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तौहीद पर ईमान, दीन और तक़दीर
1. “ अल्लाह तआला की महान क़ुदरत और विशाल बादशाहत ”
2. “ अल्लाह तआला के कभी ख़तम न होने वाले ख़ज़ाने ”
3. “ कायनात के सारे काम अल्लाह तआला की मर्ज़ी से होते हैं ”
4. “ अल्लाह तआला की रहमत और क्रोध के बारे में ”
5. “ अल्लाह तआला की ज़ात की बजाए उसकी नअमतों पर ग़ौर करना चाहिए ”
6. “ अल्लाह तआला के ईश्वर होने और रसूल अल्लाह ﷺ के रसूल होने की गवाही देने की फ़ज़ीलत ”
7. “ पांच मामलों के बारे में केवल अल्लाह ही जनता है ”
8. “ तौहीद : अल्लाह एक और अकेला है यह विश्वास करने के नियम ”
9. “ तौहीद : अल्लाह एक और अकेला है यह विश्वास करने की बरकतें ”
10. “ सारे कर्मों का आधार तौहीद है यानि अल्लाह को एक और अकेला मानना है ”
11. “ अल्लाह तआला को याद करने का कारण ”
12. अल्लाह तआला को याद करने का फल
13. अल्लाह तआला को किस ने पैदा किया ، इसका जवाब
14. «لا إله إلا الله» ज़्याद कहने की नसीहत और इसका कारण
15. अल्लाह तआला को एक और अकेला ईश्वर मानने और रसूल अल्लाह ﷺ को अल्लाह का रसूल मानने का हुक्म
16. मरने वाले को कलिमह शहादत पढ़ने की नसिहत करना
17. शिर्क क्या है ، इसके प्रकार और इसका बोझ
18. क्या तोबा किये बिना मर जाने वाले मुसलमानो को क्षमा कर दिया जाएगा ?
19. इस्लाम स्वीलकार करने के बाद पलट जाना पाप है और क्या इस की तोबा मुमकिन है
20. सवाब कैसे पहुंचाया जा सकता है
21. “ काफ़िरों को मरने के बाद उनके नेक कर्म कोई लाभ नहीं पहुंचाते ”
22. “ इस्लाम लाने के बाद जाहिलियत के समय में की गई नेकियों की एहमियत ”
23. “ अगर कोई मुसलमान हज्ज करने के बाद इस्लाम छोड़ दे और फिर से मुसलमान हो जाए तो क्या उसका किया हुआ हज्ज काफ़ी होगा ”
24. “ इस्लाम लाने के बाद पिछले पापों की पूछताछ कब की जाएगी ”
25. “ ईमान लाने वाले अहले किताब और मुशरिकों के बदले और सवाब में अंतर ”
26. “ वह लोग जन्हें अल्लाह तआला पसंद नहीं करता है ”
27. “ अल्लाह तआला के सिवा किसी और की क़सम खाना मना है ”
28. “ बड़े पापों से बचने की नसिहत ”
29. “ परीक्षाएँ इस उम्मत की तक़दीर हैं ”
30. “ सबसे अच्छा दीन ”
31. “ रसूल अल्लाह ﷺ की उम्मत के लिए तय की गई शरीअत आसान है ”
32. “ बीच रस्ते पर चलते रहने की नसिहत और तरीक़ा ”
33. “ दीन मैं हद से आगे जाना मना है ”
34. “ तक़दीर के बारे में ”
35. “ तक़दीर सच है, लेकिन इन्सान का विकल्प ”
36. “ तक़दीर के बारे में बात करने वाले अच्छे लोग नहीं ”
37. “ पैदा किये जाते समय ईमान या कुफ़्र का फ़ैसला ”
38. “ प्रचारकों के गुण ”
39. “ नेकी का बदला दस से सात सो गुना अधिक ”
40. “ आदमी अपने मरने की जगह कैसे पहुंचता है ? ”
41. “ वही उतरते समय आसमान वालों के बारे में ”
42. “ शैतान वही यानि आसमान की बातें कैसे जान लेते हैं ”
43. “ ईमान के लक्षण ”
44. “ बुराइयों के कारण ईमान में कमी आजाती है ”
45. “ बुरे इन्सान का ईमान कैसे चला जाता है ”
46. “ नेकी और बुराई का कैसे पता चलता है ”
47. “ पाप किसे कहते हैं ”
48. “ मोमिन पर लाअनत करने की निंदा ”
49. “ किसी को काफ़िर कहने से बचना ”
50. “ मुसलमानों में बाक़ी रह जाने वाली जाहिलियत की विशेषताएं ”
51. “ ग्रहों और सितारों में विश्वास ( ज्योतिष विद्या ) के बारे में ”
52. “ क़यामत के दिन बहरे, पागल और बहुत बूढ़े इन्सान की दोबारा परीक्षा ”
53. “ हर नेक कर्म किया जाए चाहे वह पसंद न हो ”
54. “ इबादत के समय इबादत करने वाले के बारे में ”
55. “ दुनिया में मोमिन एक परदेसी यानी यात्री है ”
56. “ जीवन में मोमिन अपने आप को क्या समझे ”
57. “ अल्लाह तआला के अज़ाब से बचाओ और जन्नत में जाने के कारण ”
58. “ मोमिन के दिखाई देने वाले लक्षण ”
59. “ हर समय और हर जगह अल्लाह तआला को याद करना ”
60. “ हर बुराई के बाद नेकी करने की नसीहत ”
61. “ सब्र और दान पूण भी ईमान में आते हैं ”
62. “ शर्म और हया भी ईमान है ”
63. “ अल्लाह के लिए दोस्ती और दुश्मनी रखना ईमान की मज़बूत कड़ी है ”
64. “ ईमान और जिहाद सबसे अफ़ज़ल कर्मों में से हैं ”
65. “ इस्लाम ، जिहाद और हिजरत के प्रकार ”
66. “ अफ़ज़ल हिजरत ”
67. “ सफलता का रहस्य ”
68. “ तौरात में रसूल अल्लाह ﷺ के बारे में ”
69. “ चार मना कर दिए गए मामले ”
70. “ इस्लाम में समझदारी के बारे में ”
71. “ किसी की इबादत करने का अर्थ « اتَّخَذُوا أَحْبَارَهُمْ وَرُهْبَانَهُمْ أَرْبَابًا مِّن دُونِ اللَّـهِ » [ सूरत अत-तौबा:31] की तफ़्सीर ] ”
72. “ कब तक लोगों से जंग की जाए ”
73. “ इस्लाम के विभिन्न नियम ”
74. “ इस्लाम स्वीकार करने के बाद मुसलमानों के लिए हानिकारक ”
75. “ मर चुके मोमिनों की आत्माओं की जगह ”
76. “ मुसलमानों की शरू की और बाद की हालत ”
77. “ विदा करने की दुआ ”
78. “ अल्लाह के क़रीब आने के कारण अल्लाह के दोस्तों की निशानियां और उन से दुश्मनी करने वालों का बुरा अंत अल्लाह तआला की अच्छाई “تردد ” के बारे में ”
79. “ अल्लाह तआला से कल्पना करने के बारे में ”
80. “ सूरत अल-माइदा (44) « وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أَنزَلَ اللَّـهُ فَأُولَـٰئِكَ هُمُ الْكَافِرُونَ » (47) « وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أَنزَلَ اللَّـهُ فَأُولَـٰئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ » (45) « وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أَنزَلَ اللَّـهُ فَأُولَـٰئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ » की तफ़्सीर ”
81. “ क्या बुरा आदमी दीन का माध्यम बन सकता है ”
82. “ क़त्ल करने वाला और क़त्ल होने वाला दोनों जन्नत में ”
83. “ हर सो साल के बाद दिन का फिर से ताज़ा होना ”
84. “ हर कारीगर को और उस के हुनर यानि काम को अल्लाह तआला पैदा करता है ”
85. “ अल्लाह के लिए नियत करना कर्म स्वीकार होने का आधार बनती है ”
86. “ दिखावा छोटा शिर्क है ”
87. “ दिखावा करने वाला ، शहीद ، दानी ، क़ारी और ज्ञानी का अंत ”
88. “ लोकप्रियता कि इच्छा करना बोझ है ”
89. “ अल्लाह तआला से ईमान को ताज़ा करने कि दुआ करना ”
90. “ मुसलमान किसी बंदे के बुरा या नेक होने के गवाह हैं ”
91. “ ईमानदारी से किये गए नेक कर्मों को वसीला बनाना ... गुफा वालों का क़िस्सा ”
92. “ मदीना और मक्का दज्जाल से सुरक्षित हैं ”
93. “ अज़ल ! यानि परिवार नियोजन का परिचय और हुक्म ”
94. “ क्या तअवीज़ लटकाना यानि तअवीज़ गंडा शिर्क है ”
95. “ रसूल अल्लाह ﷺ का फ़रमान सहाबा के लिए काफ़ी होना ”
96. “ अरब कि ज़मीन से शैतान का निराश हो जाना ”
97. “ मक्का पर विजय के दिन इब्लीस कि हालत ”
98. “ शैतान की चालबाज़ी और शैतान की बात ना मानने पर जन्नत कि ख़ुशख़बरी ”
99. “ नज़र लग जाना सच है ”
100. “ बनि सक़ीफ़ का झूठा और घातक ”
101. “ आदम कि औलाद के दिलों का अल्लाह तआला के क़ाबू में होना ”
102. “ उम्मत का रसूल अल्लाह ﷺ के दर्शन की इच्छा करना ”
103. “ इस्लाम की निशानियां ”
104. “ हमारे लिए किसी का ईमान और कुफ़्र जानने के लिए उसका कहना काफ़ी है ”
105. “ हर दुश्मन से बचाने वाला अल्लाह तआला है ، रसूल अल्ल्हा ﷺ का निजी बदला न लेना ”
106. “ अल्लाह तआला और रसूल अल्लाह ﷺ से सुरक्षित होने की शर्तें ، ग़ैर मुस्लिम देश में रहना केसा है ، हिजरत का हुक्म बाक़ी है ”
107. “ मुशरिकों के साथ रहने की नहूसत ”
108. “ जहन्नम से दूर होने और जन्नत के क़रीब आने का तरीक़ा ”
109. “ रिज़्क़ कैसे माँगा जाए ”
110. “ जिहाद क़यामत तक रहेगा ”
111. “ इस्लाम में सन्यास नहीं है ، जिहाद की फ़ज़ीलत ”
112. “ रसूल अल्लाह ﷺ और आप की उम्मत की मिसाल ”
113. “ इस्लाम के बाद फिर से फ़ितनों का उभरना ”
114. “ « يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا عَلَيْكُمْ أَنفُسَكُمْ ۖ لَا يَضُرُّكُم مَّن ضَلَّ إِذَا اهْتَدَيْتُمْ » ( सूरत अल-माइदा:105 ) की तफ़्सीर ”
115. “ ईमान के भाग ”
116. “ यमनी लोगों के ईमान की फ़ज़ीलत ”
117. “ ईमान वालों की ताअरीफ़ और पूरब के लोगों की निंदा ”
118. “ रसूल अल्लाह ﷺ का जिन्नों को क़ुरआन पढ़ कर सुनना ”
119. “ हिरक़ल को इस्लाम की दावत के पत्र ، इस्लाम स्वीकार करने के मामले में रसूल अल्लाह ﷺ और सहाबा की विशेषताएं ”
120. “ ईमान की मिठास किस को नसीब होती है ”
121. “ किन लोगों की इबादत स्वीकार नहीं की जाती ? ”
122. “ दोहरा सवाब पाने वाले तीन तरह के लोग ”
123. “ मौत का फरिश्ता पहले कैसे आता था और मूसा अलैहिस्सलाम का मौत के फ़रिश्ते को थप्पड़ मरना ”
124. “ जन्नत और जहन्नम दोनों हर इन्सान के क़रीब हैं ”
125. “ हलाल और हराम तो साफ़ है लेकिन शक वाली चीज़ों के बारे मैं ”
126. “ मालदार लोगों के पास नेकियां कम होती हैं ”
127. “ नमाज़ ، हज्ज और रमज़ान के रोज़ों की फ़ज़ीलत ”
128. “ हवा पानी अगर अच्छा न हो तो दूसरी जगह जाया जा सकता है ”
129. “ अच्छा सपना ”
130. “ बुरा सपना ”
131. “ « الَّذِينَ آمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ لَهُمُ الْبُشْرَىٰ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَفِي الْآخِرَةِ » की तफ़्सीर ”
132. “ ऊँचा दर्जा और पापों का कफ़्फ़ारह बनने वाले कर्म और रसूल अल्लाह ﷺ का अल्लाह तआला को देखना ”
133. “ दोस्त आप की पहचान होता है ”
134. “ बच्चों का अंतिम मामला ”
135. “ तीन प्रकार के बड़े पाप ”
136. “ बंदे की निराशा पर अल्लाह तआला का हंसना ”
137. “ नजाशी मुसलमान था ”
138. “ अल्लाह तआला का बंदे से क़र्ज़ मांगना ”
139. “ अल्लाह तआला के हाँ बंदे के कर्मों का बढ़ जाना ”
140. “ रसूल अल्लाह ﷺ को देखे बिना उन पर ईमान लाने वलों की फ़ज़ीलत ”
141. “ अच्छा शगुन लेना ”
142. “ बुरा शगुन लेना मना है ”
143. “ छूतछात का रोग ، बुरी फ़ाल ، नहूसत और नज़र लगने के बारे में ”
144. “ ज्योतिष विद्या ”
145. “ जादू करना मना है ”
146. “ क्षमा किये जाने और न किये जाने वाले ज़ुल्म ”
147. “ क्या कोई चीज़ मनहूस हो सकती है ”
148. “ नबवत की मुहर ”
149. “ बेसबरी और आत्महत्त्या के बारे में ”
150. “ वंश बदलना कुफ़्र है ”
151. “ शिर्क और क़त्ल क्षमा नहीं किया जाएगा ”
152. “ क़यामत के दिन रसूल अल्लाह ﷺ के नसबी और वैवाहिक रिश्ते बने रहेंगे ”
153. “ अच्छे और बुरे लोगों के रस्ते और ठिकाने अलग अलग हैं ”
154. “ रसूल अल्लाह ﷺ किन मामलों को साथ लाए हैं ”
155. “ असरा (रात का सफ़र ) और मअराज के अवसर पर काफ़िरों का रसूल अल्लाह ﷺ का मज़ाक़ बनाना और निंदा करना ”
156. “ रसूल अल्लाह ﷺ पर ईमान न लेन वाले यहूदी और इसाई का अंजाम ”
157. “ अगर दस यहूदी रसूल अल्लाह ﷺ पर ईमान ले आए तो ”
158. “ रसूल अल्लाह ﷺ के सहाबी की करामत और रिज़्क़ दें वाला अल्लाह है ”
159. “ तकलिफ़ होने पर बिस्मिल्लाह «بسم الله» कहने की फ़ज़ीलत ”
160. “ रसूल अल्लाह ﷺ की बरकतों का होना ”
161. “ अल्लाह तआला को ताअरीफ़ भी पसंद है और कारण भी ”
162. “ अल्लाह तआला का सब्र ”
163. “ ईमान में उतार चढ़ाओ मुनाफ़िक़त नहीं है ”
164. “ अपनी बढ़ाई और दुसरे को छोटा दिखाने के लिए पारिवारिक नाम का उपयोग करना मना है ”
165. “ मोमिन की मिसाल मधुमक्खी और खजूर के पेड़ की तरह है ”
166. “ हर इन्सान को समय पर सहमत होना चाहिए और नेक कर्म करना चाहिए ، कौन सा भेदभाव निंदनीय है ”
167. “ पद संभालने वाले सतर्क रहैं अल्लाह तआला के नाम पर सवाल करने वाला या जिस से सवाल किया जाए दोनों लाअनती कैसे ”
168. “ नेकी की तरफ़ बुलाने वाले का सवाब और बुराई की तरफ़ बुलाने वाले का बोझ ”
169. “ किसी को मुसीबत में देखने की दुआ और उसका लाभ ”
170. “ किसी से अल्लाह तआला के लिए मुहब्बत करने का बदला ”
171. “ किस मुसलमान को अल्लाह तआला और रसूल अल्लाह ﷺ की ज़मानत दी गई है ”
172. “ अल्लाह तआला किस मुसलमान को क्षमा करता है ”
173. “ दुआ न करना अल्लाह तआला के ग़ुस्से का कारण है ”
174. “ एक मोमिन दुसरे मोमिन का दर्पण है ”
175. “ ईमान वालों की आपस की मुहब्बत के बारे में ”
176. “ आपसी भाईचारा ، मुसलमान की बुराई छुपाना और तकलीफ़ दूर करने का सवाब ”
177. “ अगली नस्लों तक हदीसें पहुंचाने वाले और मुहद्दिसों की फ़ज़ीलत ، दुनिया की चिंता का अंजाम और आख़िरत की चिंता का नतीजा ”
178. “ लोग चार प्रकार और कर्म छे प्रकार के हैं ”
179. “ रसूल अल्लाहु ﷺ के हुक्म पर खजूर के गुच्छे का उन की तरफ़ आना ”
180. “ एक से बढ़ कर एक अफ़ज़ल ( अच्छे ) कर्म ”
181. “ ज़माने को गाली देना मना है ”
182. “ मोमिन की फ़ज़ीलत ”
183. “ मोमिन का दूसरों के लिए भलाई पसंद करना ”
184. “ ईमान ، सच्चाई ، अमानत वाले दिल का कुफ़्र ، झूठ और ख़यानत से पाक होना ”
185. “ मोत के समय पापों से डरने के बारे में ”
186. “ अहंकार का अर्थ और निंदा ”
187. “ क़यामत से पहले बारह क़ुरेशी ख़लीफ़ाओं की ख़िलाफ़त का होना ”
188. “ हर ज़माने में एक जत्था सच्चे दीन पर बना रहेगा ”
189. “ मोमिन नसीहत लेता है ”
190. “ कुछ मोमिनों का रसूल अल्लाह ﷺ के पास आराम पाना और उनकी विशेषताएं ”
191. “ इब्लीस यानि शैतान को पैदा करने का कारण ”
192. “ बढ़ाई की परख रंग नसल और तक़वा है ”
193. “ « وَأَنذِرْعَشِيرَتَكَ الْأَقْرَبِينَ » की तफ़्सीर ”
194. “ ज़्यादा से ज़्यादा कितने रोज़े रखे जा सकते हैं ، रसूल अल्लाह ﷺ मुसलमानो के लिए उन से ज़्यादा अच्छा चाहते हैं ”
195. “ क़यामत के दीन ग़रीब कौन होगा? अल्लाह तआला के बंदो पर ज़ुल्म करने वालों की आख़िरत के बारे में ”
196. “ आधे शअबान के महीने की फ़ज़ीलत ”
197. “ एहले तौहीद भी बुरे कर्मों के कारण जहन्नम में जा सकते हैं ”
198. “ कुछ कारणों से कुछ हदीसों को न सुनाना ”
199. “ रसूल अल्लाह ﷺ का चमत्कार और खाने में बरकत ”
200. “ रसूल अल्लाह ﷺ का चमत्कार और खाने में बरकत ”
201. “ रसूल अल्लाह ﷺ की हदीसों पर संतोष करना चाहिए ”
202. “ नेक कर्म रसूल अल्लाह ﷺ की अनुमति के अनुसार कम या ज़्यादा हों ”
203. “ रसूल अल्लाह ﷺ की आज्ञा का पालन न करना जन्नत से इन्कार के बराबर ”

سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
الايمان والتوحيد والدين والقدر
ایمان توحید، دین اور تقدیر کا بیان
तौहीद पर ईमान, दीन और तक़दीर
توحید کی برکتیں
“ तौहीद : अल्लाह एक और अकेला है यह विश्वास करने की बरकतें ”
حدیث نمبر: 15
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-" قال الله تبارك وتعالى: الحسنة بعشر امثالها او ازيد والسيئة واحدة او اغفرها ولو لقيتني بقراب الارض خطايا ما لم تشرك بي لقيتك بقرابها مغفرة".-" قال الله تبارك وتعالى: الحسنة بعشر أمثالها أو أزيد والسيئة واحدة أو أغفرها ولو لقيتني بقراب الأرض خطايا ما لم تشرك بي لقيتك بقرابها مغفرة".
سیدنا ابوذر رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: ہمیں صادق و مصدوق (محمد صلی اللہ علیہ وسلم ) نے اپنے رب سے روایت کرتے ہوئے بیان کیا کہ اللہ تعالیٰ نے فرمایا: نیکی کا بدلہ دس گنا یا اس سے بھی زیادہ عطا کرتا ہوں اور برائی کا بدلہ ایک گنا دوں گا یا اسے بھی معاف کر دوں گا۔ (اے میرے بندے!) اگر تو زمین کے لگ بھگ گناہ لے کر مجھے ملے، تو میں تجھے اتنی ہی بخشش عطا کر دوں گا، بشرطیکہ تو نے میرے ساتھ کسی کو شریک نہ ٹھہرایا ہو۔
حدیث نمبر: 16
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-" يقول الله عز وجل: من عمل حسنة فله عشر امثالها او ازيد ومن عمل سيئة فجزاؤها مثلها او اغفر ومن عمل قراب الارض خطيئة، ثم لقيني لا يشرك بي شيئا جعلت له مثلها مغفرة ومن اقترب إلي شبرا اقتربت إليه ذراعا ومن اقترب إلي ذراعا اقتربت إليه باعا ومن اتاني يمشي اتيته هرولة".-" يقول الله عز وجل: من عمل حسنة فله عشر أمثالها أو أزيد ومن عمل سيئة فجزاؤها مثلها أو أغفر ومن عمل قراب الأرض خطيئة، ثم لقيني لا يشرك بي شيئا جعلت له مثلها مغفرة ومن اقترب إلي شبرا اقتربت إليه ذراعا ومن اقترب إلي ذراعا اقتربت إليه باعا ومن أتاني يمشي أتيته هرولة".
سیدنا ابوذر رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: اللہ تعالی کہتے ہیں: جس نے ایک نیکی کی، اسے دس گنا یا اس سے بھی زیادہ اجر و ثواب عطا کروں گا اور جس نے ایک برائی کی تو ایک برائی کا ہی بدلہ دوں گا یا وہ بھی معاف کر دوں گا۔ جو زمین کے لگ بھگ گناہ کرنے کے بعد مجھے اس حالت میں ملے کہ اس نے میرے ساتھ کسی کو شریک نہ ٹھہرا رکھا ہو تو میں اسے اتنی ہی مغفرت عطا کر دوں گا۔ جو ایک بالشت میرے قریب ہو گا میں ایک ہاتھ اس کے قریب ہوں گا، جو ایک ہاتھ میرے قریب ہو گا میں دو ہاتھوں کے پھیلاؤ کے بقدر اس کے قریب ہوں گا اور میری طرف چل کر آئے گا میں اس کی طرف لپک کر جاؤں گا۔
حدیث نمبر: 17
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-" من لقي الله لا يشرك به شيئا لم يتند بدم حرام، دخل الجنة".-" من لقي الله لا يشرك به شيئا لم يتند بدم حرام، دخل الجنة".
سیدنا عقبہ بن عامر جہنی رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: جو اللہ تعالیٰ کو اس حال میں ملے کہ اس نے اس کے ساتھ کسی کو شریک نہ ٹھہرایا ہو اور نہ کسی کو ناحق قتل کیا ہو، وہ جنت میں داخل ہو گا۔
حدیث نمبر: 18
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-" من وحد الله تعالى وكفر بما يعبد من دونه حرم ماله ودمه وحسابه على الله عز وجل".-" من وحد الله تعالى وكفر بما يعبد من دونه حرم ماله ودمه وحسابه على الله عز وجل".
ابومالک اشجعی اپنے باپ سیدنا طارق بن اشیم رضی اللہ عنہ سے بیان کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: جس نے اللہ تعالیٰ کو یکتا و یگانہ قرار دیا اور اس کے علاوہ (سب معبودانِ باطلہ) کا انکار کر دیا، تو اس کا مال اور خون حرمت والا قرار پائے گا اور اس کا حساب اللہ تعالیٰ پر ہو گا۔
حدیث نمبر: 19
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-" ذاك جبريل عرض لي في جانب الحرة، فقال: بشر امتك انه من مات لا يشرك بالله شيئا دخل الجنة. فقلت: يا جبريل وإن سرق وإن زنى؟ قال: نعم، قال: قلت: وإن سرق وإن زنى؟ قال: نعم. قال: قلت: وإن سرق وإن زنى؟ قال: نعم وإن شرب الخمر".-" ذاك جبريل عرض لي في جانب الحرة، فقال: بشر أمتك أنه من مات لا يشرك بالله شيئا دخل الجنة. فقلت: يا جبريل وإن سرق وإن زنى؟ قال: نعم، قال: قلت: وإن سرق وإن زنى؟ قال: نعم. قال: قلت: وإن سرق وإن زنى؟ قال: نعم وإن شرب الخمر".
سیدنا ابوذر رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: میں ایک رات کو نکلا، کیا دیکھتا ہوں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم اکیلے چل رہے تھے، آپ کے ساتھ کوئی آدمی نہیں تھا۔ میں نے سمجھا کہ شائد آپ صلی اللہ علیہ وسلم اس بات کو ناپسند کرتے ہیں کہ آپ کے ساتھ کوئی چلے۔ میں نے چاند کے سائے میں چلنا شروع کر دیا۔ آپ میری طرف متوجہ ہوئے، مجھے دیکھا اور پوچھا: یہ کون ہے؟ میں نے کہا: میں ابوذر ہوں، اللہ مجھے آپ پر قربان کرے۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ابوذر! ادھر آؤ۔ میں آپ کے پاس گیا اور آپ کے ساتھ کچھ دیر چلتا رہا پھر آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے مجھے فرمایا: قیامت والے روز کثیر مال و دولت والے اجر و ثواب میں کم ہوں گے، مگر جس کو اللہ تعالیٰ نے مال دیا اور اس نے (صدقہ کرتے ہوئے) اسے دائیں بائیں اور آگے پیچھے بکھیر دیا اور اس کے ذریعے نیک اعمال کیے۔ پھر میں آپ کے ساتھ چلتا رہا، حتی کہ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: یہاں بیٹھ جاؤ۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے مجھے ایسی ہموار زمین میں بٹھایا، جس کے ارد گرد پتھر پڑے ہوئے تھے۔ پھر فرمایا: میرے واپس آنے تک یہاں بیٹھے رہو۔ پھر آپ صلی اللہ علیہ وسلم حرہ (کالے پتھروں والی زمین) کی طرف چلے گئے اور نظروں سے اوجھل ہو گئے، آپ صلی اللہ علیہ وسلم وہاں کافی دیر تک ٹھہرے رہے۔ پھر میں نے سنا آپ صلی اللہ علیہ وسلم یہ فرماتے ہوئے آ رہے تھے: اگرچہ وہ چوری بھی کرے اور زنا بھی کرے۔ جب آپ صلی اللہ علیہ وسلم میرے پاس پہنچے تو مجھ سے صبر نہ ہو سکا اور میں نے کہا: اے اللہ کے نبی! مجھے اللہ تعالیٰ آپ پر قربان کرے! آپ حرہ زمین کے پاس کس سے گفتگو کر رہے تھے؟ پھر آپ کو کوئی جواب بھی نہیں دے رہا تھا۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: وہ جبریل تھا، حرہ کے ساتھ ہی وہ مجھے ملا اور کہا: (اے محمد!) اپنی امت کو خوشخبری سنا دو کہ جو اس حال میں مرے کہ اس نے اللہ تعالیٰ کے ساتھ کسی کو شریک نہ ٹھہرایا ہو، وہ جنت میں داخل ہو گا۔ میں نے کہا: جبریل! اگرچہ اس نے چوری بھی کی ہو اور زنا بھی کیا ہو؟۔ اس نے کہا: جی ہاں۔ میں نے کہا: اگرچہ اس نے چوری بھی کی ہو اور زنا بھی کیا ہو؟۔ میں نے کہا: جی ہاں۔ میں نے کہا: اگرچہ اس نے چوری بھی کی ہو اور زنا بھی کیا ہو؟۔ اس نے کہا: جی ہاں اور اگرچہ اس نے شراب بھی پی ہو۔
حدیث نمبر: 20
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- (كان رجل ممن كان قبلكم لم يعمل خيرا قط؛ إلا التوحيد، فلما احتضر قال لاهله: انظروا: إذا انا مت ان يحرقوه حتى يدعوه حمما، ثم اطحنوه، ثم اذروه في يوم ريح، [ثم اذروا نصفه في البر، ونصفه في البحر، فوالله؛ لئن قدر الله عليه ليعذبنه عذابا لا يعذبه احدا من العالمين]، فلما مات فعلوا ذلك به، [فامر الله البر فجمع ما فيه، وامر البحر فجمع ما فيه]، فإذا هو [قائم] في قبضة الله، فقال الله عز وجل: يا ابن آدم! ما حملك على ما فعلت؟ قال: اي رب! من مخافتك (وفي طريق آخر: من خشيتك وانت اعلم)، قال: فغفر له بها، ولم يعمل خيرا قط إلا التوحيد).- (كانَ رجلٌ ممَّن كان قبلكم لم يعمل خيراً قطُّ؛ إلا التوحيد، فلما احتُضر قال لأهله: انظروا: إذا أنا متُّ أن يحرِّقوه حتى يدعوه حمماً، ثم اطحنوه، ثم اذروه في يوم ريح، [ثم اذروا نصفه في البر، ونصفه في البحر، فوالله؛ لئن قدر الله عليه ليعذبنه عذاباً لا يعذبه أحداً من العالمين]، فلما مات فعلوا ذلك به، [فأمر الله البر فجمع ما فيه، وأمر البحر فجمع ما فيه]، فإذا هو [قائم] في قبضة الله، فقال الله عز وجل: يا ابن آدم! ما حملك على ما فعلت؟ قال: أي ربِّ! من مخافتك (وفي طريق آخر: من خشيتك وأنت أعلم)، قال: فغفر له بها، ولم يعمل خيراً قطُّ إلا التوحيد).
سیدنا ابوہریرہ رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: تم سے پہلے ایک آدمی تھا، اس نے کوئی نیک عمل نہیں کیا تھا، ماسوائے توحید کے۔ جب اس کی موت کا وقت آیا تو اس نے اپنے کنبے والوں سے کہا: غور سے سنو: اگر میں مر گیا تو مجھے جلا کر کوئلہ بنا دینا، پھر پیس کر نصف خشکی کی ہوا میں اُڑا دینا اور نصف سمندر میں بہا دینا۔ اگر اللہ تعالیٰ مجھ پر قادر آ گیا تو وہ مجھے ایسا شدید عذاب دے گا جو جہانوں میں کسی کو نہ دیا ہو گا۔ جب وہ مر گیا تو انہوں نے ایسے ہی کیا۔ ادھر اللہ تعالیٰ نے خشکی کو حکم دیا، اس نے اس کے ذرات جمع کر دئیے اور سمندر کو حکم دیا، اس نے بھی اس کے اجزا جمع کر دئیے، اچانک (اسے وجود عطا کیا گیا اور) وہ اللہ تعالیٰ کی گرفت میں کھڑا نظر آیا۔ اللہ تعالیٰ نے پوچھا: ابن آدم! تجھے تیرے کیے پر کس چیز نے اکسایا تھا؟ اس نے کہا: اے میرے رب! (میں نے سارا کچھ) تیرے ڈر سے (کروایا)، اور تو جانتا ہے۔ اللہ تعالیٰ نے اسے اس سے ڈرنے کی وجہ سے معاف کر دیا، حالانکہ اس کا کوئی نیک عمل نہیں تھا، ماسوائے توحید کے۔

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