क़सम उठाना, नज़र मानना और कफ़्फ़ारा
986. “ काएनात के मामलों में केवल अल्लाह तआला की इच्छा काम करती ”
987. “ केवल अल्लाह तआला की क़सम उठानी चाहिए ”
988. “ क़सम देने वाले की क़सम पूरी न करना ”
989. “ अल्लाह तआला के सिवा किसी और की क़सम उठाना मना है ”
990. “ अमानत की क़सम उठाना मना है ”
991. “ झूठी क़सम का नुक़सान झूठी क़सम के माध्यम से दुनिया का लाभ उठाना चतुराई नहीं बोझ है ”
992. “ क़सम तोड़ने और नज़र पूरी न करने का कफ़्फ़ारह ”
993. “ मानी हुई बुरी नज़र को छोड़ देना और उस का कफ़्फ़ारह ”
994. “ किस तरह की नज़र मानी जाए ”
995. “ नज़र में कोई जगह तय करना और उसकी शर्त ”
996. “ नज़र के प्रकार और मकरूह नज़र ”
997. “ तकलीफ़ में डालने वाली बेकार की नज़र से बचना चाहिए ”

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सिलसिला अहादीस सहीहा
الايمان والنذور والكفارات
قسموں، نذروں اور کفارات کا بیان
क़सम उठाना, नज़र मानना और कफ़्फ़ारा
امانت کی قسم اٹھانا منع ہے
“ अमानत की क़सम उठाना मना है ”
حدیث نمبر: 1416
Save to word مکررات اعراب Hindi
-" ليس منا من حلف بالامانة، ومن خبب على امرئ زوجته او مملوكه فليس منا".-" ليس منا من حلف بالأمانة، ومن خبب على امرئ زوجته أو مملوكه فليس منا".
عبداللہ بن بریدہ اپنے باپ سے روایت کرتے ہیں، وہ کہتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: جس نے امانت کی قسم اٹھائی وہ ہم میں سے نہیں اور جس نے کسی آدمی کے حق میں اس کی بیوی یا خادم کو خراب کر دیا، وہ بھی ہم میں سے نہیں۔

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