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फ़ज़िलतें, विशेषताएं, कमियां और बुराइयाँ
2134. “ रसूल अल्लाह ﷺ की फ़ज़ीलतें और तारीफ़ और आप ﷺ जन्नत के दरवाज़े पर सबसे पहले दस्तक देंगे ”
2135. “ रसूल अल्लाह ﷺ को पूरे पूरे और मुहर बंद शब्द दिए गए ”
2136. “ रसूल अल्लाह ﷺ की बद दुआ भी रहमत और पवित्रता का कारण बनजाती थी ”
2137. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने अपने ऊपर लगे आरोपों का कैसे जवाब दिया ? ”
2138. “ रसूल अल्लाह ﷺ की रहमदिली ”
2139. “ रसूल अल्लाह ﷺ को नबी बनाने का फ़ैसला कब किया गया ”
2140. “ रसूल अल्लाह ﷺ का मज़ाक़ भी सच्चाई से भरा होता था ”
2141. “ रसूल अल्लाह ﷺ रहमत थे ”
2142. “ रसूल अल्लाह ﷺ दुश्मनों के लिए भी रहमत थे ”
2143. “ ऊंट अपने मालिक के बारे में रसूल अल्लाह ﷺ से शिकायत करता है ”
2144. “ दुनिया और आसमान की हर चीज़ जानती है कि रसूल अल्लाह ﷺ अल्लाह के रसूल हैं सिवाए ... ”
2145. “ रसूल अल्लाह ﷺ की अंगूठी की छवि ”
2146. “ रसूल अल्लाह ﷺ एक प्रचारक और बांटने वाले थे ”
2147. “ रसूल अल्लाह ﷺ बनि किनानह से थे ”
2148. “ रसूल अल्लाह ﷺ की उम्मत सबसे बड़ी है ”
2149. “ रसूल अल्लाह ﷺ की उम्मत का हिसाब किताब सबसे पहले होगा ”
2150. “ रसूल अल्लाह ﷺ सबसे अधिक तक़वा वाले थे ”
2151. “ रसूल अल्लाह ﷺ आदम की औलाद के सरदार हैं ”
2152. “ पेड़ और पत्थर भी रसूल अल्लाह ﷺ को सलाम करते थे ”
2153. “ रसूल अल्लाह ﷺ की शान में झूठ से काम नहीं लेना चाहिए ”
2154. “ रसूल अल्लाह ﷺ का “ आतिकह ” के बारे में बताना ”
2155. “ फ़रिश्ते रसूल अल्लाह ﷺ को उम्मत का दुरुद पहुँचाते हैं ”
2156. “ फ़रिश्ते रसूल अल्लाह ﷺ के ख़िलाफ़ कुरैश सरदारों की योजना ، लेकिन असफल रहे ”
2157. “ यदि अबू जहल रसूल अल्लाह ﷺ की गर्दन रौंदता तो ”
2158. “ रसूल अल्लाह ﷺ की उम्मत सबसे बड़ी होगी ”
2159. “ रसूल अल्लाह ﷺ एक प्रचार करने वाले थे ، तकलीफ़ देने वाले नहीं ”
2160. “ प्रचार के लिए रसूल अल्लाह ﷺ का उत्साह ”
2161. “ अच्छे कामों के लिए रसूल अल्लाह ﷺ का उत्साह, मज़लूमों की सहायता करने की उनकी इच्छा ”
2162. “ रसूल अल्लाह ﷺ अपने मक़सद पर डटे रहे ”
2164. “ रसूल अल्लाह ﷺ सच ही बोला करते थे ”
2165. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने कसरा को इस्लाम की ओर बुलाया ”
2166. “ रसूल अल्लाह ﷺ का रूप-रंग ”
2167. “ रसूल अल्लाह ﷺ की नींद का बयान ”
2168. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने भूख से अपने पेट पर पत्थर बांधा ”
2169. “ हज़रत इब्राहिम ، हज़रत मूसा ، हज़रत ईसा अलैहिमुस्सलाम और रसूल अल्लाह ﷺ की ख़ूबियाँ ”
2170. “ रसूल अल्लाह ﷺ की ख़ास ख़ूबियाँ ”
2171. “ क़ुरआन मजीद के लिए रसूल अल्लाह ﷺ का भेद-भाव ”
2172. “ रसूल अल्लाह ﷺ के सामने इबलीस की हार ”
2173. “ रसूल अल्लाह ﷺ को सपने में देखना ”
2174. “ उम्महातुल मोमिनीन यानि रसूल अल्लाह ﷺ की पत्नियों की फ़ज़ीलत ”
2175. “ रसूल अल्लाह ﷺ के परिवार के पक्ष में एक अच्छे आदमी की फ़ज़ीलत ”
2176. “ जन्नत की चार अफ़ज़ल औरतें ”
2177. “ हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहु अन्हा के लिए क्षमा की दुआ ”
2178. “ हज़रत अबू बक्र रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2179. “ हज़रत अबू बक्र रज़ि अल्लाहु अन्ह को सिद्दीक़ क्यूँ कहा जाता है ”
2180. “ हज़रत अबू बक्र रज़ि अल्लाहु अन्ह अफ़ज़ल ख़लीफ़ा थे ”
2181. “ हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2182. “ रसूल अल्लाह ﷺ के वैवाहिक और पारिवारिक रिश्तों का बयान ”
2183. “ हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2184. “ हज़रत अली रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2185. “ हज़रत फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा की फ़ज़ीलत ”
2186. “ हज़रत ज़ैनब रज़ि अल्लाहु अन्हा की फ़ज़ीलत ”
2187. “ हज़रत हसन और हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हुमा की फ़ज़ीलत ”
2188. “ हज़रत हसन और हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हुमा और उनके माता पिता का सम्मान ”
2189. “ हज़रत हुसैन की शहादत की भविष्यवाणी ، हज़रत हसन रज़ी अल्लाह अन्हुमा के क़त्ल का बयान ”
2190. “ अहल-ए-बेत यानि रसूल अल्लाह ﷺ के परिवार की फ़ज़ीलत ”
2191. “ अल्लाह की किताब और अहल-ए-बेत यानि रसूल अल्लाह ﷺ के परिवार की एहमियत ”
2192. “ हज़रत आसियह और हज़रत मरयम अलैहिमुस्सलाम की फ़ज़ीलत ”
2193. “ हज़रत जआफ़र अबू तालिब रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2194. “ सहाबा की फ़ज़ीलत ”
2195. “ साहब को बुरा कहने वाले पर लाअनत ”
2196. “ रसूल अल्लाह ﷺ के साथ रहने की फ़ज़ीलत ”
2197. “ सहाबा रज़ि अल्लाह अन्हुम की विशेषताएं ”
2198. “ कुछ क़बीलों की विशेषताएं ”
2199. “ रसूल अल्लाह ﷺ के बाद सहाबा का समय सबसे अच्छा था ”
2200. “ महाजिरों की फ़ज़ीलत ”
2201. “ रसूल अल्लाह ﷺ की अन्सारी सहाबा से मुहब्बत ”
2202. “ अन्सारियों की फ़ज़ीलत ”
2203. “ अन्सारियों का घर यानि माता पिता का घर ”
2204. “ एक अन्सारी की मेज़बानी ”
2205. “ सहाबा ، ताबईन और उनके बाद वालों की फ़ज़ीलत ”
2206. “ बिन देखे रसूल अल्लाह ﷺ पर ईमान लाने वालों की फ़ज़ीलत ”
2207. “ हिन्द की जंग के साथियों और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का साथ देने वालों की फ़ज़ीलत ”
2208. “ हज़रत उसामा रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2209. “ हज़रत बिलाल रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2210. “ रसूल अल्लाह ﷺ के सेवक के पक्ष में रसूल अल्लाह ﷺ की दुआएं और उनका फल ”
2211. “ हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2212. “ हज़रत अब्दुल्लाह रज़ि अल्लाहु अन्ह को अनुमति देने का एक विशेष ढंग ”
2213. “ अब्दुल्ला बिन मसऊद सुन्नत के पाबंद थे और अल्लाह को याद करने वाली सभा को बुरा कहने का कारण ”
2214. “ हज़रत हिशाम और हज़रत अमरो रज़ि अल्लाहु अन्हुमा की फ़ज़ीलत ”
2215. “ हज़रत अबू सुफ़ियान रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2216. “ बदर वालों की फ़ज़ीलत ”
2217. “ कौन कौन और क्या क्या अफ़ज़ल है ”
2218. “ क़िब्तियों के साथ अच्छा व्यवहार करने की नसिहत ”
2219. “ उम्मत की परीक्षा और रसूल अल्लाह ﷺ की सिफ़ारिश ”
2220. “ हज़रत उसामा की फ़ज़ीलत ”
2221. “ हज़रत सव्वाद से रसूल अल्लाह ﷺ की मुहब्बत का बयान ”
2222. “ क़ुरैशियों की फ़ज़ीलत ”
2223. “ एक क़ुरैशी दो ग़ैर क़ुरैशियों के बराबर क्यूँ ”
2224. “ क़ुरैशी औरतों की विशेषता और फ़ज़ीलत ”
2225. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने क़ुरैश साथियों को तरजीह दी ”
2226. “ रसूल अल्लाह ﷺ के बाद सबसे पहले क़बीला क़ुरेशा ख़तम होगा ”
2227. “ असलम और ग़िफ़ार क़बीले के लिए दुआ ”
2228. “ कुछ और अरबी क़बीलों की फ़ज़ीलत ”
2229. “ नख़अ क़बीले की फ़ज़ीलत ”
2230. “ हज़रमोत क़बीले की फ़ज़ीलत ”
2231. “ अब्दुलक़ैस क़बीले की फ़ज़ीलत ”
2232. “ अज़दी लोगों की फ़ज़ीलत ”
2233. “ दहिया कल्बी और जिब्रईल अलैहिस्सलाम के रूप बहुत मिलते जुलते हैं ”
2234. “ बाद में आने वाले उम्मतियों से रसूल अल्लाह ﷺ की मुहब्बत ”
2235. “ हज़रत अरक़म रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2236. “ हज़रत अबु दहदाह रज़ि अल्लाहु अन्ह का लाभदायक व्यापार ”
2237. “ बिना हिसाब किताब के जन्नत में जाने वाले उम्मती ”
2238. “ जुमा के दिन की फ़ज़ीलत ”
2239. “ हज़रत मुआवियह रज़ि अल्लाहु अन्ह के पक्ष में रसूल अल्लाह ﷺ की दुआ ”
2240. “ रसूल अल्लाह ﷺ की हज़रत मुआवियह रज़ि अल्लाहु अन्ह के पक्ष में डांट डपट या उनकी फ़ज़ीलत ”
2241. “ हज़रत हुज़ैफ़ा और उनकी मां रज़ि अल्लाहु अन्हुम के पक्ष में दुआ ”
2242. “ मुसलामनों के पक्ष में क्षमा की दुआ ”
2243. “ हज़रत सअद बिन अबि वक़ास रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2244. “ हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्ह के पक्ष में रसूल अल्लाह ﷺ की दुआ ”
2245. “ हज़रत जअफ़र और हज़रत ज़ैद रज़ि अल्लाहु अन्हुमा की फ़ज़ीलत ”
2246. “ हज़रत ख़ालिद बिन वलीद रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2247. “ मुस्लिम उम्मत गुमराह करने पर सहमत नहीं हो सकती ”
2248. “ पंद्रह शअबान की रात की फ़ज़ीलत ”
2249. “ अल्लाह के दोस्तों की विशेषताएं ”
2250. “ कवि के रूप में हज़रत हस्सान रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2251. “ हज़रत हन्ज़लह रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2252. “ हज़रत मआज़ बिन जबल रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2253. “ बुराई का इन्कार करने वाले मुसलमानों की फ़ज़ीलत ”
2254. “ मोमिन की मिसाल खजूर जैसी क्यूँ है ? ”
2255. “ क़बीला मुज़िर की फ़ज़ीलत ”
2256. “ हज़रत सफ़ीना रज़ि अल्लाहु अन्ह की पहचान ”
2257. “ हज़रत अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2258. “ हज़रत जरीर रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2259. “ हज़रत तल्हा रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2260. “ चोट लगे तो बिस्मिल्लाह कहना चाहिए ”
2261. “ चार बहने सहाबियात हैं ”
2262. “ हज़रत अबु उमामह रज़ि अल्लाहु अन्ह का चमत्कार ”
2263. “ रसूल अल्लाह ﷺ के सामने अतीत को याद करना ”
2264. “ क़ुरआन के चार शिक्षक ”
2265. “ हज़रत सालिम रज़ि अल्लाहु अन्ह एक अच्छे क़ारी ”
2266. “ दहयह कल्बी और जिब्रईल अलैहिस्सलाम की एकरूपता और उरवह बिन मसऊद सक़फ़ी और ईसा अलैहिस्सलाम की एकरूपता है ”
2267. “ हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2268. “ हज़रत हारिसा बिन नअमान रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2269. वरक़ा की फ़ज़ीलत ”
2270. “ हातिम इसाई ”
2271. “ हिजरत के बाद किस चीज़ पर बैअत होगी ”
2272. “ हज़रत अमरो बिन हरिस रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2273. “ हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ि अल्लाहु अन्ह के परिवार की फ़ज़ीलत ”
2274. “ हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ि अल्लाहु अन्ह की इमान लाने की कहानी ، सच्चाई की तलाश में हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ि अल्लाहु अन्ह की यात्रा ”
2275. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने जंग के मामलों में अपने सहाबा से सलाह ली ”
2276. “ हज़रत ज़ुबैर रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2277. “ हज़रत हम्ज़ा रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2278. “ हर ज़माने में आगे बढ़जाने वाले पाए जाएंगे ”
2279. “ हज़रत अम्मार रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2281. “ हज़रत हातिब रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2282. “ हज़रत अबू तल्हा रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2283. “ अबू तालिब के पक्ष में रसूल अल्लाह ﷺ की सिफ़ारिश ”
2284. “ हज़रत अबू मूसा रज़ि अल्लाहु अन्ह की क़ौम की फ़ज़ीलत ”
2285. “ बदर और हुदैबियाह में भाग लेने वालों की फ़ज़ीलत ”
2286. “ मुसलमान की फ़ज़ीलत ”
2287. “ मोमिन की पवित्रता कअबे से अधिक है ”
2288. “ मतलब ”
2289. “ सूरत फ़ातेहा की अंतिम आयत की तफ़्सीर ”
2290. “ हज़रत अबू उबेदा रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2291. “ एक समूह सच्चाई पर सदा खड़ा रहेगा ”
2292. “ सहाबा की बरकतें ”
2293. “ मुस्लिम उम्मत की आयु ، रसूल अल्लाह ﷺ के समय के लोगों का एक सदी में ख़त्म होना ”
2294. “ हज़रत अबू हुरैरा की खजूरों में बरकत के लिए रसूल अल्लाह ﷺ की दुआ ”
2295. “ हज़रत अबू हिन्द रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2296. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने हज़रत सफ़ियह को कैसे राज़ी किया ? ”
2297. “ एक सदी के लिए अब्दुल्ला बिन बसर रज़ि अल्लाहु अन्ह का जीवन ”
2298. “ हज़रत अबू ज़र हज़रत उनेस रज़ि अल्लाहु अन्हुमा और उनकी क़ौम ग़िफ़ार के ईमान लाने की घटना ”
2299. “ हज़रत ज़ैद बिन अमरो रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2300. “ हज़रत हारिसा बिन सराक़ा रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2301. “ मदीना मुनव्वरा की फ़ज़ीलत ”
2302. “ मदीना मुनव्वरा के लिए बरकत की दुआ ”
2303. “ मदीने में बसने वालों के अधिकार ”
2304. “ मक्का मुकर्रमा और मदिना मुनव्वरा की पवित्रता का बयान ”
2305. “ हिजाज़ वालों की फ़ज़ीलत और पूरब के लोगों की निंदा ”
2306. “ शाम यानि सीरिया और वहां बसने वालों की फ़ज़ीलत ”
2307. “ हज़रत सअद बिन मआज़ रज़ि अल्लाहु अन्ह के चमत्कार और शहादत ”
2308. “ यमन में बसने वालों की फ़ज़ीलत ”
2309. “ ओवेस रहमहुल्लाह की फ़ज़ीलत ”
2310. “ अदन अबयन के बारह हज़ार लोगों के द्वारा रसूल अल्लाह ﷺ की सहायता ”
2311. “ ओमान में बसने वालों की फ़ज़ीलत ”
2312. “ अजमी लोगों की फ़ज़ीलत ”
2313. “ बनी अबू अलआस की निंदा ”
2314. “ हकम बिन अबू अलआस पर लअनत ”
2315. “ सबसे बड़े दो बदनसीब ”

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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
المناقب والمثالب
فضائل و مناقب اور معائب و نقائص
फ़ज़िलतें, विशेषताएं, कमियां और बुराइयाँ
مختصرواقعہ حدیبیہ، آپ صلی اللہ علیہ وسلم کی سواریاں چوری کرنے والے اور سیدنا سلمہ بن اکوع رضی اللہ عنہ کی بہادری اور ان کی تیز رفتاری، سیدنا ابوقتادہ رضی اللہ عنہ بہترین گھوڑ سوار، مختصر واقعہ خیبر
“ हुदैबियाह और ख़ैबर की घटनाएं ”
حدیث نمبر: 3463
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
- (إنك كالذي قال الاول: اللهم! ابغني حبيبا هو احب إلي من نفسي).- (إنك كالذي قال الأول: اللهم! أبغني حبيباً هو أحبّ إلي من نفسي).
ایاس بن سلمہ اپنے باپ سیدنا سلمہ رضی اللہ عنہ سے روایت کرتے ہیں کہ (‏‏‏‏1) ہم چودہ سو افراد رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے ساتھ حدیبیہ مقام پر آئے، وہاں ایک کنواں تھا، جس سے (‏‏‏‏پانی کی قلت کی وجہ سے) پچاس بکریاں سیراب نہیں ہو سکتی تھیں، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم اس کنویں کے کنارے بیٹھ گئے، دعا کی یا اس میں تھوکا، پانی زور سے نکل کر بہنے لگا، سو ہم نے پیا اور پلایا۔ (۲) پھر رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے ہمیں بیعت کے لیے درخت کے تنے کے پاس بلایا، میں نے سب سے پہلے بیعت کی، پھر آپ صلی اللہ علیہ وسلم مسلسل بیعت لیتے رہے، جب نصف لوگ بیعت کر کے فارغ ہو گئے تو آپ نے مجھے فرمایا: سلمہ! بیعت کرو۔ میں نے کہا: اے اللہ کے رسول! میں تو سب سے پہلے بیعت کر چکا ہوں۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ایک دفعہ پھر کر لو۔ (‏‏‏‏۳) جب رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے مجھے بغیر اسلحہ کے دیکھا تو مجھے ایک ڈھال دی، پھر بیعت لینا شروع کر دیا، حتیٰ کہ لوگ آخر تک پہنچ گئے۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے مجھے فرمایا: سلمہ! کیا تم بیعت نہیں کرتے؟ میں نے کہا: اے اللہ کے رسول! میں سب سے پہلے اور پھر درمیان میں (‏‏‏‏دو دفعہ) بیعت کر چکا ہوں۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ایک دفعہ پھر کر لو۔ سو میں نے تیسری دفعہ بیعت کی۔ (‏‏‏‏۴) پھر آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے مجھے فرمایا: سلمہ! وہ ڈھال کہاں ہے، جو میں نے تجھے دی تھی؟ میں نے کہا: اے اللہ کے رسول! مجھے میرے چچا ملے، ان کے پاس کوئی اسلحہ نہیں تھا، اس لیے میں نے ان کو دے دی۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم ہنس پڑے اور فرمایا: تم تو اس آدمی کی طرح ہو جس نے کہا: اے اللہ! مجھے ایسا محبوب عطا کر دے جو مجھے اپنے آپ سے بھی زیادہ محبو ب ہو۔ (‏‏‏‏۵) پھر مشرکوں نے ہم سے صلح کے موضوع پر خط و کتابت شروع کی، یہاں تک کہ ہم ایک دوسرے کے پاس جانے لگ گئے اور صلح ہو گئی۔ میں سیدنا طلحہ بن عبیداللہ رضی اللہ عنہ کا تابع تھا، ان کے گھوڑے کو پانی پلاتا، کھریرے کے ذریعے اس کی گرد صاف کرتا اور ان کی خدمت کرتا تھا۔ انہیں کا کھانا کھا لیتا تھا اور جب اللہ اور اس کے رسول کی طرف ہجرت کی تو اپنے اہل و عیال اور مال و منال کو پیچھے چھو ڑ آیا تھا۔ جب ہماری اور اہل مکہ کی صلح ہو گئی اور ہم ایک دوسرے کے پاس جانے لگے گئے، تو میں ایک درخت کے نیچے آیا، اس کے کانٹے صاف کئے اور وہاں لیٹ گیا۔ میرے پاس مکہ کے چار مشرک آئے، انہوں نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے حق میں نازیبا الفاظ کہنا شروع کر دئیے، میں ان سے بڑا متنفر ہوا، اس لیے میں ایک دوسرے درخت کی طرف چلا گیا۔ انہوں نے اپنا اسلحہ لٹکا دیا اور لیٹ گئے، وہ اسی حالت پر تھے کہ نچلی وادی سے یہ آواز سنائی دی: او مہاجرو! ابن زینم کو قتل کر دیا گیا۔ میں نے اپنی تلوار سونت لی اور ان چاروں کی طرف دوڑ کر گیا، وہ سو رہے تھے، میں نے ان کا اسلحہ ضبط کر لیا اور اپنے ہاتھ میں پکڑ کر کہا: اس ذات کی قسم جس نے محمد صلی اللہ علیہ وسلم کے چہرے کو عزت والا بنایا! تم میں سے جو بھی سر اٹھائے گا میں اسے ماروں گا۔ پھر میں انہیں ہانک کر رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس لے آیا۔ (‏‏‏‏۶) میرا چچا عامر عبلات سے مکرز نامی آدمی کو ایک کمزور گھوڑے پر سوار کر کے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس لایا، وہ کل ستر مشرک تھے۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے ان کی طرف دیکھا اور فرمایا: ‏‏‏‏ان کو چھوڑ دو، برائی و بدکاری کی ابتداء ابھی ان سے ہوئی اور انتہا بھی انہی پر ہو گی۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے ان کو معاف کر دیا، اس وقت اللہ تعالیٰ نے یہ آیت نازل کی: ‏‏‏‏ وہی ہے جس نے خاص مکہ میں کافروں کے ہاتھوں کو تم سے اور تمہارے ہاتھوں کو ان سے روک دیا، اس کے بعد کہ اس نے تمہیں ان پر غلبہ دے دیا تھا اور تم جو کچھ کر رہے ہو، اللہ تعالیٰ دیکھ رہا ہے۔ (‏‏‏‏سورۃ الفتح: ۲۴) (‏‏‏‏۷) پھر ہم مدینہ کہ طرف پلٹے، ایک جگہ پڑاؤ ڈالا، ہمارے اور بنولحیان، جو کہ مشرک تھے، کے درمیان ایک پہاڑ تھا۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے اس رات کو اس پہاڑ پر چڑھنے والے کے لیے بخشش کی دعا کی، گویا کہ وہ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم اور صحابہ کرام کے پیش پیش تھا۔ سیدنا سلمہ رضی اللہ عنہ نے کہا: میں اس رات کو پہاڑ پر دو یا تین دفعہ چڑھا۔ (‏‏‏‏۸) پھر ہم مدینہ پہنچے، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے اپنی سواری اپنے غلام رباح کے ساتھ بھیجی، میں بھی اس کے ساتھ سیدنا طلحہ رضی اللہ عنہ کے گھوڑے پر نکلا، میں نے گھوڑے کو ایڑ لگاتے لگاتے پسینہ پسینہ کر دیا۔ جب صبح ہوئی تو پتہ چلا کہ عبدالرحمٰن فزاری نے دھوکہ کیا، اس نے آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے چرواہے کو قتل کر دیا اور سواریوں کو ہانک کر لے گیا۔ میں نے کہا: رباح! یہ گھوڑا سیدنا طلحہ بن عبیداللہ کے پاس پہنچا دو اور رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کو یہ پیغام دو کہ مشرک ان کے مویشیوں کو لوٹ کر لے گئے ہیں۔ میں خود ایک ٹیلے پر کھڑا ہو گیا، مدینہ کی طرف متوجہ ہوا اور (‏‏‏‏لوگوں کو جمع کرنے کے لیے) تین دفعہ کہا: یاصباحاہ!۔ پھر میں ان لوگوں کے تعاقب میں نکل پڑا، میں انہیں تیر مارتا اور رجزیہ اشعار پڑھتے ہوئے کہتا: میں اکوع کا بیٹا ہوں آج کمینوں (‏‏‏‏کی ہلاکت) کا دن ہے، میں ایک آدمی کو پا لیتا اور اس کے تھیلے میں اس زور سے تیر مارتا کہ اس کے کندھے تک پہنچ جاتا۔ پھر میں کہتا: یہ لو اور میں اکوع کا بیٹا ہوں آج کمینوں (‏‏‏‏کی ہلاکت) کا دن ہے۔ اللہ کی قسم! میں ان پر تیر پھینکتا رہا، ان کو حیران و ششدر کرتا رہا، اگر کوئی گھوڑ سوار میری طرف پلٹتا تو میں کسی درخت کے تنے کے پاس بیٹھ جاتا اور تیر مار کر اسے حیران و پریشان کر دیتا۔ (‏‏‏‏چلتے چلتے) پہاڑ تنگ ہو گیا اور وہ اس کی تنگ جگہ میں داخل ہو گئے۔ میں پہاڑ پر چڑھ گیا اور پتھروں کو لڑھکانا شروع کر دیا۔ میں ان کا تعاقب کرتا رہا، حتیٰ کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کی تمام سواریوں کو اپنے پیچھے چھوڑ گیا، پھر بھی میں ان کا پیچھا کرتا رہا اور ان کو تیر مارتا رہا، یہاں تک کہ انہوں نے اپنے آپ کو کم وزن کرنے کے لیے (‏‏‏‏اور سامان گھٹانے) کے لیے تیس چادریں اور تیس نیزے پھینک دیے۔ وہ جو چیز پھینکتے تھے میں اس پر علامتی پتھر رکھ دیتا تاکہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم اور آپ کے صحابہ اسے پہچان لیں۔ چلتے چلتے وہ ایک تنگ گھاٹی میں جا پہنچے، وہاں ان کے پاس بدر فزاری کا ایک بیٹا بھی آ پہنچا۔ انہوں نے دوپہر کا کھانا کھانا شروع کیا اور میں پہاڑ یا ٹیلے کی چوٹی پر بیٹھ گیا۔ فزاری نے پوچھا: یہ کون ہے، جو مجھے نظر آ رہا ہے؟ انہوں نے کہا: ہمیں اس سے بڑی تکلیف ہوئی ہے، اللہ کی قسم! یہ صبح سے ہمارے تعاقب میں ہے اور ہم پر تیر بھی برساتا ہے، حتیٰ کہ اس نے ہم سے ہر چیز چھین لی ہے۔ اس نے کہا: تم میں سے چار افراد اس کی طرف جائیں۔ سو وہ پہاڑ پر چڑھتے ہوئے میری طرف آئے۔ جب ان سے کلام کرنا ممکن ہوا تو میں نے کہا: کیا تم مجھے جانتے ہو؟ انہوں نے کہا: نہیں، تو کون ہے؟ میں نے کہا: میں سلمہ بن اکوع ہوں، اس ذات کی قسم جس نے محمد صلی اللہ علیہ وسلم کے چہرے کو معزز بنایا؟ میں تم میں سے جس کو چاہوں پا لوں گا اور تم میں سے کوئی مجھے نہیں پا سکتا۔ ان میں سے ایک نے کہا: میرا بھی یہی گمان تھا۔ (‏‏‏‏۹) وہ واپس چلے گئے، میں اپنی جگہ پر ٹھہرا رہا، حتیٰ کہ مجھے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے گھڑ سوار نظر آئے، وہ درختوں کے بیچ سے چڑھے آ رہے تھے، ان میں پہلا اخرم اسدی تھا، اس کے پیچھے ابوقتادہ انصاری اور اس کے پیچھے مقداد بن اسود کندی تھے۔ میں نے اخرم کے گھوڑے کی لگام پکڑ لی۔ وہ سارے پیٹھ پھیر کر بھاگ گئے۔ میں نے کہا: اخرم! رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم اور صحابہ کرام کو ملنے تک احتیاط کرنا، کہیں یہ حائل نہ ہو جائیں۔ اس نے کہا: سلمہ! اگر تم اللہ اور آخرت کے دن پر ایمان رکھتے ہو اور جانتے ہو کہ جنت و جہنم حق ہیں، تو کوئی احتیاط میرے اور میری شہادت کے درمیان حائل نہیں ہو سکتی۔ میں نے ان کو جانے دیا، ان کا اور عبدالرحمٰن کا مقابلہ ہوا، انہوں نے اس کے گھوڑے کی کونچیں کاٹ دیں اور عبدالرحمٰن نے اخرم کو نیزہ مار کر شہید کر دیا اور اس کے گھوڑے پر بیٹھ گیا۔ اتنے میں رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے گھوڑ سوار ابوقتادہ رضی اللہ عنہ عبدالرحمٰن پر جھپٹے اور اس کو نیزہ مار کر ہلاک کر دیا۔ اس ذات کی قسم جس نے محمد صلی اللہ علیہ وسلم کے چہرے کو معزز بنایا! میں ان کے پیچھے بھاگتا رہا، (‏‏‏‏اور اتنا آگے نکل گیا کہ) صحابہ کرام اور ان کا گرد و غبار نظروں سے اوجھل ہو گیا۔ جب یہ مشرک لوگ غروب آفتاب سے قبل ایک گھاٹی میں پہنچے، وہاں پانی تھا جسے ذوقرد کہتے تھے، یہ پیاسے تھے، انہوں نے پانی پینا چاہا، جب پیچے پلٹ کر دیکھا تو میں ان کے پیچے دوڑتا ہوا آ رہا تھا، وہ خوف اور ڈر کی وجہ سے وہاں سے نکل گئے اور پانی کا ایک قطرہ بھی نہ پیا۔ انہوں نے پہاڑی راستے میں دوڑنا شروع کر دیا، میں بھی دوڑتا گیا اور ان کے ایک آدمی کے مونڈھے میں تیر مارا اور کہا: یہ لے اور میں اکوع کا بیٹا ہوں آج کمینوں (‏‏‏‏ کی ہلاکت) کا دن ہے اس نے کہا: تجھے تیری ماں گم پائے، تو صبح والا اکوع ہے؟ میں نے کہا: ایسے ہی ہے، اے اپنی جان کے دشمن! میں صبح والا ہی اکوع ہوں۔ انہوں نے اس راستے پر دو گھوڑے چھوڑ دیے۔ میں ان دونوں کو رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس لے آیا۔ (‏‏‏‏۱۰) مجھے عامر ملے، ان کے پاس ایک مشک میں پانی ملا تھوڑا سا دودھ تھا اور ایک میں پانی۔ میں نے وضوء کیا اور پانی پیا، پھر میں رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس آیا، اس وقت آپ اس پانی پر تھے، جس سے میں نے دشمنوں کو بھگا دیا تھا۔ میں نے دیکھا کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے وہ تمام اونٹ اور نیزے چادروں جیسی تمام دوسری اشیاء، جو میں نے مشرکین سے چھینی تھیں، اپنے قبضے میں لے لی تھیں۔ سیدنا بلال رضی اللہ عنہ نے چھینا ہوا ایک اونٹ ذبح بھی کیا اور اس کا کلیجہ اور کوہان کا گوشت آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے لیے بھونا۔ میں نے کہا: اے اللہ کے رسول! مجھے جانے دیں، میں سو مردوں کا انتخاب کرتا ہوں، پھر ہم سب مشرکوں کے تعاقب میں چلتے ہیں، ان کا جو مخبر ملے گا اسے قتل کر دیں گے۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم ہنس پڑے، حتیٰ کی آپ کی ڈاڑھیں آگ کی روشنی میں نظر آنے لگیں۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: سلمہ! کیا تم ایسا کر لو گے؟ ‏‏‏‏میں نے کہا: جی ہاں، اس ذات کی قسم جس نے آپ کو عزت دی! آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: غطفان میں ان کی میزبانی کی جائے گی۔ بعد میں ایک آدمی غطفان سے آیا اور اس نے کہا: فلاں آدمی نے ان کے لیے اونٹ ذبح کئے تھے، جب وہ کھالیں اتار چکے تو انہیں اٹھتا ہوا گرد و غبار نظر آیا۔ وہ کہنے لگے: (‏‏‏‏ہمارا تعاقب کرنے والے لوگ) ہم تک پہنچ گئے ہیں، سو وہ بھاگ گئے۔ (‏‏‏‏۱۱) جب صبح ہوئی تو رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: آج کا بہترین گھوڑ سوار ابوقتادہ اور بہترین پا پیادہ سلمہ ہے۔ ‏‏‏‏پھر آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے مجھے دو حصے دیئے، ایک گھوڑ سوار کا حصہ اور ایک پا پیادہ کا، آپ نے دونوں حصے میرے لیے جمع کر دیئے، پھر آپ نے مجھے اپنی عضباء اونٹنی پر بٹھایا اور واپس مدینہ کی طرف چل پڑے۔ (‏‏‏‏۱۲) ہم چل رہے تھے، ایک انصاری، جو دوڑ میں کسی کو آگے بڑھنے نہیں دیتا تھا، نے یہ کہنا شروع کر دیا: کیا کوئی مدینہ تک دوڑ میں مقابلہ کرنے والا ہے؟ آیا کوئی مقابلہ کرنے والا ہے؟ اس نے باربار للکارا۔ جب میں نے اس کی بات سنی تو کہا: کیا تو معزز کی عزت نہیں کرتا ہے، کیا تو کسی ذی شرف کا رعب تسلیم نہیں کرتا؟ اس نے کہا: نہیں، الاّ یہ کہ وہ اللہ کے رسول ہوں۔ میں نے کہا: اے اللہ کے رسول! میرے ماں باپ آپ پر قربان ہوں، مجھے جانے دیجئیے، میں اس آدمی سے مقابلہ کرنا چاہتا ہوں۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: جس طرح تیری مرضی ہے۔ میں نے کہا: میں تیری طرف آ رہا ہوں، میں نے اپنی ٹانگوں کو مروڑا، چھلانگ لگائی اور دوڑ پڑا، بھاگتے بھاگتے ایک دو ٹیلوں کو عبور کر گیا، پھر اس کے پیچھے دوڑ پڑا، ایک دو ٹیلوں تک دوڑتا رہا، پھر تیز ہوا اور اس کو جا ملا، میں نے اس کی کمر پر اپنا ہاتھ مارا اور کہا: اللہ کی قسم! تو ہار گیا ہے۔ اس نے کہا: ابھی تک مجھے امید ہے۔ پھر میں مدینہ تک اس سے آگے نکل گیا۔ (‏‏‏‏۱۳) اللہ کی قسم! ہم صرف تین راتیں ٹھہرے تھے، بالآخر ہم خیبر کی طرف نکل پڑے، میرے چچا عامر نے یہ رجزیہ اشعار پڑھنا شروع کر دیے: اللہ کی قسم! اگر اللہ نہ ہوتا تو ہم ہدایت نہ پاتے، نہ صدقہ کرتے اور نہ نماز پڑھتے اور ہم تیرے فضل سے غنی نہیں ہو سکتے اگر دشمنوں سے ٹکر ہو جائے تو ہمیں ثابت قدم رکھنا اور ہم پر سکینت نازل کرنا۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے پوچھا: یہ کون ہے؟، انہوں نے کہا: میں عامر ہوں۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: تیرا رب تجھے بخش دے۔ انہوں نے کہا: جب بھی رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے بالخصوص کسی انسان کے لیے بخشش طلب کی تو وہ شہید ہوا۔ سیدنا عمر بن خطاب رضی اللہ عنہ نے جبکہ وہ اونٹ پر تھے، پکارا: اے اللہ کے نبی! آپ نے ہمیں عامر کے ساتھ مستفید کیوں نہ ہونے دیا (‏‏‏‏یعنی ہمیں دعا میں شریک کیوں نہ کیا)؟ (‏‏‏‏۱۴) جب ہم خیبر میں پہنچے تو ان کا بادشاہ مرحب اپنی تلوار کو لہراتے ہوئے نکلا اور کہنے لگا: خیبر بخوبی جانتا ہے کہ میں مرحب ہوں ہتھیار بند، سورما اور منجھا ہوا ہوں جب لڑائیاں بھڑک اٹھتی ہیں تو میں متوجہ ہوتا ہوں اس کے مقابلے کے لیے میرے چچا عامر رضی اللہ عنہ نکلے اور کہا: خیبر اچھی طرح جانتا ہے کہ میں عامر ہوں۔ مکمل طور پر تیار ہوں، دلیر ہوں، جان کی بازی لگانے والا ہوں، تلوار کی ضربوں کا تبادلہ شروع ہوا، مرحب کی تلوار سیدنا عامر رضی اللہ عنہ کی ڈھال پر لگی، عامر جھکے اور ان کی اپنی تلوار سے اس کی بازو کی رگ کٹ گئی اور اسی میں ان کی شہادت تھی۔ (‏‏‏‏۱۵) سلمہ نے کہا: میں نکلا اور اصحاب رسول کو کہتے سنا: عامر کا عمل رائیگاں چلا گیا، اس نے خودکشی کر لی ہے۔ میں روتا ہوا نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس آیا اور کہا: اے اللہ کے رسول! کیا عامر کا عمل رائیگاں چلا گیا ہے؟ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے پوچھا: کون ایسی بات کر رہا ہے۔ میں نے کہا: آپ کے صحابہ۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: جس نے بھی یہ بات کہی، اس نے خلاف حقیقت بات کی، عامر کو تو دو اجر ملیں گے۔ پھر آپ نے مجھے سیدنا علی رضی اللہ عنہ کو بلانے کے لیے ان کی طرف بھیجا، وہ اس وقت آشوب چشم کے مریض تھے۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: میں ایسے آدمی کو جھنڈا دوں گا جو اللہ اور رسول سے محبت کرتا ہے اور اللہ اور رسول اس سے محبت کرتے ہیں۔ میں علی رضی اللہ عنہ کے پاس آیا اور آنکھ میں تکلیف ہونے کے باوجود میں انہیں رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس لے آیا۔ آپ نے ان کی آنکھوں میں اپنا لعاب لگایا، وہ صحت یاب ہو گئے، پھر انہیں جھنڈا عطا کیا۔ اب کی بار مرحب نکلا اور کہا: خیبر بخوبی جانتا ہے کہ میں مرحب ہوں ہتھیار بند ہوں، سورما ہوں اور منجھا ہوا ہوں جب لڑائیاں بھڑک اٹھتی ہیں تو میں متوجہ ہوتا ہوں، سیدنا علی رضی اللہ عنہ نے کہا: میں وہ ہوں جس کا نام ماں نے حیدر رکھا، جنگلوں کا شیر ہوں، ہولناک منظر والا ہوں، میں انہیں صاع کے بدلے نیزے کی ناپ پوری کر دوں گا۔ سیدنا علی رضی اللہ عنہ نے مرحب کے سر پر ضرب ماری اور ان کے ہاتھ پر (‏‏‏‏خیبر) فتح ہو گیا۔

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