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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
نصيحتين اور دل کو نرم کرنے والی احادیث
नसीहतें और दिल को नरम करने वाली हदीसें
1576. مال میراث کے بارے میں وصیت کی مقدار کا تعین
“ विरासत के माल की कितनी वसीयत की जाए ”
حدیث نمبر: 2344
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
-" لا، لا، لا، الصدقة خمس، وإلا فعشر، وإلا فخمس عشرة، وإلا فعشرون، وإلا فخمس وعشرون، وإلا فثلاثون، وإلا فخمس وثلاثون، فإن كثرت فاربعون".-" لا، لا، لا، الصدقة خمس، وإلا فعشر، وإلا فخمس عشرة، وإلا فعشرون، وإلا فخمس وعشرون، وإلا فثلاثون، وإلا فخمس وثلاثون، فإن كثرت فأربعون".
ذیال بن عتبہ بن خنظلہ کہتے ہیں: میں نے اپنے دادا خظلہ بن حذیم سے سنا، وہ کہتے ہیں کہ اس کے دادا حنیفہ نے حذیم سے کہا: میرے بیٹوں کو اکٹھا کرو، میں وصیت کرنا چاہتا ہوں۔ اس نے ان کو اکٹھا کیا، حنیفہ نے کہا: میری سب سے پہلی وصیت یہ ہے کہ میرے زیر پرورش یتیم کے لیے سو اونٹ ہیں، جس کو ہم جاہلیت میں مطیبہ کہتے تھے۔ حذیم نے کہا: اے ابا جان! میں نے آپ کے بیٹوں کو یہ کہتے ہوئے سنا: ہم مجمع میں باپ کے پاس تو اس کا اقرار کر لیں گے، لیکن جب وہ فوت ہو جائے گا تو ہم (اپنے معاہدے سے) پھر جائیں گے، حنفیہ نے کہا: تو پھر ہم اپنے مابین رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کو (شاہد بناتے ہیں) حذیم نے کہا: ہم اس بات پر راضی ہیں۔ چنانچہ حذیم اور حنیفہ چلے پڑے اور ان کے ساتھ یتیم لڑکا بھی تھا وہ حذیم کے پیچھے بیٹھا ہوا تھا۔ جب وہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس پہنچے تو انہوں نے آپ صلی اللہ علیہ وسلم کو سلام کہا: نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے پوچھا: (اے ابوحذیم! کیسے آئے ہو) اس نے کہا: یہ، پھر اس نے حذیم کی ران پر ہاتھ مارا اور کہا: پھر اندیشہ ہے کہ کہیں ایسا نہ ہو کہ بڑھاپا یا موت اچانک آ پڑے، اس لیے میں نے ارادہ کیا کہ اپنے اس زیر تربیت بچے کے لیے سو اونٹوں کی وصیت کر دوں، جس کو ہم جاہلیت میں مطیبہ کہتے تھے۔ یہ سن کر رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم غصے میں آ گئے، حتی کہ ہم نے آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے چہرے پر غصے کے آثار دیکھے۔ پہلے آپ صلی اللہ علیہ وسلم بیٹھے ہوئے تھے، (یہ سن کر) گھٹنوں کے بل ہو گئے اور فرمایا: نہیں، نہیں، نہیں۔ صدقہ پانچ (اونٹوں کا ہو سکتا ہے)، وگرنہ دس، نہیں تو پندرہ، یا پھر بیس، (اگر کوئی اس سے تجاوز کرے تو) پچیس، وگرنہ تیس، یا پھر پینتیس، اگر زیادہ کا (ارادہ ہو) تو چالیس۔ انہوں نے آپ صلی اللہ علیہ وسلم کو الوداع کہا اور یتیم کے پاس ایک لاٹھی تھی، جس سے وہ اونٹ کو مار رہا تھا۔ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: گراں گزرا ہے یتیم کا یہ چلنا۔ سیدنا حنظلہ رضی اللہ عنہ نے کہا: میرا باپ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کے قریب ہوا اور کہا: میرے بعض بیٹے باریش اور بعض کم عمر والے ہیں اور یہ ان میں سب سے چھوٹا ہے، آپ اس کے لیے اللہ تعالیٰ سے دعا فرما دیں۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے اس کے سر پر ہاتھ پھیرا اور فرمایا: اللہ تجھ میں برکت فرمائے یا تجھ میں برکت کر دی جائے۔ ذیال نے کہا: میں نے حنظلہ کو دیکھا کہ اس کے پاس سوزش زدہ چہرے والا انسان لایا جاتا یا سوزش زدہ تھنوں والا جانور لایا جاتا، وہ اپنے ہاتھ پر تھوکتا اور بسم اللہ کہتے ہوئے اپنا ہاتھ اس کے سر پر رکھ دیتا اور کہتا رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کی ہتھیلی کی جگہ پر، پھر ہاتھ پھیر دیتا۔ ذیال نے کہا: وہ سوزش ختم ہو جاتی تھی۔
ज़याल बिन उत्बह बिन हन्ज़लह कहते हैं कि मैं ने अपने दादा हन्ज़लह बिन हिज़यम से सुना, वह कहते हैं कि उस के दादा हनीफ़ह ने हिज़यम से कहा कि मेरे बेटों को इकट्ठा करो, मैं वसीयत करना चाहता हूँ। उस ने उन को इकट्ठा किया, हनीफ़ह ने कहा कि मेरी सब से पहली वसीयत यह है कि मेरे नीचे पलने वाले अनाथ लड़के के लिये सौ ऊंट हैं, जिस को हम जाहिलियत में “मुतिबह” कहते थे। हिज़यम ने कहा कि पिता जी मैं ने आप के बेटों को यह कहते हुए सुना कि हम लोग पिता के सामने तो यह स्वीकार कर लेंगे, लेकिन जब वह मर जाए गा तो हम (अपने समझौते से) पलट जाएंगे, हनफ़ियह ने कहा तो फिर हम अपने बीच में रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को (गवाह बनाते हैं) हिज़यम ने कहा कि हम इस बात पर सहमत हैं। इसलिए हिज़यम और हनीफ़ह चल पड़े और उन के साथ अनाथ लड़का भी था वह हिज़यम के पीछे बेठा हुआ था। जब वे रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास पहुंचे तो उन्हों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सलाम कहा तो नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा (अबू हिज़यम कैसे आए हो) उस ने कहा कि यह, फिर उस ने हिज़यम की रान पर हाथ मारा और कहा डर है कि कहीं ऐसा न हो कि बुढ़ापा या मौत अचानक आ जाए, इस लिये मैं ने इरादा किया कि अपने नीचे पलने वाले इस बच्चे के लिये सौ ऊँटों की वसीयत कर दूँ, जिस को हम जाहिलियत में “मुतिबह” कहते थे। यह सुन कर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ग़ुस्से में आगए, यहां तक कि हम ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चहरे पर ग़ुस्से की झलक देखी। पहले आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बैठे हुए थे (यह सुन कर) घुटनों के बल हो गए और फ़रमाया ! “नहीं, नहीं, नहीं, सदक़ह पांच (ऊँटों का हो सकता है) वरना दस, नहीं तो पन्द्रह, या फिर बीस, (यदि कोई इस से अधिक करे तो) पच्चीस, वरना तीस, या फिर पेंतीस, यदि और अधिक करे तो चालीस।” उन्हों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल-विदाअ कहा और अनाथ लड़के के पास एक लाठी थी, जिस से वह ऊंट को मार रहा था। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “भारी गुज़रा है अनाथ का यह चलना।” हज़रत हंज़लह रज़ि अल्लाहु अन्ह ने कहा कि मेरा पिता नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़रीब हुआ और कहा कि मेरे कुछ बेटे बड़ी आयु वाले और कुछ कम आयु वाले हैं और यह उन में सब से छोटा है, आप इस के लिये अल्लाह तआला से दुआ करदें। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस के सिर पर हाथ फेरा और फ़रमाया ! ’’ अल्लाह तुझ में बरकत करे या तुझ में बरकत करदी जाए।” ज़याल ने कहा कि मैं ने हंज़लहु को देखा कि उस के पास सूजे हुए चहरे वाला इन्सान लाया जाता या सूजे हुए थनों वाला जानवर लाया जाता, वह अपने हाथ पर थूकता और “बिस्मिल्लाह” « بِسْمِ اللَّـه » कहते हुए अपना हाथ उस के सिर पर रख देता और केहता रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हथेली की जगह पर, फिर हाथ फेर देता। ज़याल ने कहा कि सूजन ख़त्म हो जाती थी।
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 2955

قال الشيخ الألباني:
- " لا، لا، لا، الصدقة خمس، وإلا فعشر، وإلا فخمس عشرة، وإلا فعشرون، وإلا فخمس وعشرون، وإلا فثلاثون، وإلا فخمس وثلاثون، فإن كثرت فأربعون ".
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‏‏‏‏أخرجه أحمد (5 / 67 - 68) : حدثنا أبو سعيد مولى بني هاشم: حدثنا ذيال بن
‏‏‏‏عتبة ابن حنظلة قال: سمعت حنظلة بن حذيم (¬1) - جدي - أن جده حنيفة قال لحذيم:
‏‏‏‏اجمع لي بني فإني أريد أن أوصي، فجمعهم، فقال: إن أول ما أوصي أن ليتيمي هذا
‏‏‏‏الذي في حجري مائة من الإبل التي كنا نسميها في الجاهلية (المطيبة) . فقال
‏‏‏‏حذيم، يا أبت إني سمعت بنيك يقولون: إنما نقر بهذا عند (في المجمع: عين)
‏‏‏‏أبينا، فإذا مات رجعنا فيه! قال: فبيني وبينكم رسول الله صلى الله عليه
‏‏‏‏وسلم. فقال حذيم: رضينا. فارتفع حذيم وحنيفة، وحنظلة معهم غلام، وهو
‏‏‏‏رديف لحذيم، فلما أتوا النبي صلى الله عليه وسلم سلموا عليه، فقال النبي صلى
‏‏‏‏الله عليه وسلم: " وما رفعك يا أبا حذيم؟ ". قال: هذا. وضرب بيده على
‏‏‏‏فخذ حذيم، فقال: إني خشيت أن يفجأني الكبر أو الموت، فأردت أن أوصي أن
‏‏‏‏ليتيمي هذا الذي في حجري مائة من الإبل كنا نسميها في الجاهلية (المطيبة) ،
‏‏‏‏فغضب رسول الله صلى الله عليه وسلم حتى رأينا الغضب في وجهه، وكان قاعدا فجثا
‏‏‏‏على ركبتيه، وقال: (فذكر الحديث) قال: فودعوه، ومع اليتيم عصا، وهو
‏‏‏‏يضرب جملا، فقال النبي صلى الله عليه وسلم : " عظمت! هذه هراوة يتيم! ".
‏‏‏‏قال حنظلة: فدنا أبي إلى النبي صلى الله عليه وسلم فقال: إن لي بنين ذوي لحى
‏‏‏‏ودون ذلك، وإن ذا أصغرهم فادع الله له، فمسح رأسه وقال: " بارك الله فيك
‏‏‏‏، أو بورك فيك ".
‏‏‏‏¬
‏‏‏‏__________
‏‏‏‏(¬1) الأصل هنا وفيما يأتي (جذيم) بالجيم، خطأ، والتصحيح من " المجمع "
‏‏‏‏و" التقريب " وكتب الرجال. اهـ.
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 1106__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏قال ذيال: فلقد رأيت حنظلة يؤتى بالإنسان الوارم وجهه، أو
‏‏‏‏البهيمة الوارمة الضرع فيتفل على يديه ويقول: بسم الله، ويضع يده على رأسه
‏‏‏‏، ويقول: على موضع كف رسول الله صلى الله عليه وسلم فيمسحه عليه. قال ذيال:
‏‏‏‏فيذهب الورم. قلت: وهذا إسناد ثلاثي صحيح، وقال الهيثمي (4 / 210 - 211)
‏‏‏‏: " رواه أحمد، ورجاله ثقات ". فأقول حنظلة صحابي صغير دعا له الرسول صلى
‏‏‏‏الله عليه وسلم كما ترى، وذيال وثقه ابن معين وابن حبان، وقول الأزدي: "
‏‏‏‏فيه نظر "، مما لا يجوز الالتفات إليه هنا على الأقل. وأبو سعيد مولى بني
‏‏‏‏هاشم اسمه عبد الرحمن بن عبد البصري، ثقة من رجال البخاري وقد تابعه محمد بن
‏‏‏‏عثمان: حدثنا ذيال بن عبيد به مع اختصار الطرف الأول من القصة. أخرجه
‏‏‏‏الطبراني في " المعجم الكبير " (4 / 15 / 3499 و 3500) . ورجاله ثقات أيضا
‏‏‏‏غير محمد بن عثمان وهو القرشي، وقد عرفت حاله مما سبق بيانه في الحديث الذي
‏‏‏‏قبله.
‏‏‏‏
‏‏‏‏2956


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