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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
توبہ، نصیحت اور نرمی کے ابواب
तौबा, नसीहत और नरमी बरतना
1453. غیر مستحق پر لعنت کرنے کا وبال
“ नाजाइज़ लाअनत करने का बोझ ”
حدیث نمبر: 2198
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
-" إذا خرجت اللعنة من في صاحبها نظرت، فإن وجدت مسلكا في الذي وجهت إليه وإلا عادت إلى الذي خرجت منه".-" إذا خرجت اللعنة من في صاحبها نظرت، فإن وجدت مسلكا في الذي وجهت إليه وإلا عادت إلى الذي خرجت منه".
عیزار بن جرول حضرمی کہتے ہیں: ہم میں ایک ابوعمیر نامی آدمی تھا، جس کا رشتہ اخوت سیدنا عبداللہ بن مسعود رضی اللہ عنہ سے قائم تھا، سیدنا عبداللہ اس کے گھر آتے جاتے رہتے تھے۔ ایک دن وہ آئے لیکن سیدنا ابوعمیر رضی اللہ عنہ گھر پر نہیں تھے، وہ اس کی بیوی کے پاس بیٹھ گئے۔ بیوی نے اپنی خادمہ کو کسی کام کے لیے بھیج دیا، اس نے واپس آنے میں تاخیر کی۔ (جس کی وجہ سے) اس نے کہا: میری خادمہ پر اللہ لعنت کرے، اس نے بہت دیر کر دی ہے۔ سیدنا عبداللہ رضی اللہ عنہ باہر آ گئے اور دروازے پر بیٹھ گئے۔ جب سیدنا ابوعمیر رضی اللہ عنہ واپس آئے تو انہیں کہا: آپ اپنے بھائی کے اہل کے پاس تشریف رکھتے۔ انہوں نے کہا: میں نے تو ایسے ہی کیا تھا، لیکن اس نے خادمہ کو کسی کام کے لیے بھیجا اور اس نے بہت تاخیر کر دی، جس کی وجہ سے اس نے اس پر لعنت کی اور میں نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کو فرماتے سنا: جب لعنت ولا لعنت کرتا ہے تو دیکھا جاتا ہے کہ آیا وہ آدمی، جس پر لعنت کی گئی ہے، اس کا مستحق ہے۔ اگر (وہ حقدار) ہو تو ٹھیک وگرنہ وہ لعنت، لعنت کرنے والے کی طرف لوٹا دی جاتی ہے۔ اور میں نے ناپسند کیا لعنت کے راستے پر بیٹھوں۔
ऐज़ार बिन जरवल हज़रमी कहते हैं कि हम मैं एक अबू उमेर नाम का आदमी था, जिस का भाई का रिश्ता हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि अल्लाहु अन्ह से था, हज़रत अब्दुल्लाह उस के घर आते जाते रहते थे। एक दिन वह आए लेकिन हज़रत अबू उमेर रज़ि अल्लाहु अन्ह घर पर नहीं थे, वह उस की पत्नी के पास बैठ गए। पत्नी ने अपनी दासी को किसी काम के लिये भेज दिया, उस ने वापस आने में देर की। (जिस के कारण) उस ने कहा कि मेरी दासी पर अल्लाह लाअनत करे, उस ने बहुत देर करदी है। हज़रत अब्दुल्लाह रज़ि अल्लाहु अन्ह बाहर आ गए और दरवाज़े पर बैठ गए। जब हज़रत अबू उमेर रज़ि अल्लाहु अन्ह वापस आए तो उन से कहा कि आप अपने भाई के घर वालों के पास बैठते। उन्हों ने कहा कि मैं ने तो ऐसे ही किया था, लेकिन उस ने दासी को किसी काम के लिये भेजा और उस ने बहुत देर करदी, जिस के कारण उस ने उस पर लाअनत की और मैं ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कहते हुए सुना ! “जब लाअनत करने वाला लाअनत करता है तो देखा जाता है कि क्या वह आदमी, जिस पर लाअनत की गई है, उस का हक़दार है। यदि (वह हक़दार) हो तो ठीक वरना वह लाअनत, लाअनत करने वाले की ओर लोटादी जाती है।” और मैं ने पसंद नहीं किया कि लाअनत के रस्ते पर बैठूं।
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 1269

قال الشيخ الألباني:
- " إذا خرجت اللعنة من في صاحبها نظرت، فإن وجدت مسلكا في الذي وجهت إليه وإلا عادت إلى الذي خرجت منه ".
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‏‏‏‏أخرجه أحمد (1 / 408) والبيهقي في " الشعب " (2 / 92 / 2) من طريقين عن
‏‏‏‏عمر بن ذر عن العيزار بن جرول الحضرمي قال: " كان منا رجل يقال له أبو عمير،
‏‏‏‏قال وكان مؤاخيا لعبد الله (يعني ابن مسعود) فكان عبد الله يأتيه في
‏‏‏‏منزله، فأتاه مرة، فلم يوافقه في المنزل، فدخل على امرأته، قال: فبينا هو
‏‏‏‏عندها إذ أرسلت خادمتها في حاجة، فأبطأت عليها فقالت: قد أبطأت، لعنها الله
‏‏‏‏! قال: فخرج عبد الله فجلس على الباب
‏‏‏‏__________جزء : 3 /صفحہ : 264__________
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‏‏‏‏قال: فجاء أبو عمير، فقال لعبد الله:
‏‏‏‏ألا دخلت على أهل أخيك؟ قال: فقال: قد فعلت ولكنها أرسلت الخادمة في حاجة،
‏‏‏‏فأبطأت عليها فلعنتها وإني سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: (فذكره
‏‏‏‏) . وإني كرهت أن أكون لسبيل اللعنة ".
‏‏‏‏قلت: وهذا إسناد رجاله ثقات غير أبي عمير، فهو مجهول، والظاهر أن الحضرمي
‏‏‏‏تلقى الحديث عنه ويؤيده أن في رواية أحمد: عن العيزار ... عن رجل منهم يكنى
‏‏‏‏أبا عمير ... ، لكن في طريق أخرى عند أحمد (1 / 425) عن عمر بن ذر عن العيزار
‏‏‏‏من (تنعة) أن ابن مسعود قال: فذكره مرفوعا. والعيزار هذا قد أدرك ابن
‏‏‏‏مسعود فقال ابن أبي حاتم (3 / 2 / 37) : " روى عن علي رضي الله عنه، روى عنه
‏‏‏‏علقمة بن مرثد ". ثم روى توثيقه عن ابن معين، فمن الممكن أن يكون سمعه منه
‏‏‏‏ولعله لذلك قال المنذري في " الترغيب " (3 / 287) : " وإسناده جيد ".
‏‏‏‏وعلى كل حال فالحديث حسن على أقل الأحوال لأن له شاهدا من حديث أبي الدرداء
‏‏‏‏مرفوعا نحوه. أخرجه أبو داود (4905) وابن أبي الدنيا في " الصمت " (2 / 14
‏‏‏‏/ 1) وفيه عمران بن عتبة، لا يدرى من هو؟ ! ¤


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