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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
فضائل و مناقب اور معائب و نقائص
फ़ज़िलतें, विशेषताएं, कमियां और बुराइयाँ
2181. سیدنا عمر فاروق رضی اللہ عنہ کے فضائل و مناقب
“ हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
حدیث نمبر: 3259
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
-" إن الشيطان ليفرق منك يا عمر!".-" إن الشيطان ليفرق منك يا عمر!".
عبداللہ بن بریدہ اپنے باپ سے روایت کرتے ہیں کہ جب رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم ایک غزوے سے واپس آئے تو سیاہ رنگ کی ایک لونڈی آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس آئی اور کہا: میں نے نذر مانی تھی کہ اگر اللہ تعالیٰ نے آپ کو فاتح لوٹایا تو میں آپ کے پاس دف بجاؤں گی۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: اگر نذر مانی ہے تو ٹھیک ہے (‏‏‏‏دف بجا لے) وگرنہ نہیں۔ اس نے دف بجانا شروع کیا، ابوبکر رضی اللہ عنہ آئے، وہ بجاتی رہی، دوسرے صحابہ آئے، وہ اسی حالت پر رہی۔ لیکن جب عمر رضی اللہ عنہ آئے تو اس نے دف چھپانے کے لیے اسے اپنے نیچے رکھ دیا اور دوپٹا اوڑھ لیا۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: عمر! شیطان تجھ سے ڈرتا ہے۔ میں اور یہ لوگ یہاں بیٹھے تھے (‏‏‏‏یہ دف بجاتی رہی) لیکن جب تم داخل ہوئے تو اس نے ایسے ایسے کر دیا۔
अब्दुल्लाह बिन बुरेदाह अपने पिता से रिवायत करते हैं कि जब रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक लड़ाई से वापस आए तो काली रंग की एक लौंडी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आई और कहा ! मैं ने नज़र मानी थी कि यदि अल्लाह तआला ने आप को विजयी लौटाया तो मैं आप के पास डफ़ बजाऊंगी। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “यदि नज़र मानी है तो ठीक है (डफ़ बजाले) वरना नहीं ।” उस ने डफ़ बजाना शुरू किया, अबु बक्र रज़ि अल्लाहु अन्ह आए, वह बजाती रही, दूसरे सहाबा आए, वह उसी हालत पर रही। लेकिन जब उमर रज़ि अल्लाहु अन्ह आए तो उस ने डफ़ छुपाने के लिये उसे अपने नीचे रख दिया और दुपट्टा ओढ़ लिया। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “उमर, शैतान तुझ से डरता है। मैं और यह लोग यहाँ बैठे थे (यह डफ़ बजाती रही) लेकिन जब तुम आए तो इस ने ऐसे ऐसे करदिया।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 1609

قال الشيخ الألباني:
- " إن الشيطان ليفرق منك يا عمر! ".
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‏‏‏‏أخرجه أحمد (5 / 353) والترمذي (4 / 316) وابن حبان (2186) مختصرا من
‏‏‏‏طريق الحسين بن واقد حدثني عبد الله بن بريدة عن أبيه: " أن أمة سوداء أتت
‏‏‏‏رسول الله صلى الله عليه وسلم ورجع من بعض مغازيه، فقالت: إني كنت نذرت: إن
‏‏‏‏ردك الله صالحا أن أضرب عندك بالدف! قال: " إن كنت فعلت فافعلي، وإن كنت لم
‏‏‏‏تفعلي فلا تفعلي ". فضربت، فدخل أبو بكر وهي تضرب ودخل غيره وهي تضرب، ثم
‏‏‏‏دخل عمر، قال: فجعلت دفها خلفها وهي مقنعة، فقال رسول الله صلى الله عليه
‏‏‏‏وسلم: (فذكره) وزاد: " أنا جالس ههنا، ودخل هؤلاء، فلما أن دخلت فعلت
‏‏‏‏ما فعلت ".
‏‏‏‏قلت: وهذا إسناد صحيح على شرط مسلم، وفي الحسين كلام لا يضر. وقد يشكل
‏‏‏‏هذا الحديث على بعض الناس لأن الضرب بالدف معصية في غير النكاح والعيد،
‏‏‏‏والمعصية لا يجوز نذرها ولا الوفاء بها. والذي يبدو لي في ذلك أن نذرها لما
‏‏‏‏كان فرحا منها بقدومه صلى الله عليه وسلم صالحا سالما منتصرا، اغتفر لها السبب
‏‏‏‏الذي نذرته لإظهار فرحها، خصوصية له صلى الله عليه وسلم دون الناس جميعا، فلا
‏‏‏‏يؤخذ منه جواز الدف في الأفراح كلها. لأنه ليس هناك من يفرح كالفرح به صلى
‏‏‏‏الله عليه وسلم، ولمنافاة ذلك لعموم الأدلة المحرمة للمعازف والدفوف وغيرها
‏‏‏‏، إلا ما استثنى كما ذكرنا آنفا.
‏‏‏‏__________جزء : 4 /صفحہ : 142__________ ¤


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