الحمدللہ ! قرآن پاک روٹ ورڈ سرچ اور مترادف الفاظ کی سہولت پیش کر دی گئی ہے۔

 
रसूल अल्लाह ﷺ का चरित्र, आदतें और व्यवहार
2642. “ रसूल अल्लाह ﷺ के जन्म का वर्ष ”
2643. “ मअराज की घटना ”
2644. “ मअराज की घटना पर अबू जहल का मज़ाक़ और उसका दांत तोड़ देने वाला जवाब ”
2645. “ रसूल अल्लाह ﷺ के चमत्कार ”
2646. “ नबवत की मुहर ”
2647. “ वही का आना कितना भारी और सख़्त था ”
2648. “ रसूल अल्लाह ﷺ के सामने इबलीस की हार ”
2649. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने दो बार , हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहु अन्हा से शादी करने का सपना देखा था ”
2650. “ रोम के राजा के नाम रसूल अल्लाह ﷺ का इस्लाम की ओर बुलाने का पत्र , सहाबा की ख़ूबियाँ और हिरक़ल के सवाल और जवाब ”
2651. “ तौरात ओर इंजील में रसूल अल्लाह ﷺ के बारे में बताया गया ”
2652. “ महमूद वाला स्थान ”
2653. “ खाने के बाद की दुआ ”
2654. “ रसूल अल्लाह ﷺ के बैठने का ढंग ”
2655. “ रसूल अल्लाह ﷺ का चेहरा ग़ुस्से से लाल हो जाता ”
2656. “ रसूल अल्लाह ﷺ को जब कुछ अच्छा नहीं लगता तो उनके चहरे से पता चल जाता था ”
2657. “ रसूल अल्लाह ﷺ के चलने का ढंग ”
2658. “ रसूल अल्लाह ﷺ चलते समय इधर उधर नहीं देखा करते थे ”
2659. “ रसूल अल्लाह ﷺ घर में सब काम किया करते थे ”
2660. “ रसूल अल्लाह ﷺ का रंग और बाल ”
2661. “ रसूल अल्लाह ﷺ की अख़लाक़ी और शारीरिक ख़ूबियाँ ”
2662. “ रसूल अल्लाह ﷺ के गधे का नाम उफ़ेर था ”
2663. “ रसूल अल्लाह ﷺ तीन बार बोलने के बाद , चुप हो जाते थे ”
2664. “ रसूल अल्लाह ﷺ का कोई पहरेदार नहीं था ”
2665. “ रसूल अल्लाह ﷺ क़सम उठाते समय क्या कहते थे ”
2666. “ सवारी के लिए रसूल अल्लाह ﷺ की बारी एक आम सहाबी की तरह होती ”
2667. “ रसूल अल्लाह ﷺ की विनम्रता ”
2668. “ रसूल अल्लाह ﷺ सदा अल्लाह तआला के हुक्म के अनुसार बंटा करते थे ”
2669. “ रसूल अल्लाह ﷺ को अल्लाह के रस्ते में बहुत सताया गया ”
2670. “ रसूल अल्लाह ﷺ को और अधिक शादी करने की अनुमति दी गई थी ”
2671. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने कभी किसी को नहीं मारा , उन्होंने व्यक्तिगत बदला नहीं लिया ”
2672. “ मक्का की विजय की घटना ”
2673. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने सदा न्याय ही किया ”
2674. “ हर मुसलमान शरण दे सकता है ”
2675. “ ग़रीब सहाबा का स्थान और दर्जा ”
2676. “ रसूल अल्लाह ﷺ के हाँ हज़रत अबू बक्र रज़ि अल्लाहु अन्ह का स्थान ”
2677. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने एक साल पहले अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी की थी ”

سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
السيرة النبوية وفيها الشمائل
سیرت نبوی اور آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے عادات و اطوار
रसूल अल्लाह ﷺ का चरित्र, आदतें और व्यवहार
واقعہ اسرا و معراج
“ मअराज की घटना ”
حدیث نمبر: 4024
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
- (اتيت بالبراق، وهو دابة ابيض طويل، فوق الحمار ودون البغل، يضع حافره عند منتهى طرفه، قال: فركبته حتى اتيت بيت المقدس، قال: فربطته بالحلقة التي يربط بها الانبياء، قال: ثم دخلت المسجد فصليت فيه ركعتين، ثم خرجت فجاءني جبريل عليه السلام بإناء من خمر، وإناء من لبن؛ فاخترت اللبن، فقال جبريل عليه السلام: اخترت الفطرة ثم عرج بنا إلى السماء، فاستفتح جبريل، فقيل: من انت؟ قال: جبريل. قيل: ومن معك؟ قال: محمد. قيل: وقد بعث إليه؟ قال: قد بعث إليه، ففتح لنا؛ فإذا انا بآدم، فرحب بي ودعا لي بخير. ثم عرج بنا إلى السماء الثانية، فاستفتح جبريل عليه السلام، فقيل: من انت؟ قال: جبريل. قيل: ومن معك؟ قال: محمد. قيل: وقد بعث إليه؟ قال: قد بعث إليه، ففتح لنا؛ فإذا انا بابني الخالة: عيسى ابن مريم ويحيى بن زكريا صلوات الله عليهما، فرحبا ودعوا لي بخير. ثم عرج بي إلى السماء الثالثة، فاستفتح جبريل، فقيل: من انت؟ قال: جبريل. قيل: ومن معك؟ قال: محمد - صلى الله عليه وسلم -. قيل: وقد بعث إليه؟ قال: قد بعث إليه. ففتح لنا؛ فإذا انا بيوسف- صلى الله عليه وسلم -؛ إذا هو قد اعطي شطر الحسن، فرحب ودعا لي بخير. ثم عرج بنا إلى السماء الرابعة، فاستفتح جبريل عليه السلام. قيل: من هذا؟ قال: جبريل. قيل: ومن معك؟ قال: محمد. قال: وقد بعث إليه؟ قال: قد بعث إليه. ففتح لنا، فإذا انا بإدريس، فرحب ودعا لي بخير، قال الله عز وجل: (ورفعناه مكانا عليا). ثم عرج بنا إلى السماء الخامسة، فاستفتح جبريل. قيل: من هذا؟ فقال: جبريل. قيل: ومن معك؟ قال: محمد. قيل: وقد بعث إليه؟ قال: قد بعث إليه. ففتح لنا، فإذا انا بهارون- صلى الله عليه وسلم -، فرحب ودعا لي بخير. ثم عرج بنا إلى السماء السادسة، فاستفتح جبريل عليه السلام، قيل: من هذا؟ قال: جبريل. قيل: ومن معك؟ قال: محمد. قيل: وقد بعث إليه؟ قال: قد بعث إليه، ففتح لنا؛ فإذا انا بموسى - صلى الله عليه وسلم -، فرحب ودعا لي بخير. ثم عرج بنا إلى السماء السابعة، فاستفتح جبريل فقيل: من هذا؟ قال: جبريل. قيل: ومن معك؟ قال: محمد - صلى الله عليه وسلم -. قيل: وقد بعث إليه؟ قال: قد بعث إليه، ففتح لنا؛ فإذا انا بإبراهيم - صلى الله عليه وسلم - مسندا ظهره إلى البيت المعمور، وإذا هو يدخله كل يوم سبعون الف ملك لا يعودون إليه ثم ذهب بي إلى السدرة المنتهى، وإذا ورقها كآذان الفيلة، وإذا ثمرها كالقلال، قال: فلما غشيها من امر الله ما غشي؛ تغيرت، فما احد من خلق الله يستطيع ان ينعتها؛ من حسنها. فاوحى الله إلي ما اوحى، ففرض علي خمسين صلاة في كل يوم وليلة، فنزلت إلى موسى- صلى الله عليه وسلم -، فقال: ما فرض ربك على امتك؟ قلت: خمسين صلاة، قال: ارجع إلى ربك فاساله التخفيف؛ فإن امتك لا يطيقون ذلك؛ فإني قد بلوت بني إسرائيل وخبرتهم. قال: فرجعت إلى ربي، فقلت: يا رب! خفف على امتي، فحط عني خمسا، فرجعت إلى موسى، فقلت: حط عني خمسا. قال: إن امتك لا يطيقون ذلك؛ فارجع إلى ربك فاساله التخفيف. قال: فلم ازل ارجع بين ربي تبارك وتعالى وبين موسى عليه السلام؛ حتى قال: يا محمد! إنهن خمس صلوات كل يوم وليلة، لكل صلاة عشر؛ فذلك خمسون صلاة. ومن هم بحسنة فلم يعملها؛ كتبت له حسنة، فإن عملها كتبت له عشرا، ومن هم بسيئة فلم يعملها؛ لم تكتب شيئا، فإن عملها كتبت سيئة واحدة. قال: فنزلت حتى انتهيت إلى موسى- صلى الله عليه وسلم -فاخبرته، فقال: ارجع إلى ربك فاساله التخفيف. فقال رسول الله- صلى الله عليه وسلم -: فقلت: قد رجعت إلى ربي حتى استحييت منه).- (أُتيتُ بالبُراقِ، وهو دابةٌ أبيضُ طويلٌ، فوقَ الحمارِ ودونَ البغلِ، يضعُ حافرَه عند منتهى طرفهِ، قال: فركبتُه حتى أتيتُ بيت المقدس، قال: فربطتُه بالحلقة التي يربطُ بها الأنبياءًُ، قال: ثم دخلت المسجد فصلّيتُ فيه ركعتين، ثم خرجت فجاءني جبريل عليه السّلامُ بإناءٍ من خمرٍ، وإناءٍ من لبنٍ؛ فاخترتُ اللبن، فقال جبريل عليه السلام: اخترتَ الفِطرةَ ثم عُرجَ بنا إلى السّماءِ، فاستفتح جبريل، فقيل: من أنت؟ قال: جبريلُ. قيل: ومن معك؟ قال: محمدٌ. قيل: وقد بُعثَ إليه؟ قال: قد بُعثَ إليهِ، ففُتحَ لنا؛ فإذا أنا بآدم، فرحب بي ودعا لي بخيرٍ. ثم عُرجَ بنا إلى السماء الثانية، فاستفتح جبريل عليه السلام، فقيل: من أنت؟ قال: جبريلُ. قيل: ومن معك؟ قال: محمّدٌ. قيل: وقد بُعثَ إليه؟ قال: قد بُعثَ إليهِ، ففتحَ لنا؛ فإذا أنا بابني الخالةِ: عيسى ابن مريم ويحيى بن زكريا صلوات الله عليهما، فرحّبا ودعَوا لي بخير. ثمَّ عُرجَ بي إلى السّماءِ الثالثة، فاستفتحَ جبريلُ، فقيل: من أنت؟ قال: جبريلُ. قيل: ومن معك؟ قال: محمد - صلى الله عليه وسلم -. قيل: وقد بُعثَ إليه؟ قال: قد بُعثَ إليه. ففتح لنا؛ فإذا أنا بيوسف- صلى الله عليه وسلم -؛ إذا هو قد أُعطيَ شطرَ الحُسنِ، فرحَّب ودعا لي بخير. ثم عُرجَ بنا إلى السماء الرّابعةِ، فاستفتح جبريل عليه السلام. قيل: من هذا؟ قال: جبريل. قيل: ومن معك؟ قال: محمد. قال: وقد بُعثَ إليه؟ قال: قد بعث إليه. ففُتح لنا، فإذا أنا بإدريس، فرحّب ودعا لي بخير، قال الله عز وجل: (ورفعناه مكاناً علياً). ثم عُرج بنا إلى السماءِ الخامسة، فاستفتح جبريل. قيل: من هذا؟ فقال: جبريل. قيل: ومن معك؟ قال: محمد. قيل: وقد بُعث إليه؟ قال: قد بعث إليه. ففتح لنا، فإذا أنا بهارون- صلى الله عليه وسلم -، فرحب ودعا لي بخير. ثم عرج بنا إلى السماء السادسة، فاستفتح جبريل عليه السلام، قيل: من هذا؟ قال: جبريل. قيل: ومن معك؟ قال: محمد. قيل: وقد بعث إليه؟ قال: قد بعث إليه، ففتح لنا؛ فإذا أنا بموسى - صلى الله عليه وسلم -، فرحب ودعا لي بخير. ثم عرج بنا إلى السماء السابعة، فاستفتح جبريل فقيل: من هذا؟ قال: جبريل. قيل: ومن معك؟ قال: محمد - صلى الله عليه وسلم -. قيل: وقد بعث إليه؟ قال: قد بعث إليه، ففتح لنا؛ فإذا أنا بإبراهيم - صلى الله عليه وسلم - مسنداً ظهره إلى البيت المعمور، وإذا هو يدخلُه كلَّ يوم سبعون ألف ملك لا يعودون إليه ثم ذهب بي إلى السِّدرةِ المنتهى، وإذا ورقُها كآذان الفِيَلةِ، وإذا ثَمَرُها كالقِلالِ، قال: فلما غَشِيَها من أمرِ اللهِ ما غَشِي؛ تغيرت، فما أحدٌ من خلقِ اللهِ يستطيعُ أن ينعتها؛ من حُسنها. فأوحى الله إليّ ما أوحى، ففرض عليَّ خمسين صلاة في كل يوم وليلة، فنزلتُ إلى موسى- صلى الله عليه وسلم -، فقال: ما فرضَ ربك على أمتك؟ قلت: خمسين صلاة، قال: ارجع إلى ربِّك فاسأله التخفيف؛ فإن أمتك لا يُطيقون ذلك؛ فإني قد بلوتُ بني إسرائيل وخَبَرتهم. قال: فرجعتُ إلى ربِّي، فقلت: يا رب! خفّف على أمتي، فحَطَّ عني خمساً، فرجعتُ إلى موسى، فقلتُ: حطّ عني خمساً. قال: إنَّ أمتك لا يطيقون ذلك؛ فارجع إلى ربك فاسأله التخفيف. قال: فلم أزل أرجع بين ربي تبارك وتعالى وبين موسى عليه السلام؛ حتى قال: يا محمد! إنَّهن خمسُ صلوات كل يوم وليلة، لكلِّ صلاة عشر؛ فذلك خمسون صلاة. ومن همّ بحسنة فلم يعملها؛ كُتبت له حسنة، فإنْ عملها كُتبت له عشراً، ومن همَّ بسيئة فلم يعملها؛ لم تكتب شيئاً، فإن عملها كُتبت سيئة واحدة. قال: فنزلتُ حتى انتهيت إلى موسى- صلى الله عليه وسلم -فأخبرتُه، فقال: ارجع إلى ربِّك فاسأله التخفيف. فقال رسول الله- صلى الله عليه وسلم -: فقلت: قد رجعت إلى ربي حتى استحييت منه).
سیدنا انس بن مالک رضی اللہ عنہ سے روایت ہے، وہ کہتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ‏‏‏‏میرے پاس براق لایا گیا، وہ گدھے سے بڑا اور خچر سے چھوٹا سفید رنگ کا لمبا جانور تھا، وہ اپنا قدم وہاں رکھتا تھا جہاں تک اس کی نگاہ جاتی تھی۔ میں ا‏‏‏‏س پر سوار ہوا، (‏‏‏‏اور چل پڑا) حتیٰ کہ بیت المقدس میں پہنچ گیا، میں نے ا‏‏‏‏س کو ا‏‏‏‏س کڑے کے ساتھ باندھ دیا جس کے ساتھ دوسرے انبیاء بھی باندھتے تھے، پھر میں مسجد میں داخل ہوا اور دو رکعت نماز پڑھی۔ جب میں وہاں سے نکلا تو جبریل علیہ السلام شراب کا اور دودھ کا ایک ایک برتن لائے، میں نے دودھ کا انتخاب کیا۔ جبریل نے کہا: آپ نے فطرت کو پسند کیا ہے۔ پھر ہمیں آسمان کی طرف اٹھایا گیا۔ (‏‏‏‏جب ہم وہاں پہنچے تو) جبریل علیہ السلام نے دروازہ کھولنے کا مطالبہ کیا، کہا گیا: کون ہے؟ اس نے کہا: جبریل ہوں۔ پھر کہا گیا: تیرے ساتھ کون ہے؟ اس نے کہا: محمد صلی اللہ علیہ وسلم ہیں۔ کہا گیا: کیا انہیں بلایا گیا ہے؟ ا‏‏‏‏س نے کہا: (‏‏‏‏جی ہاں) انہیں بلایا گیا ہے۔ پھر ہمارے لیے دروازہ کھول دیا گیا۔ میں نے آدم علیہ السلام کو دیکھا، انہوں نے مجھے مرحبا کہا اور میرے لیے دعا کی، پھر ہمیں دوسرے آسمان کی طرف اٹھایا گیا۔ جبریل نے دروازہ کھولنے کا مطالبہ کیا، پوچھا گیا: کون ہے؟ اس نے کہا جبریل ہوں۔ فرشتوں نے پوچھا: تیرے ساتھ کون ہے؟ اس نے کہا: محمد صلی اللہ علیہ وسلم ہیں۔ فرشتوں نے کہا: کیا انہیں بلایا گیا ہے؟ جبرائیل نے کہا: ‏‏‏‏ (جی ہاں!) ان کو بلایا گیا ہے۔ پھر ہمارے لیے دروازہ کھول دیا گیا۔ میں نے خالہ زاد بھائیوں عیسیٰ بن مریم اور یحییٰ بن زکریا کو دیکھا، ان دونوں نے مجھے مرحبا کہا اور میرے لیے خیر و بھلائی کی دعا کی۔ پھر ہمیں تیسرے آسمان کی طرف اٹھایا گیا، جبریل علیہ السلام نے دروازہ کھولنے کا مطالبہ کیا۔ فرشتوں نے پوچھا: کون؟ اس نے کہا: جبریل۔ فرشتوں نے پوچھا: تیرے ساتھ کون ہے؟ اس نے کہا: محمد صلی اللہ علیہ وسلم ۔ کہا گیا: کیا ان کو بلایا گیا ہے؟ جبریل نے کہا: جی ہاں! انہیں بلایا گیا ہے۔ سو ہمارے لیے دروازہ کھول دیا گیا۔ وہاں میں نے یوسف علیہ السلام کو دیکھا، (‏‏‏‏ان کی خوبصورتی سے معلوم ہوتا تھا کہ) نصف حسن ان کو عطا کیا گیا ہے۔ ا‏‏‏‏نہوں نے مجھے خوش آمدید کہا اور میرے لیے دعائے خیر کی۔ پھر ہمیں چوتھے آسمان کی طرف اٹھایا گیا، جبریل نے دروازہ کھولنے کا مطالبہ کیا۔ پوچھا گیا: کون؟ اس نے کہا: جبریل ہوں۔ پھر پوچھا گیا: تیرے ساتھ کون ہے؟ اس نے کہا: محمد صلی اللہ علیہ وسلم ہیں۔ کہا گیا: کیا انہیں بلایا گیا ہے؟ ا‏‏‏‏س نے کہا: جی ہاں! ان کو بلایا گیا ہے، پھر ہمارے لیے دروازہ کھول دیا گیا۔ وہاں ادریس علیہ السلام کو دیکھا، انہوں نے مجھے مرحبا کہا اور میرے لیے خیر و بھلائی کی دعا کی۔ اللہ تعالیٰ نے فرمایا: اور ہم نے ادریس کا مقام و مرتبہ بلند کیا۔ پھر ہمیں پانچویں آسمان کی طرف اٹھایا گیا، اور دروازہ کھولنے کا مطالبہ کیا۔ کہا گیا: کون؟ اس نے کہا: میں جبریل ہوں۔ کہا گیا تیرے ساتھ کون ہے؟ اس نے کہا محمد صلی اللہ علیہ وسلم ہیں۔ پوچھا گیا: کیا انہیں بلایا گیا ہے؟ جبریل نے جواب دیا: جی ہاں! انہیں بلایا گیا ہے، پھر ہمارے لیے دروازہ کھول دیا گیا۔ وہاں ہارون علیہ السلام کو دیکھا، انہوں نے مجھے خوش آمدید کہا اور میرے لیے خیر کی دعا کی۔ پھر ہمیں چھٹے آسمان کی طرف ا‏‏‏‏ٹھایا گیا اور چھٹے آسمان پر دروازہ کھولنے کا مطالبہ کیا۔ کہا گیا: کون؟ اس نے کہا: جبریل ہوں۔ کہا گیا: تیرے ساتھ کون ہے؟ اس نے کہا: محمد صلی اللہ علیہ وسلم ہیں۔ پھر پوچھا گیا: کیا ان کو بلایا گیا ہے؟ اس نے کہا: ہاں! پس ہمارے لیے دروازہ کھول دیا گیا۔ میں نے وہاں موسیٰ علیہ السلام کو دیکھا۔ ا‏‏‏‏نھوں نے مجھے مرحبا کہا اور میرے لیے دعائے خیر کی۔ پھر ہمیں ساتویں آسمان کی طرف اٹھایا گیا اور دروازہ کھولنے کے لیے کہا گیا۔ پوچھا گیا: کون؟ اس نے کہا: جبریل ہوں۔ کہا گیا: تیرے ساتھ کون ہے؟ اس نے کہا محمد صلی اللہ علیہ وسلم ہیں۔ کہا گیا: کیا انہیں بلایا گیا ہے؟ جبرائیل ‏‏‏‏علیہ السلام نے کہا: ہاں! ان کو بلایا گیا ہے۔ سو دروازہ کھول دیا گیا۔ میں نے ابراہیم علیہ السلام کو دیکھا۔ وہ بیت معمور کے ساتھ ٹیک لگائے ہوئے تھے۔ (‏‏‏‏بیت معمور کی کیفیت یہ ہے کہ) ہر روز اس میں ستر ہزار فرشتے داخل ہوتے ہیں اور پھر دوبارہ ان کی باری نہیں آتی۔ پھر جبرائیل مجھے سدرۃ المنتھیٰ کے پاس لے گئے، اس کے پتے ہاتھی کے کانوں کی طرح تھے اور ا‏‏‏‏س کا پھل مٹکوں کی مانند۔ جب اللہ تعالیٰ کے حکم سے کسی چیز سے اسے ڈھانکا گیا تو (‏‏‏‏اس کی کیفیت یوں) بدل گئی کہ خلق خدا میں کوئی بھی اس کا حسن بیان نہیں کر سکتا۔ پھر اللہ تعالیٰ نے میری طرف وحی کی اور ہر دن رات میں پچاس نمازیں فرض کیں۔ میں ا‏‏‏‏تر کر موسیٰ علیہ السلام کے پاس ایا، انہوں نے پوچھا: تیرے رب نے تیری امت پر کیا کچھ فرض کیا ہے؟ میں نے کہا: پچاس نمازیں۔ سیدنا موسیٰ علیہ السلام نے کہا: اپنے رب کے پاس جاؤ اور تخفیف کا سوال کرو، تیری امت (‏‏‏‏کے افراد) میں اتنی استطاعت نہیں ہے، میں نے بنی اسرائیل کو آزما لیا ہے اور ا‏‏‏‏ن کا تجربہ کر چکا ہوں، آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے کہا: پس میں اپنے پروردگار کی طرف واپس چلا گیا اور کہا: اے میرے رب! میری امت کے لیے (‏‏‏‏نمازوں والے حکم میں) تخفیف کیجئیے۔ پس اللہ تعالیٰ نے پانچ نمازیں کم کر دیں۔ پھر موسیٰ علیہ السلام کی طرف لوٹا اور ان کو بتلایا کہ مجھ سے پانچ نمازیں کم کر دیں گئی ہیں، انہوں نے کہا تیری امت کو اتنی طاقت بھی نہیں ہو گی، اس لیے اپنے رب کے پاس جاؤ اور اس سے (‏‏‏‏مزید) کمی کا سوال کرو۔ آپ نے فرمایا: میں اسی طرح اپنے پروردگر اور موسیٰ کے درمیان آتا جاتا رہا، حتیٰ کہ اللہ تعالیٰ نے فرمایا: اے محمد! ہر دن رات میں پانچ نمازیں فرض ہیں، ہر نماز (‏‏‏‏کے عوض) دس نمازوں کا ثواب ہے، (‏‏‏‏اس طریقے سے یہ) پچاس نمازیں ہو گئیں اور (‏‏‏‏مزید سنو کہ) جس نے نیکی کا قصد کیا اور (‏‏‏‏عملاً) نہیں کی تو اس کے لیے ایک نیکی لکھ جائے گی اور اگر ا‏‏‏‏س نے وہ نیکی عملاً کر لی تو ا‏‏‏‏س کے لیے دس گنا ثواب لکھ دیا جائے گا اور جس نے برائی کا ارادہ کیا اور عملاً ا‏‏‏‏س کا ارتکاب نہیں کیا، تو ا‏‏‏‏س (‏‏‏‏کے حق میں کوئی گناہ) نہیں لکھا جائے گا، اور اگر ا‏‏‏‏س نے عملاً برائی کا ارتکاب کر لیا تو (‏‏‏‏پھر بھی) اس کے لیے ایک برائی لکھ دی جائے۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: میں نیچے اترا اور موسیٰ علیہ السلام تک پہنچا اور ان کو (‏‏‏‏ساری صورتحال کی) خبر دی۔ انہوں نے پھر کہا: اپنے پروردگار کی طرف لوٹ جاؤ اور اس سے مزید تخفیف کا سوال کرو۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: میں نے کہا: میں اپنے پروردگار کی طرف (‏‏‏‏ ‏‏‏‏باربار) لوٹ چکا ہوں۔ اب تو میں اپنے رب سے شرماتا ہوں۔
حدیث نمبر: 4025
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
ـ لما انتهينا إلى بيت المقدس؛ قال جبريل بإصبعه فخرج به الحجر، وشد به البراق).ـ لما انتهيْنا إلى بيْتِ المقْدِس؛ قال جبريلُ بإصبعهِ فخرجَ به الحَجَر، وشدّ به البُراق).
ابن برید اپنے باپ سے روایت کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: جب ہم بیت المقدس پہنچے تو جبریل نے اپنی انگلی سے پتھر میں سوراخ کیا اور براق کو اس کے ساتھ باندھ دیا۔

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