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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
آداب اور اجازت طلب کرنا
अख़लाक़ और अनुमति मांगना
1911. میزبانی میں زیادہ تکلف نہ کیا جائے
“ मेहमान की मेज़बानी में अधिक न किया जाए ”
حدیث نمبر: 2834
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-" نهانا عن التكلف (للضيف)".-" نهانا عن التكلف (للضيف)".
شقیق کہتے ہیں کہ میں اور میرا ایک دوست سیدنا سلمان رضی اللہ عنہ کے پاس گئے، انہوں نے (‏‏‏‏بطور میزبانی) روٹی اور کوئی نمکین چیز پیش کی اور کہا: اگر رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے تکلف سے منع نہ کیا ہوتا تو میں تمہاری خاطر میں تکلف کرتا۔ میرے دوست نے کہا: اگر نمکین ڈش میں پہاڑی پودینہ ڈال دیا جاتا (‏‏‏‏تو بہت اچھا ہوتا)۔ انہوں نے کوئی لوٹا نما برتن بطور گروی سبزی فروش کی طرف بھیجا اور پودینہ منگوایا۔ جب ہم کھانا کھا چکے تو میرے دوست نے کہا: ساری تعریف اس اللہ کے لیے ہے جس نے ہمیں اس رزق پر قناعت کرنے کی توفیق بخشی۔ سیدنا سلمان رضی اللہ عنہ نے کہا: اگر تو نے اپنے رزق پر قناعت کی ہوتی تو میرا برتن سبزی فروش کے پاس گروی نہ پڑا ہوتا۔
शक़ीक़ कहते हैं कि मैं और मेरा एक दोस्त हज़रत सलमान रज़ि अल्लाहु अन्ह के पास गए, उन्हों ने (मेज़बानी के तोर पर) रोटी और कोई नमकीन चीज़ सामने रखी और कहा, यदि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अधिक करने से मना न किया होता तो मैं तुम्हारे लिये और अधिक करता। मेरे दोस्त ने कहा, यदि नमकीन सालन में पहाड़ी पुदीना डाल दिया जाता (तो बहुत अच्छा होता)। उन्हों ने कोई लोटा जैसा बर्तन गिरवी के रूप में सब्ज़ी वाले को भेजा और पुदीना मंगवाया। जब हम खाना खा चुके तो मेरे दोस्त ने कहा, सारी ताअरीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिस ने हमें इस रिज़्क़ पर संतुष्ट किया। हज़रत सलमान रज़ि अल्लाहु अन्ह ने कहा, यदि तू अपने रिज़्क़ पर संतुष्ट होता तो मेरा बर्तन सब्ज़ी बेचने वाले के पास गिरवी न पड़ा होता।
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 2392

قال الشيخ الألباني:
- " نهانا عن التكلف (للضيف) ".
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‏‏‏‏أخرجه الحاكم (4 / 123) وابن عدي (ق 154 - 155) عن سليمان بن قرم عن
‏‏‏‏الأعمش عن شقيق قال: " دخلت أنا وصاحب لي على سلمان رضي الله عنه، فقرب
‏‏‏‏إلينا خبزا وملحا، فقال: لولا أن رسول الله صلى الله عليه وسلم نهانا عن
‏‏‏‏التكلف، لتكلفت لكم. فقال صاحبي: لو كان في ملحنا سعتر، فبعث بمطهرته إلى
‏‏‏‏البقال، فرهنها، فجاء بسعتر، فألقاه فيه، فلما أكلنا قال صاحبي: الحمد لله
‏‏‏‏الذي قنعنا بما رزقنا. فقال سلمان: لو قنعت بما رزقت لم تكن مطهرتي مرهونة
‏‏‏‏عند البقال ". وقال الحاكم: " صحيح الإسناد "، ووافقه الذهبي. وقال ابن
‏‏‏‏عدي: " سليمان بن قرم مفرط في التشيع، وله أحاديث حسان أفرادات، وهو خير
‏‏‏‏من سليمان بن أرقم بكثير ". قلت: هو من رجال مسلم، واستشهد به البخاري،
‏‏‏‏وقال الحافظ
‏‏‏‏__________جزء : 5 /صفحہ : 511__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏" سيء الحفظ، يتشيع ". قلت: فحديثه يحتمل التحسين، والحديث
‏‏‏‏صحيح لما له من الشواهد كما يأتي. وقال الهيثمي في " مجمع الزوائد " (8 /
‏‏‏‏179) : " رواه الطبراني، ورجاله رجال الصحيح غير محمد بن منصور الطوسي وهو
‏‏‏‏ثقة ". قلت: والظاهر أنه عند الطبراني من طريق ابن قرم هذا. ثم تأكد ما
‏‏‏‏استظهرته بعد أن طبع " المعجم الكبير "، فهو فيه (6 / 288 / 6084 و 6085) .
‏‏‏‏وأخرجه ابن المبارك في " الزهد " (1404) : أخبرنا قيس بن الربيع: أنبأنا
‏‏‏‏عثمان بن شابور عن رجل عن سلمان به نحوه. قلت: وقيس بن الربيع سيء الحفظ،
‏‏‏‏وقد اضطرب في إسناده، فمرة رواه هكذا: عن رجل لم يسمه، ومرة سماه، فقال:
‏‏‏‏عن أبي وائل، ومرة قال: عن شقيق أو غيره. أخرجها أبو عمرو بن حيويه في
‏‏‏‏زياداته على " زهد ابن المبارك " (1404 - 1406) . وأخرجه أحمد (4 / 441)
‏‏‏‏الرواية الأخيرة منها، وقال: " شك قيس ". وكذلك رواه الطبراني في " الكبير
‏‏‏‏" و " الأوسط ". ثم روى الحاكم من طريق الحسين بن محمد حدثنا الحسين بن الرماس
‏‏‏‏حدثنا عبد الرحمن بن مسعود العبدي قال: سمعت سلمان الفارسي يقول: " نهانا
‏‏‏‏رسول الله صلى الله عليه وسلم أن نتكلف للضيف ". ذكره الحاكم شاهدا للإسناد
‏‏‏‏الأول وأشار إلى تصحيحه، وقال الذهبي في " تلخيصه ": " قلت: سنده لين ".
‏‏‏‏قلت: عبد الرحمن بن مسعود مقبول عند الحافظ، ولم يوثقه غير ابن حبان.
‏‏‏‏والحسن بن الرماس لم أعرفه.
‏‏‏‏__________جزء : 5 /صفحہ : 512__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏ثم تبين أنه الحسين بن الرماس، هكذا ذكره البخاري
‏‏‏‏وابن أبي حاتم في كتابيهما، ولم يذكرا فيه جرحا ولا تعديلا. وساق له
‏‏‏‏البخاري هذا الحديث بلفظ: " أمرنا أن لا نتكلف للضيف ما ليس عندنا، وأن نقدم
‏‏‏‏ما حضر ".
‏‏‏‏(تنبيه) : تكرر تخريج هذا الحديث فيما يأتي (2440) فمعذرة، وإن كان هناك
‏‏‏‏لا يخلو من زيادة فائدة.
‏‏‏‏¤


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