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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
ابتدائے (مخلوقات)، انبیا و رسل، عجائبات خلائق
जगत निर्माण, नबी और रसूलों का ज़िक्र और चमत्कार
2464. واقعہ اسرا و معراج
“ असरा और मअराज की घटना ”
حدیث نمبر: 3803
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
-" اتيت بالبراق، وهو دابة ابيض طويل يضع حافره عند منتهى طرفة، فلم نزايل ظهره انا وجبريل حتى اتيت بيت المقدس، ففتحت لنا ابواب السماء ورايت الجنة والنار".-" أتيت بالبراق، وهو دابة أبيض طويل يضع حافره عند منتهى طرفة، فلم نزايل ظهره أنا وجبريل حتى أتيت بيت المقدس، ففتحت لنا أبواب السماء ورأيت الجنة والنار".
سیدنا حذیفہ بن یمان رضی اللہ عنہ کہتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: میرے پاس سفید رنگ کا لمبا سا جانور براق لایا گیا، (‏‏‏‏اس کی سبک رفتاری کا یہ عالم تھا کہ) وہ اپنا قدم اپنی منتہائے نگاہ تک رکھتا تھا۔ میں اور جبریل اس پر سوار ہوئے، حتیٰ کہ بیت المقدس پہنچ گئے۔ ہمارے لیے آسمان کے دروازے کھول دیے گئے اور میں نے جنت اور جہنم دونوں دیکھیں۔ حذیفہ بن یمان نے کہا: آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے بیت المقدس میں نماز نہیں پڑھی تھی۔ لیکن (‏‏‏‏سند کے راوی) زر کہتے ہیں: میں نے انہیں کہا: کیوں نہیں، آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے تو نماز پڑھی تھی۔ حذیفہ نے کہا: گنجے! تیرا نام کیا ہے؟ میں تیرا چہرہ تو پہچانتا ہوں، لیکن مجھے تیرے نام کا علم نہیں ہے۔ میں نے کہا: میں زر بن حبیش ہوں۔ انہوں نے کہا: تجھے کیسے پتہ چلا کہ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے نماز پڑھی؟ میں نے کہا: ‏ ارشاد باری تعالیٰ ہے: «سُبْحَانَ الَّذِي أَسْرَى بِعَبْدِهِ لَيْلًا مِنَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ إِلَى الْمَسْجِدِ الْأَقْصَى الَّذِي بَارَكْنَا حَوْلَهُ لِنُرِيَهُ مِنْ آيَاتِنَا إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ» ‏‏‏‏ پاک ہے وہ اللہ جو اپنے بندے کو رات ہی رات میں مسجد الحرام سے مسجد اقصٰی تک لے گیا جس کے آس پاس ہم نے برکت دے رکھی ہے، اس لیے کہ ہم اسے اپنی قدرت کے بعض نمونے دکھائیں، یقیناً اللہ تعالیٰ ہی خوب سننے دیکھنے والا ہے۔ ۷-الإسراء:۱) انہوں نے کہا: کیا اس میں تجھے کوئی نماز پڑھنے کا تذکرہ ملتا ہے؟ اگر آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے نماز پڑھی ہوتی تو تم لوگ بھی نماز پڑھتے، جیسا کہ مسجد حرام میں پڑھتے ہو۔ زر کہتے ہیں: آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے اپنی سواری اس کڑے کے ساتھ باندھ دی، جس کے ساتھ دوسرے انبیاء علیہم السلام باندھتے تھے۔ حذیفہ نے پوچھا: (‏‏‏‏آیا باندھنے کی وجہ یہ ہے کہ) آپ صلی اللہ علیہ وسلم کو خدشہ تھا کہ وہ کہیں بھاگ نہ جائے، حالانکہ اللہ تعالیٰ اسے آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس لائے تھے۔
हज़रत हुज़ैफ़ा बिन यमान रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “मेरे पास सफ़ेद रंग का लम्बा सा जानवर बर्राक़ लाया गया, (उसकी तेज़ चाल की यह हालत थी) वह अपना क़दम उसकी नज़र से जहाँ तक दीखता था वहां रखता था। मैं और जिब्रईल उस पर सवार हुए, यहां तक कि बेत अल-मुक़ददस पहुंच गए। हमारे लिये आसमान के दरवाज़े खोल दिए गए और मैं ने जन्नत और जहन्नम दोनों देखीं।” हुज़ैफ़ा बिन यमान ने कहा कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बेत अल-मुक़ददस में नमाज़ नहीं पढ़ी थी। लेकिन (सनद के रावी) ज़र कहते हैं कि मैं ने उनसे कहा कि क्यों नहीं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तो नमाज़ पढ़ी थी। हुज़ैफ़ा ने कहा कि गंजे, तेरा नाम क्या है ? मैं तेरा चेहरा तो पहचानता हूँ, लेकिन मुझे तेरे नाम का पता नहीं है। मैं ने कहा कि मैं ज़र बिन हुबेश हूँ। उन्हों ने कहा कि तुझे कैसे पता चला कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ पढ़ी ? मैं ने कहा कि “अल्लाह तआला का कहना है ! « سُبْحَانَ الَّذِي أَسْرَى بِعَبْدِهِ لَيْلًا مِنَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ إِلَى الْمَسْجِدِ الْأَقْصَى الَّذِي بَارَكْنَا حَوْلَهُ لِنُرِيَهُ مِنْ آيَاتِنَا إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ » “पवित्र है वह अल्लाह जो अपने बंदे को रात ही रात में मस्जिद अल-हराम से मस्जिद अक़्सा तक लेगया जिसके आसपास हमने बरकत देरखी है, इस लिये कि हम उसे अपनी क़ुदरत के कुछ नमूने दिखाएँ, बेशक अल्लाह तआला ही अच्छा सुनने देखने वाला है।” (सूरत अल-इसराअ: 1) उन्हों ने कहा कि क्या इस में तुझे कोई नमाज़ पढ़ने की बात मिलती है ? यदि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ पढ़ी होती तो तुम लोग भी नमाज़ पढ़ते, जैसा कि मस्जिद हराम में पढ़ते हो। ज़र कहते हैं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी सवारी उस कड़े के साथ बाँध दी, जिस के साथ दूसरे नबी अलैहिमुस्सलाम बांधते थे। हुज़ैफ़ा ने पूछा कि (क्या बांधने का कारण यह है कि) आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को डर था कि वह कहीं भाग न जाए, हालांकि अल्लाह तआला उसे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास लाया था।
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 874

قال الشيخ الألباني:
- " أتيت بالبراق، وهو دابة أبيض طويل يضع حافره عند منتهى طرفة، فلم نزايل ظهره أنا وجبريل حتى أتيت بيت المقدس، ففتحت لنا أبواب السماء ورأيت الجنة والنار ".
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‏‏‏‏أخرجه أحمد (5 / 392 و 394) من طريق حماد بن سلمة عن عاصم بن بهدلة عن زر بن
‏‏‏‏حبيش عن حذيفة بن اليمان أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال: فذكره،
‏‏‏‏قال حذيفة بن اليمان: " ولم يصل في بيت المقدس، قال زر: فقلت له: بلى قد
‏‏‏‏صلى، قال حذيفة: ما اسمك يا أصلع، فإني أعرف وجهك ولا أعرف اسمك! فقلت:
‏‏‏‏أنا زر بن حبيش، قال: وما يدريك أنه قد صلى، قال: فقلت: يقول الله عز وجل
‏‏‏‏: * (سبحان الذي أسرى بعبده ليلا من المسجد الحرام إلى المسجد الأقصى الذي
‏‏‏‏باركنا حوله لنريه من آياتنا إنه هو السميع البصير) * قال: فهل تجده صلى؟ لو
‏‏‏‏صلى لصليتم فيه كما تصلون في المسجد الحرام. قال زر: وربط الدابة بالحلقة
‏‏‏‏التي يربط بها الأنبياء عليهم السلام. قال حذيفة: أو كان يخاف أن تذهب منه
‏‏‏‏وقد أتاه الله بها؟ ! ". وأخرجه الترمذي (4 / 139) والحاكم (2 / 359)
‏‏‏‏من طرق أخرى عن عاصم به نحوه. وقال الترمذي: " حديث حسن صحيح ".
‏‏‏‏وقال الحاكم: " صحيح الإسناد " ووافقه الذهبي.
‏‏‏‏وأقول: إنما هو حسن فقط للخلاف المعروف في عاصم بن بهدلة. ¤


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