الحمدللہ! انگلش میں کتب الستہ سرچ کی سہولت کے ساتھ پیش کر دی گئی ہے۔

 
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
اذان اور نماز
अज़ान और नमाज़
380. امام ہر دلعزیز شخصیت کا حامل ہے
“ इमाम वह होना चाहिए जिस को लोग पसंद करते हों ”
حدیث نمبر: 567
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
-" من ام قوما وهم له كارهون، فإن صلاته لا تجاوز ترقوته".-" من أم قوما وهم له كارهون، فإن صلاته لا تجاوز ترقوته".
ابوعبداللہ صنابحی کہتے ہیں: جنادہ بن ابوامیہ لوگوں کو جماعت کروانے لگے، جب نماز کے لیے کھڑے ہوئے تو دائیں طرف متوجہ ہو کر پوچھا: کیا تم لوگ (میرے امام بننے پر) راضی ہو؟ انہوں نے کہا: جی ہاں۔ پھر اسی طرح بائیں سمت میں کھڑے نمازیوں سے پوچھا، پھر کہا: میں نے سنا، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم فرما رہے تھے: جس نے لوگوں کو امامت کروائی اور وہ اس امام کو (کسی شرعی عذر کی بنا پر) ناپسند کرتے ہوں تو اس (امام) کی نماز اس کے گلے سے اوپر تجاوز نہیں کرے گی (یعنی قبول نہیں ہو گی)۔
अबू अब्दुल्लाह सुनाबिहि कहते हैं ! जुनादह बिन अबु उमय्या लोगों को जमाअत करवाने लगे, जब नमाज़ के लिए खड़े हुए तो दाएँ तरफ़ ध्यान करके पूछा ! क्या तुम लोग (मेरे इमाम बनने पर) सहमत हो ? उन्हों ने कहा ! जी हाँ। फिर इसी तरह बाएँ तरफ़ खड़े नमाज़ियों से पूछा, फिर कहा ! मैं ने सुना, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कह रहे थे ! “जिस ने लोगों को इमामत करवाई और वे उस इमाम को (किसी शरई कारण की बिना पर) पसंद नहीं करते हों तो उस (इमाम) की नमाज़ उस के गले से उपर नहीं जाए गी (यानी स्वीकार नहीं होगी)।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 2325

قال الشيخ الألباني:
- " من أم قوما وهم له كارهون، فإن صلاته لا تجاوز ترقوته ".
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‏‏‏‏رواه ابن عساكر (4 / 15 / 2) عن أبي بكر الهذلي عن شهر بن حوشب عن أبي عبد
‏‏‏‏الله الصنابحي:
‏‏‏‏__________جزء : 5 /صفحہ : 418__________
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‏‏‏‏أن جنادة بن أبي أمية أم قوما، فلما قام من الصلاة التفت
‏‏‏‏عن يمينه فقال: أترضون؟ قالوا: نعم. ثم فعل ذلك عن يساره، ثم قال: إني
‏‏‏‏سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: فذكره. قلت: وهذا إسناد ضعيف جدا
‏‏‏‏، آفته أبو بكر الهذلي، متروك الحديث. وشهر بن حوشب سيء الحفظ. من طريقه
‏‏‏‏أخرجه الطبراني كما في " فيض القدير ". لكن الحديث قد صح بمجموع رواية جمع من
‏‏‏‏الصحابة بألفاظ متقاربة، فراجع " الترغيب " (1 / 171) مع تخرجنا عليه.
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