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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
ایمان توحید، دین اور تقدیر کا بیان
तौहीद पर ईमान, दीन और तक़दीर
151. شرک اور قتل ناقابل معافی جرم ہیں
“ शिर्क और क़त्ल क्षमा नहीं किया जाएगा ”
حدیث نمبر: 246
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
-" كل ذنب عسى الله ان يغفره إلا من مات مشركا او مؤمن قتل مؤمنا متعمدا".-" كل ذنب عسى الله أن يغفره إلا من مات مشركا أو مؤمن قتل مؤمنا متعمدا".
خالد بن دہقان کہتے ہیں: ہم غزوہ قسطنطنیہ کے دوران ذلقیہ مقام پر تھے، فلسطین کے اعلیٰ و اشرف لوگوں میں سے ایک آدمی ہمارے پاس آیا، اس کا نام ہانی بن کلثوم بن شریک کنانی تھا، اس نے عبداللہ بن ابوزکریا کو سلام کہا اور وہ اس کے حق کو پہنچانتا تھا، خالد نے ہمیں کہا: ہمیں عبداللہ بن زکریا نے بیان کیا، وہ کہتے ہیں کہ میں نے سیدہ ام دردا رضی اللہ عنہا سے سنا وہ کہتی ہیں کہ میں نے سیدنا ابودردا رضی اللہ عنہ سے سنا، وہ کہتے ہیں کہ میں نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کو فرماتے سنا: ممکن ہے کہ اللہ تعالیٰ ہر گنہگار کو بخش دے، ماسوائے اس کے جو شرک کی حالت میں مرا یا وہ مومن جس نے کسی مومن کو جان بوجھ کر قتل کیا۔
ख़ालिद बिन दिहक़ान कहते हैं ! हम क़ुसतुनतुनिया की जंग के बीच ज़ुलुक़्याह जगह पर थे, फ़लस्तीन के बहुत अच्छे लोगों में से एक आदमी हमारे पास आया, उस का नाम हानी बिन कुलसूम बिन शरीक किनानी था, उस ने अब्दुल्लाह बिन अबु ज़करिया को सलाम कहा और वह उस के हक़ को पहचानता था, ख़ालिद ने हम से कहा ! हमें अब्दुल्लाह बिन ज़करीया ने बताया, वह कहते हैं कि मैं ने हज़रत उम्म दरदा रज़ि अल्लाहु अन्हा से सुना वह कहती हैं कि मैं ने हज़रत अबु दरदा रज़ि अल्लाहु अन्ह से सुना, वह कहते हैं कि मैं ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कहते सुना ! “मुमकिन है कि अल्लाह तआला हर पापी को क्षमा करदे, सिवाय उस के जो शिर्क की हालत में मरा या वह मोमिन जिस ने किसी मोमिन को जान बूझ कर क़त्ल किया।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 511

قال الشيخ الألباني:
- " كل ذنب عسى الله أن يغفره إلا من مات مشركا أو مؤمن قتل مؤمنا متعمدا ".
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‏‏‏‏أخرجه أبو داود (4270) وابن حبان (51) والحاكم (4 / 351) وابن عساكر
‏‏‏‏في " تاريخ دمشق " (5 / 209 / 2) من طريق خالد بن دهقان قال:
‏‏‏‏كنا في غزوة القسطنطينية بـ (ذلقية) فأقبل رجل من أهل فلسطين من أشرافهم
‏‏‏‏وخيارهم يعرفون ذلك له يقال له هانئ بن كلثوم بن شريك الكناني فسلم على عبد
‏‏‏‏الله بن أبي زكريا وكان يعرف له حقه قال لنا خالد: فحدثنا عبد الله ابن أبي
‏‏‏‏زكريا قال: سمعت أم الدرداء تقول: سمعت أبا الدرداء يقول: سمعت رسول
‏‏‏‏الله صلى الله عليه وسلم يقول: فذكره.
‏‏‏‏والسياق لأبي داود وقال الحاكم: " صحيح الإسناد " ووافقه الذهبي وهو كما
‏‏‏‏قالا، فإن رجاله كلهم ثقات وقول الحافظ في خالد هذا: " مقبول " قصور منه
‏‏‏‏فإنه ثقة وثقه ابن معين وغيره كما ذكر هو نفسه في " التهذيب ".
‏‏‏‏وللحديث شاهد من حديث معاوية بن أبي سفيان مرفوعا به.
‏‏‏‏أخرجه النسائي (2 / 163) والحاكم وأحمد (4 / 99) من طريق ثور عن أبي عون
‏‏‏‏عن أبي إدريس قال: سمعت معاوية يخطب فذكره.
‏‏‏‏وقال الحاكم: " صحيح الإسناد ". ووافقه الذهبي.
‏‏‏‏قلت: أبو عون هذا لم يوثقه غير ابن حبان وقد ترجمه ابن أبي حاتم (4 / 414 -
‏‏‏‏415) ولم يذكر فيه جرحا ولا تعديلا.
‏‏‏‏__________جزء : 2 /صفحہ : 38__________
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‏‏‏‏والحديث في ظاهره مخالف لقوله تعالى:
‏‏‏‏* (إن الله لا يغفر أن يشرك به ويغفر ما دون ذلك لمن يشاء) * لأن القتل دون
‏‏‏‏الشرك قطعا فكيف لا يغفره الله وقد وفق المناوي تبعا لغيره بحمل الحديث على ما
‏‏‏‏إذا استحل وإلا فهو تهويل وتغليظ. وخير منه قول السندي في حاشيته على
‏‏‏‏النسائي: " وكأن المراد كل ذنب ترجى مغفرته ابتداء إلا قتل المؤمن، فإنه لا
‏‏‏‏يغفر بلا سبق عقوبة وإلا الكفر، فإنه لا يغفر أصلا ولو حمل على القتل مستحلا
‏‏‏‏لا يبقى المقابلة بينه وبين الكفر (يعني لأن الاستحلال كفر ولا فرق بين
‏‏‏‏استحلال القتل أو غيره من الذنوب، إذ كل ذلك كفر) . ثم لابد من حمله على ما
‏‏‏‏إذا لم يتب وإلا فالتائب من الذنب كمن لا ذنب له كيف وقد يدخل القاتل
‏‏‏‏والمقتول الجنة معا كما إذا قتله وهو كافر ثم آمن وقتل ". ¤


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