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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
حدود، معاملات، احکام
सीमाएं, मामले, नियम
868. حلت و حرمت کے باب میں نبوی فیصلے کی اہمیت
“ हलाल और हराम के मामले में नबी के फ़ैसले की एहमियत ”
حدیث نمبر: 1260
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
-" ايحسب احدكم متكئا على اريكته قد يظن ان الله لم يحرم شيئا إلا ما في هذا القرآن؟! الا وإني والله قد امرت ووعظت ونهيت عن اشياء إنها لمثل هذا القرآن او اكثر وإن الله عز وجل لم يحل لكم ان تدخلوا بيوت اهل الكتاب إلا بإذن ولا ضرب نسائهم ولا اكل ثمارهم، إذا اعطوكم الذي عليهم".-" أيحسب أحدكم متكئا على أريكته قد يظن أن الله لم يحرم شيئا إلا ما في هذا القرآن؟! ألا وإني والله قد أمرت ووعظت ونهيت عن أشياء إنها لمثل هذا القرآن أو أكثر وإن الله عز وجل لم يحل لكم أن تدخلوا بيوت أهل الكتاب إلا بإذن ولا ضرب نسائهم ولا أكل ثمارهم، إذا أعطوكم الذي عليهم".
سیدنا عرباض بن ساریہ رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: ہم نے نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کے ساتھ خیبر میں پڑاؤ ڈالا، صحابہ بھی آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے ساتھ تھے۔ خیبر کا سردار بڑا سرکش اور دھوکہ باز آدمی تھا، وہ آپ صلی اللہ علیہ وسلم کی طرف متوجہ ہوئے اور کہا: اے محمد! کیا تم ہو جو ہمارے گدھے ذبح کرو گے، ہمارے پھل کھاؤ گے اور ہماری عورتوں پر قبضہ کرو گے؟ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم غصے میں آ گئے اور فرمایا: اے ابن عوف! گھوڑے پر سوار ہو کر اعلان کر: خبردار! جنت میں داخل ہونے والا صرف مومن ہو گا اور یہ (منادی بھی کرو کہ) نماز کے لیے جمع ہو جاؤ۔ لوگ جمع ہو گئے، آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے انہیں نماز پڑھائی، پھر کھڑے ہوئے اور فرمایا: کیا کوئی آدمی اپنے تیکے پر ٹیک لگا کر یہ گمان کر سکتا ہے کہ اللہ تعالیٰ نے وہی چیزیں حرام کی ہیں جن کا ذکر قرآن مجید میں ہے؟ آگاہ ہو جاؤ! اللہ کی قسم! میں نے کچھ حکم دیے ہیں اور وعظ و نصیحت کی ہے اور کچھ چیزوں سے منع کیا ہے۔ (میرے بیان کردہ احکام) قرآن مجید کے احکام جتنے یا ان سے بھی زیادہ ہیں۔ اللہ تعالیٰ نے تمہارے لیے بغیر اجازت کے اہل کتاب کے گھروں میں داخل ہونے، ان کی عورتوں کو مارنے اور ان کے پھل کھانے کو حلال نہیں کیا، بشرطیکہ وہ ان امور کی ادائیگی کرتے رہیں۔ جو ان کی ذمہ داری میں ہیں۔
हज़रत इरबाज़ बिन सारियह रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि हम ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ ख़ैबर में पड़ाव डाला, सहाबा भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ थे। ख़ैबर का सरदार बड़ा सरकश और धोकेबाज़ आदमी था, उस ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ओर ध्यान करते हुए कहा ! ऐ मुहम्मद, क्या तुम हो जो हमारे गधे ज़िबह करोगे, हमारे फल खाओगे और हमारी औरतों पर क़ब्ज़ा करोगे ? नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ग़ुस्से में आगए और फ़रमाया ! “ऐ इब्न औफ़ घोड़े पर सवार हो कर एलान कर, ख़बरदार ! जन्नत में जाने वाला केवल मोमिन होगा और यह (एलान भी करो कि) नमाज़ के लिये जमा हो जाओ।” लोग जमा होगए, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें नमाज़ पढ़ाई फिर खड़े हुए और फ़रमाया ! “क्या कोई आदमी अपने तकिये पर टेक लगा कर यह सोच सकता है कि अल्लाह तआला ने वे ही चीज़ें हराम की हैं जिन का बयान क़ुरआन मजीद में है ? ख़बरदार हो जाओ, अल्लाह की क़सम मैं ने कुछ हुक्म दिए हैं और वअज़ और नसीहत की है और कुछ चीज़ों से मना किया है। (मेरे दिये गए हुक्म) क़ुरआन मजीद के हुक्म जितने या उन से भी ज़्यादा हैं। अल्लाह तआला ने तुम्हारे लिये बिना अनुमति के एहले किताब के घरों में जाने, उन की औरतों को मारने और उन के फल खाने को हलाल नहीं किया, शर्त यह है वे उन मुद्दों का पालन करते रहें। जो उन की ज़िम्मेदारी में हैं।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 882

قال الشيخ الألباني:
- " أيحسب أحدكم متكئا على أريكته قد يظن أن الله لم يحرم شيئا إلا ما في هذا القرآن؟ ! ألا وإني والله قد أمرت ووعظت ونهيت عن أشياء إنها لمثل هذا القرآن أو أكثر وإن الله عز وجل لم يحل لكم أن تدخلوا بيوت أهل الكتاب إلا بإذن ولا ضرب نسائهم ولا أكل ثمارهم، إذا أعطوكم الذي عليهم ".
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‏‏‏‏أخرجه أبو داود (2 / 45) وعنه ابن عبد البر في " التمهيد " (1 / 149) عن
‏‏‏‏أشعث بن شعبة حدثنا أرطاة بن المنذر قال: سمعت حكيم بن عمير أبا الأحوص يحدث
‏‏‏‏عن العرباض بن سارية السلمي قال: " نزلنا مع النبي صلى الله عليه وسلم
‏‏‏‏خيبر ومعه من معه من أصحابه وكان صاحب خيبر رجلا ماردا منكرا، فأقبل إلى
‏‏‏‏النبي صلى الله عليه وسلم فقال: يا محمد ألكم أن تذبحوا حمرنا وتأكلوا ثمرنا
‏‏‏‏وتضربوا نساءنا؟ ! فغضب النبي صلى الله عليه وسلم وقال: يا ابن عوف اركب
‏‏‏‏فرسك ثم نادي: ألا إن الجنة لا تحل إلا لمؤمن وأن اجتمعوا للصلاة، قال:
‏‏‏‏فاجتمعوا، ثم صلى بهم النبي صلى الله عليه وسلم ، ثم قام فقال: " فذكره.
‏‏‏‏وهذا سند حسن إن شاء الله تعالى، أشعث بن شعبة، قال الذهبي: " قال أبو زرعة
‏‏‏‏وغيره لين، وقواه ابن حبان، روى عنه عبد الوهاب بن نجدة وأحمد بن السرح
‏‏‏‏وجماعة ".
‏‏‏‏قلت: وهذا الحديث رواه عنه محمد بن عيسى وهو ابن نجيح البغدادي وهو ثقة
‏‏‏‏فقيه. وأرطاة بن المنذر ثقة. وحكيم بن عمير، قال أبو حاتم: لا بأس به
‏‏‏‏وفي " التقريب ": صدوق يهم. وقد وردت هذه القصة عن خالد بن الوليد بنحوها
‏‏‏‏بلفظ: " يا أيها الناس ما بالكم أسرعتم....، وهو من حصة الكتاب الآخر
‏‏‏‏(3902) .
‏‏‏‏__________جزء : 2 /صفحہ : 542__________ ¤


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