعيد بن جبير عن
‏‏‏‏ابن عباس مرفوعا. قلت: وهذا إسناد ضعيف، قيس بن الربيع، قال في " التقريب
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‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 841__________
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‏‏‏‏" صدوق، تغير لما كبر، أدخل عليه ابنه ما ليس من حديثه، فحدث به ". لكن
‏‏‏‏حديثه هذا لا بأس به كشاهد لحديث الترجمة، وسائره غالبه له شاهد في مسلم (3
‏‏‏‏/ 37 - 38 و 39) وغيره. وهو مخرج في " أحكام الجنائز " (ص 12 و 23) .
‏‏‏‏وجملة: " اللهم لا تحرمنا أجره.. " إلخ ثبتت في حديث أبي هريرة فيما كان يقول
‏‏‏‏صلى الله عليه وسلم إذا صلى على جنازة عند أبي داود، وابن حبان (756 - موارد
‏‏‏‏) وهو مخرج في " الأحكام " (ص 124) .
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