الحمدللہ ! قرآن پاک روٹ ورڈ سرچ اور مترادف الفاظ کی سہولت پیش کر دی گئی ہے۔

 
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
روزے اور قیام کا بیان
रोज़े और क़याम ( रात की नमाज़ )
558. دوران سفر روزہ رکھنا کیسا ہے؟
“ यात्रा करते समय रोज़ा रखना कैसा है ? ”
حدیث نمبر: 833
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-" صم إن شئت، وافطر إن شئت".-" صم إن شئت، وأفطر إن شئت".
سیدہ عائشہ رضی اللہ عنہا کہتی ہیں: بے شک سیدنا حمزہ بن عمرو اسلمی رضی اللہ عنہ نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم سے سوال کیا: اے اللہ کے رسول! میں لگاتار روزے رکھتا ہوں، تو کیا میں سفر میں روزہ رکھ سکتا ہے؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: (تیری مرضی ہے) چاہے تو روزہ رکھ لے اور چاہے تو ترک کر دے۔
हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहु अन्हा कहती हैं ! बेशक हज़रत हमज़ह बिन अमरो अस्लमी रज़ि अल्लाहु अन्ह ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सवाल किया ! ऐ अल्लाह के रसूल, मैं लगातार रोज़े रखता हूँ, तो क्या मैं यात्रा में रोज़ा रख सकता है ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “(तेरी मर्ज़ी है) चाहे तू रोज़ा रखले और चाहे तू छोड़ दे।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 194

قال الشيخ الألباني:
- " صم إن شئت، وأفطر إن شئت ".
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‏‏‏‏أخرجه الشيخان وغيرهما من أصحاب الستة وابن أبي شيبة (2 / 150 / 1) وعنه
‏‏‏‏أبو حفص الكناني في " الأمالي " (17 / 1) .
‏‏‏‏قلت: فخيره صلى الله عليه وسلم بين الأمرين، ولم يفضل له أحدهما على الآخر،
‏‏‏‏والقصة واحدة، فدل على أن الحديث ليس فيه الأفضلية المذكورة.
‏‏‏‏ويقابل هذه الدعوى قول الشيخ علي القاري في " المرقاة " أن الحديث دليل على
‏‏‏‏أفضلية الصوم. ثم تكلف في توجيه ذلك.
‏‏‏‏والحق أن الحديث يفيد التخيير لا التفضيل، على ما ذكرناه من التفصيل.
‏‏‏‏نعم يمكن الاستدلال لتفضيل الإفطار على الصيام بالأحاديث التي تقول:
‏‏‏‏" إن الله يحب أن تؤتى رخصه كما يكره أن تؤتى معصيته. (وفي رواية) : كما
‏‏‏‏يحب أن تؤتى عزائمه ".
‏‏‏‏وهذا لا مناص من القول به، لكن يمكن أن يقيد ذلك بمن لا يتحرج بالقضاء،
‏‏‏‏وليس عليه حرج في الأداء، وإلا عادت الرخصة عليه بخلاف المقصود. فتأمل.
‏‏‏‏__________جزء : 1 /صفحہ : 377__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏وأما حديث " من أفطر (يعني في السفر) فرخصة، ومن صام فالصوم أفضل ".
‏‏‏‏فهو حديث شاذ لا يصح. والصواب أنه موقوف على أنس كما بينته في " الأحاديث
‏‏‏‏الضعيفة " (رقم 936) ، ولو صح لكان نصا في محل النزاع، لا يقبل الخلاف،
‏‏‏‏وهيهات، فلابد حينئذ من الاجتهاد والاستنباط، وهو يقتضى خلاف ما أطلقه
‏‏‏‏هذا الحديث الموقوف، وهو التفصيل الذي ذكرته. والله الموفق. ¤


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